राज्यसभा के लिए नामों की घोषणा, “आप” के सिद्धांत पर सवाल

नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (आप) ने दिल्ली की तीन राज्य सभा सीटों पर उम्मीदवार का एलान कर दिया है। पार्टी ने पीएसी प्रमुख संजय सिंह, दिल्ली के व्यवसायी सुशील गुप्ता और चार्टर्ड अकाउंटेंट नारायण दास गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है। इनका चुना जाना तय है। इनमें से एक पार्टी के अंदर से तो बाकी दो बाहरी लोगों को उम्मीदवार बनाया गया है। हालांकि, पार्टी की ओर से दावा किया गया है कि जिन दो लोगों को बाहरी कहा जा रहा है वे भी पार्टी के अंदर के लोग हैं। बहरहाल, आप में एक नया संकट शुरू हो गया है। आप के संस्थापक सदस्य और कवि कुमार विश्वास ने पार्टी आलाकमान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। विश्वास ने तंज कसते हुए कहा है कि जिन लोगों ने लंबे समय से पार्टी में क्रांतिकारी काम किए हैं उन्हें टिकट मिलने पर बधाई।
नामों की घोषणा के बाद पार्टी के प्रमुख नेता कुमार विश्वास ने बगावती लहजे में कहा कि अरविंद केजरीवाल से असहमत होकर पार्टी में रहना मुश्किल है। कुमार विश्वास स्वयं राज्यसभा जाने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं। पार्टी ने पहले भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर और कई अन्य प्रतिष्ठित लोगों को राज्यसभा भेजने के लिए संपर्क किया था लेकिन सभी ने इन्कार कर दिया। सिंह पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और मुखर नेता हैं और पार्टी के गठन से ही दल से जुड़े हुए हैं। इस वर्ष हुए पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए वह पार्टी के प्रभारी रहे थे। पार्टी ने सिंह का नाम तय कर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि वह कार्यकर्ताओं की अहमियत को समझती हैं। सिंह के नाम को लेकर पार्टी में करीब-करीब एकराय मानी जा रही थी। पंजाबी बाग के प्रतिष्ठित क्लब के पिछले 25 साल से अध्यक्ष सुशील गुप्ता ने कुछ माह पूर्व ही कांग्रेस से इस्तीफा दिया है। वह अभी तकनीकी रुप से पार्टी के कार्यकर्ता भी नहीं हैं।

गुप्ता मोतीनगर से कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में वर्षों से कार्यरत गुप्ता कई धर्मार्थ अस्पताल चला रहे हैं। गुप्ता गंगा इंटरनेशनल स्कूल के न्यासी हैं और महाराजा अग्रसेन अस्पताल संचालित कर रहे हैं। पेशे से चार्टर्ड एकाउटेंट नारायण दास गुप्ता पिछले कुछ वर्षों से आप से जुड़े हैं और उसका लेखा-जोखा देख रहे हैं। गुप्ता चार्टर्ड एकाउटेंट संघ के पदाधिकारी भी रहे हैं। दिल्ली से राज्यसभा की तीन सीटें रिक्त हो रही हैं। फिलहाल इन पर कांग्रेस का कब्जा है। दिल्ली विधानसभा में आप पार्टी का प्रचंड बहुमत है। इसे देखते हुए पार्टी के तीनों उम्मीदवारों को चुनाव लगभग निश्चित है। राज्यसभा की सीटों के लिए नामांकन की अंतिम तिथि पांच जनवरी है।
इधर, आप के इस फैसले पर पार्टी के अंदर और बाहर के लोग सवाल उठाने लगे हैं। लोगों का आरोप है कि सीएम अरविंद केजरीवाल ने खुद अपने ही सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाई हैं। पार्टी स्थापना से पूर्व अन्ना आंदोलन से लेकर दिल्ली की सत्ता में वापसी तक केजरीवाल को अपने ही सिद्धांतों से समझौता करते हुए देखा गया। पहली बात की अरविंद केजरीवाल और अन्य संस्थापक सदस्यों ने इस बात पर बल दिया था कि जो भी लोग पार्टी की स्थापना और दिल्ली में सरकार बनाने में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं, पार्टी उन्हें हर कदम पर तरजीह देगी लेकिन जब बात आई ऐसे लोगों को स्थान या पद देने की तो केजरीवाल ने उन्हें अंगूठा दिखा दिया।
दिल्ली की तीन सीटों पर होने वाले राज्य सभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है। संस्थापक सदस्यों में प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव और जेएनयू के प्रोफेसर रहे कुमार आनंद तो पहले ही पार्टी से अलग हो चुके हैं, अब पार्टी ने कुमार विश्वास और आशुतोष की राज्यसभा उम्मीदवारी खारिज कर साबित कर दिया है कि आप के भी चरित्र और चाल-चलन में अन्य राजनीतिक दलों के गुण-दोष शामिल हो चुके हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे भी आप और खासकर पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल के बदलते सिद्धांतों और मानकों की आलोचना कर चुके हैं। हजारे ने पहले ही कहा था कि आंदोलन के दिनों में केजरीवाल हमेशा कहा करते थे कि एक नेता को विचारों और कर्म की शुद्धता को बनाए रखना चाहिए, बेदाग जीवन जीना चाहिए और देश व समाज की भलाई के लिए त्याग करना चाहिए लेकिन केजरीवाल सत्ता के लिए सब कुछ भूल चुके हैं। राजनीतिक दलों को चंदा के मुद्दे पर भी केजरीवाल कांग्रेस और बीजेपी के खिलाफ हल्ला बोल चुके हैं मगर खुद उनकी पार्टी आज आयकर विभाग और चुनाव आयोग की नोटिसों का सामना कर रही है।

 

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