अब एक्यूट स्पाइनल कॉर्ड इंज्योरी के लिए इंडोस्कोपी इलाज

नई दिल्ली। रीढ़ की हड्डी की चोट क्या इतनी खतरनाक हो सकती है? रीढ़ की हड्डी यानी स्पाइनल कोर्ड नसों का वह समूह होता है जो कि दिमाग का संदेश शरीर के अन्य अंगों तक पहुंचाता है। ऐसे में, यदि स्पाइनल कोर्ड में किसी भी प्रकार चोट लग जाना यानी स्पाइनल कोर्ड इंज्योरी को पूरे शरीर के लिए बेहद घातक माना जाता है। चोट को तीन प्रकार से बांटा जा सकता है जैसे नसों में हल्की चोट जिसे कंट्यूजन कहा जाता है। नस का थोड़ा सा फटना या नस का पूरा फट जाना जिसे स्पाइनल कोर्ड में ट्रांसेक्शन के नाम से भी जाना जाता है। स्पाइनल कोर्ड में चोट लगने की वजह से दुनिया में कई युवा और बच्चे किसी न किसी विकार, विकलांगता या मौत का शिकार हो जाते हैं।

कई केसों में इंडोस्कोपी से भी मरीज की कुछ समस्याओं को कम करने का प्रयास किया जाता है। इस प्रक्रिया में एक छोटा सा छेद करके लेजर के माध्यम से यह उपचार किया जाता है। इसमें रक्तस्राव व चीर-फाड़ कम होती है। इसीलिए हर बड़ी सर्जरी के स्थान पर संभव हो सके तो इंडोस्कोपी को वरीयता दी जाती है। डा.सतनाम सिंह छाबड़ा का कहना है कि इसे मिनिमली इंवेसिव स्पाइन सर्जरी को ‘की होल सर्जरी’ के नाम से भी जाना जाता है जिस में एक पतली दूरबीन जैसे एक यंत्र जिसे ‘एंडोस्कोप’ कहा जाता है इस्तेमाल की जाती है जो कि एक छोटे से चीरे के द्वारा अंदर डाली जाती है। एंडोस्कोप एक छोटे वीडियो कैमरे से जुड़ा होता है जो कि मरीज के शरीर के अंदर की सभी गतिविधियों को ऑपरेशन के कमरे में रखे टीवी की स्क्रीन पर प्रदर्शित करता है। एक या अधिक अतिरिक्त आधा इंच के चीरे के द्वारा फिर से एक छोटी शल्यक्रिया यंत्र डाला जाता है।


नई दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के न्यूरो एंड स्पाइन डिपाटमेंट के डायरेक्टर डा.सतनाम सिंह छाबड़ा का कहना है कि उन केसों में जहां गर्दन या स्पाइनल कोर्ड बुरी तरीके से मुड़ जाती है जैसे-पैदा होते समय भी अक्सर स्पाइनल कोर्ड में चोट लग जाती है। कहीं से गिरने पर, सडक दुघर्टना, खेलते समय चोट लगना, डाइविंग करने से , घुड़सवारी करते समय गिर जाने से व गोली लगने से। किसी भी दुर्घटना के बाद चोट की गंभीरता इस पर निर्भर करती है कि स्पाइनल कोर्ड का कौन सा भाग चोटग्रस्त हुआ है? स्पाइनल कोर्ड के निचले भाग में चोट लगने से मरीज को लकवा आदि हो सकता है। कई केंसों में शरीर का निचला भाग बेकार हो जाता है। इस अवस्था को पैराप्लेगिया के नाम से जाना जाता है।
डा.सतनाम सिंह छाबड़ा के अनुसार मरीज की जटिलता इस पर भी निर्भर करती है कि मरीज को कंप्लीट इंज्योरी है या इनकंप्लीट। कंप्लीट इंज्योरी के केस में मरीज को चोटिल भाग में और आसपास किसी हरकत का एहसास नहीं होता है। सब कुछ जैसे सुन्न हो जाता है लेकिन इनकंप्लीट इंज्योरी में मरीज को चोटिल भाग में दर्द, हरकत या किसी प्रकार का एहसास अवश्य होता है। जितनी बड़ी इंज्योरी होती है, केस उतना ही गंभीर होता है और इंज्योरी जितनी कम या छोटी होती है केस में जटिलता कम होती है। मरीज को कुछ अन्य लक्षण भी उभर सकते हैं जैसेरू-मांस पेशियों में कमजोरी, पैरों हाथों व छाती की मंासपेशियों में हरकत न होना। सांस लेने में तकलीफ, इसके अलावा पैरों हाथों व छाती में कोई हरकत न होना, ब्लैडर मूवमेंट में असमर्थता, निदान किस प्रकार किया जाता है? रक्त जांच, एक्स रे, सीटी स्कैन या कैट स्कैन व एम आर आई आदि।
 

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