नई दिल्ली। आज 5 मार्च 2019 को भौमवार अमावस्या तिथि और शतभिषा नक्षत्र का दुर्लभ संयोग बना है। मंगलवार को अमावस्या तिथि हो तो उसे भौमवती अमावस्या कहा जाता है। भौमवती अमावस्या महाकाली, मातंगी, बगलामुखी, हनुमान और कृष्ण की साधना का विशेष काल कहाता है। इस कालखंड में की गई विधियुक्त साधना मुक्ति के मार्ग खोलती है। विश्वसार तंत्र और श्री मार्कण्डेय पुराणोक्त दुर्गा सप्तशती में भौमवती अमावस्या में शतभिषा नक्षत्र के इस दुर्लभ खगोलीय महत्व का महात्म्य बताते हुए मार्कण्डेय ऋषि लिखते हैं –
भौमावास्या निशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते।
विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम्।।
अर्थात भौमवती अमावस्या की अर्धरात्रि में जब शतभिषा नक्षत्र पर हो उस समय ‘श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्’ को गोरोचन, लाक्षा, कुंकुम, सिन्दूर, कपूर, गौ-घृत या गौ-दुग्ध, चीनी, शहद इन समस्त पदार्थों को एकत्र करके इनसे भोजपत्र पर सोने या अनार की कलम से लिखकर चाँदी या सोने के यन्त्र में भरकर जो प्राणी धारण करता है, वह शिव के तुल्य हो जाता है, एवं सम्पत्तिशाली होता है | दैहिक, दैविक, भौतिक इन तीनों तापों से मुक्ति मिलती है एवं दरिद्रता का नाश होता है। यह अत्यन्त दुर्लभ योग कहा जाता है |
यह योग इस वर्ष श्री शुभ सम्वत् 2074 फाल्गुन कृष्ण अमावस्या, मंगलवार ( 5 मार्च 2019) को पड़ेगा | यह योग 22 बजकर 1 मिनट 32 सेकेंड (रात्रि 10:01:32) से 28 बजकर 46 मिनट 1 सेकेंड (प्रातः 04:46:01) तक (लगभग 6 घंटे 46 मिनट तक) व्याप्त रहेगा | इस मन्त्र को लिखने के लिये यह अति उत्तम समय है | इस समय में श्री दुर्गा यन्त्र लिखकर शेष समय में इसी स्तोत्र से इसे 18 बार या अधिक अभिमन्त्रित भी करें |
स्तोत्र इस प्रकार है-
ॐ
|| श्री दुर्गायै नमः ||
श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्
ईश्वर उवाच
शतनाम प्रवक्ष्यामि शुणुष्व कमलानने ।
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ।।1।।
ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी ।
आर्या दुर्गा जयाआद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ।।2।।
पिनाकधारिणी चित्रा चन्द्रघण्टा महातपाः ।
मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरुपा चिता चितिः ।।3।।
सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी ।
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याअभव्या सदागतिः ।।4।।
शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा ।
सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ।।5।।
अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती ।
पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनी ।।6।।
अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी ।
वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ।।7।।
ब्राह्मी माहेश्वरी ऎन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा ।
चामुण्डा च वाराही लक्ष्मीश्च पुरूषाकृतिः ।।8।।
विमलोत्कर्षिणि ज्ञानाक्रिया नित्या च बुद्धिदा।
बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना ।।9।।
निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी ।
मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ।।10।।
सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी ।
सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा ।।11।।
अनेक शस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी ।
कुमारी एककन्या च कैशोरी युवती यतिः ।।12।।
अप्रौढा प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा।
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ।।13।।
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रि तपस्विनी।
नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ।।14।।
शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी ।
कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ।।15।।
य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम् ।
नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ।।16।।
धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च ।
चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ।।17।।
कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्व देवीम् सुरेश्वरीम् ।
पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम् ।।18।।
तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि ।
राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात्।।19।।
गोरोचनालक्तककुंकुमेन सिन्दूर्कर्पूरमधुत्रयेण ।
विलिख्य यन्त्रविधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः ।।20।।
भौमवास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते ।
विलिख्य प्रपठेत स्त्रोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ।।21।।
इति श्रीविश्वसारतन्त्रे दुर्गाष्टोत्तरशतनाम्स्त्रोत्रं समाप्तम्।।
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अधिष्ठाता
श्री पीताम्बरा विद्यापीठ सीकरीतीर्थ