नई दिल्ली। जेएसपीएल फाउंडेशन की चेयरपर्सन श्रीमती Shalu Jindal का जीवन समर्पण, कड़ी मेहनत, लगन और दर्शन का बेमिसाल उदाहरण है। Shalu Jindal ने पारिवारिक दायित्वों के साथ-साथ सामाजिक दायित्व भी बखूबी निभाया है और अपना जुनून यानी नृत्य भी पूरा कर रही हैं।
Shalu Jindal – मेरे पति नवीन जिंदल और बच्चों ने मेरा बहुत साथ दिया
अपने बच्चों,घर की जरूरतों,अपने पति व सामाजिक कार्यों, जनकल्याण व जेएसपीएल फाउंडेशन के काम और अपने जुनून के बीच अपना समय बांटने की चुनौती का निरंतर सामना करना पड़ता है। मैं धन्यवादी और आभारी हूं कि मेरे पति नवीन जिंदल और बच्चों ने मेरा बहुत साथ दिया। वे मेरी परफॉर्मेंस से पहले और उसके बाद की मेरी आवश्यकताओं को समझते हैं। मेरी भावनाओं को पूर्ण सम्मान देते हैं। मैं सहयोग-समर्थन के उनके भाव से अभिभूत हूं।
Shalu Jindal – मैं उनके साथ, उनके पास होती हूं
मैं परिवार को भी पूरा समय देने का प्रयास करती हूं। हम सभी एक साथ छुट्टियों पर जाते हैं और एक-दूसरे को भरपूर समय देते हैं, एक साथ टीवी देखते हैं और आपस में घंटों बातें करते हैं। जब मेरे बच्चे छोटे थे, तब मैंने उन्हें बहुत समय दिया,लेकिन अब जब वे थोड़े बड़े हो गए हैं। मैं उनकी मूवमेंट पर लगातार नज़र रखकर उन्हें क्वालिटी टाइम देना पसंद करती हूं। जब भी कोई जरूरत होती है, मैं उनके साथ, उनके पास होती हूं।
Shalu Jindal – मैंने कत्थक सीखा
मेरा बचपन पंजाब के लुधियाना शहर में बीता। मेरी मां चाहती थी कि मैं कोई एक शास्त्रीय कला सीखूं, सो मैंने कत्थक सीखा। लुधियाना के ही एक कत्थक गुरु की कक्षाओं में मैंने जाना शुरू किया। स्कूल के साथ-साथ कॉलेज स्तर पर हुए राज्य युवा महोत्सवों में कई पुरस्कार जीते। मुझे क्लासिकल डांस में कॉलेज कलर एंड रोल ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया। स्नातक तक मेरी शिक्षा पूरी होने के बाद मेरा परिवार लुधियाना से मुंबई आ गया। मैंने मुंबई में एक साल के लिए बिजनेस मैनेजमेंट और फैशन डिजाइन का अध्ययन किया। फिर इंटीरियर डिजाइन में दो साल का कोर्स करने के लिए लंदन चली गई। लंदन से लौटने के बाद मेरी शादी हो गई। फिर नृत्य मेरे लिए सपना-सा बन गया।
कुचिपुड़ी परम्परा में प्रवेश
कुचिपुड़ी परम्परा में प्रवेश की मेरी कहानी कुछ अलग है। मेरी उम्र तब 33 साल थी। मैं तिरुपति बाला जी के दर्शन करने गई हुई थी। तिरुपति में भगवान श्री वेंकटेश्वर जी के चरण कमलों में संयोगवश मेरी मुलाकात गुरु राजा-राधा रेड्डी जी से हुई। जिनकी प्रेरणा से मुझे कुचिपुड़ी परम्परा में प्रवेश का अवसर मिला। उन्होंने मुझे कुचिपुड़ी नृत्य का अध्ययन, अभ्यास और परफॉर्मेंस के लिए प्रोत्साहित किया। मैं इसे दैवीय कृपा मानती हूं कि अपने गुरु राजा-राधा रेड्डी के माध्यम से मुझे जीवन का एक महत्वपूर्ण मंत्र मिला। वह मेरे जीवन का अनोखा मोड़ था। मेरे बच्चे बहुत छोटे थे। मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि कुचिपुड़ी मेरे जीवन को कैसे बदलने जा रहा है।
भारत के साथ-साथ विश्व मंचों पर भी अपनी परफॉर्मेंस दी
मुझे बताते हुए अच्छा लग रहा है कि मैंने भारत के साथ-साथ विश्व मंचों पर भी अपनी परफॉर्मेंस दी। मैं हमेशा कहती हूं कि मुझे जीवन का एक उद्देश्य मिला, “भगवान श्री वेंकटेश्वर जी ने नृत्य के प्रति मेरे प्रेम को आगे बढ़ाने के लिए गुरु राजा-राधा रेड्डी जी में एक दिव्य प्रकाश दिखाया।” कुचिपुड़ी नृत्य के प्रति मेरा यह लगाव मुझे देश-विदेश में कई स्थानों पर ले गया- चंडीगढ़ से केरल और लंदन तक।
Shalu Jindal – मैंने खुद को कुचिपुड़ी परम्परा के प्रति समर्पित किया
कुचिपुड़ी एक लुप्तप्राय नृत्य स्वरूप है। इस कला के साधकों की संख्या काफी कम है, जो हैं भी वे धीरे-धीरे शिक्षण के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। मैं इस सुंदर कला को बढ़ावा देने के लिए अपनी समस्त शक्तियां लगाना चाहती हूं और यही कारण है कि मैंने खुद को कुचिपुड़ी परम्परा के प्रति समर्पित किया है।
अब तक के प्रयास
कुचिपुड़ी को जन-जन तक पहुंचाने का मेरा संकल्प साकार हुआ जिन्दल आर्ट इंस्टीट्यूट (जय) के रूप में। मैंने इस इंस्टीट्यूट के रूप में एक मशाल प्रज्ज्वलित करने का प्रयास किया है और मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि इस संस्थान ने कुचिपुड़ी को एक कला के रूप में बढ़ावा देने के लिए आम जनमानस को प्रेरित किया है। मेरा सपना सिर्फ कुचिपुड़ी ही नहीं बल्कि देश की समस्त लुप्तप्राय कलाओं को पुष्पित-पल्लवित करने का है। मैंने 13 साल पहले नृत्य सीखना शुरू किया था और आज एक कुचिपुड़ी परफॉर्मर के रूप में मेरी पहचान मेरे लिए सबसे कीमती है।
Shalu Jindal – 33 वर्ष की आयु में
33 साल की उम्र में कुचिपुड़ी सीखने का मेरा जुनून वाकई चुनौतीपूर्ण था लेकिन अपने पति के सहयोग से मैंने यह लक्ष्य प्राप्त किया और जिसके लिए मुझे अपना काफी समय लगाना पड़ा। नृत्य मेरे व्यक्तित्व को पूरा करता है और मुझे खुशी है कि मैंने अपने जुनून को आगे बढ़ाने का फैसला किया। बहुत से लोग यह सोचकर अपने सपनों को छोड़ देते हैं कि उन्होंने समय गंवा दिया या वो वक्त नहीं रहा लेकिन अब मेरी कहानी को देखकर लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि वे मुझसे प्रेरित हैं।
ऊंची चोटी – माउंट के2 फतेह की है
मैंने माउंट किलिमंजारो सफलतापूर्वक फतेह की। जो दुनिया की सात दुर्गम चोटियों में से एक है। मैंने इस अभियान में कैंसर के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए भाग लिया था। मैं व्यक्तिगत रूप से एक चुनौती का सामना करना भी चाहती थी। वास्तव में यह आपको एक पल के लिए जीना सिखाती है। वैसे, यह काम इतना आसान नहीं था। मुझे तीन महीने तक कड़े प्रशिक्षण के दौर से गुजरना पड़ा।
Shalu Jindal – जीवन का लक्ष्य
मैंने जीवन का मतलब गंभीरता से समझा है इसलिए कोई भी पहल हो या परियोजना, मैं अपना 200 प्रतिशत देने का प्रयास करती हूं और मुझे खुशी है कि मुझे अपनी मेहनत का परिणाम सदैव मीठा मिला है ।
Being a mother is the tough job,” says Shallu Jindal, wife of industrialist and politician Naveen Jindal
आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है ?
एक व्यक्ति और माता-पिता के रूप में हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि हमारे बच्चे हैं। एक कलाकार के रूप में मेरी उल्लेखनीय उपलब्धि मेरी बेटी का एक कलाकार के रूप में रंगप्रवेशम् है। वो कुचिपुड़ी की एक कलाकार के रूप में आगे बढ़ना चाहेगी अथवा इसे अपना करियर बनाती है, यह उसके निर्णय पर निर्भर है लेकिन यह नृत्य-कला सदैव उसके जीवन का एक अभिन्न अंग रहेगी।
जिन्दल आर्ट इंस्टीट्यूट की स्थापना की है
जिन्दल आर्ट इंस्टीट्यूट की स्थापना भारत की युवा पीढ़ी के बीच कुचिपुड़ी को बढ़ावा देने और उन्हें यह नृत्यकला सिखाने की मेरी इच्छा से हुई है। मैं कुचिपुड़ी को नए आयाम दे रही हूं। भक्ति गीत (जैसे मीराबाई के भजन) और संगीत (सूफ़ी गीत और अंग्रेजी की कविताएं) के साथ-साथ मैं इसकी प्रस्तुति उन क्षेत्रीय भाषाओं में भी कर रही हूं, जहां इसकी परफॉर्मेंस देती हूं। जिन्दल आर्ट इंस्टीट्यूट सदैव मेरी सांसों में बसा है। इसके माध्यम से हम शास्त्रीय नृत्य,पारम्परिक कला रूपों, समकालीन रूपों/कला की लोकप्रिय शैलियों सहित विभिन्न परफॉर्मेंस आर्ट स्वरूपों में प्रशिक्षण और कार्यशालाओं की जनरुचि के अनुरूप प्रस्तुति करते हैं।
कला से आपको क्या मिला ?
कला के एक रूप को अपनाने से जीवन में अनुशासन और आनंद आता है, इसलिए मैं सभी महिलाओं का आह्वान करती हूं कि वे शौक,जुनून या व्यवसाय के रूप में अपनी एक रचनात्मक रुचि को आगे बढ़ाएं और अपने बच्चों को भी ऐसे कार्य के लिए प्रोत्साहित करें। मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि कलात्मक संस्कार से खुशी और संतुष्टि दोनों मिलती है।
क्या आपकी योजना कुचिपुड़ी सिखाने की है?
जिन्दल आर्ट इंस्टीट्यूट की स्थापना का मकसद यही है। मैं देश की युवा पीढ़ी को कुचिपुड़ी सिखाना चाहती हूं। कला युवाओं में अनुशासन,कठिन परिश्रम, दृढ़ संकल्प और धैर्य जैसे मूल्यों का विकास करती है, जो बाद में उनके जीवन का अभिन्न अंग बन जाते हैं। मुझे लगता है कि यह प्रश्न ही गलत है।
मेरे लिए खुशी का पल
मेरी बेटी यशस्विनी ने जब अपना रंगप्रवेशम् पूरा किया तो वह वास्तव में मेरे लिए खुशी का पल था। यह देखना अद्भुत है कि बच्चे आपके नक्शेकदम पर चल रहे हैं । हां, जेएसपीएल फाउंडेशन के एक अंग और नेशनल बाल भवन की पूर्व चेयरपर्सन होने के नाते मेरा ये सौभाग्य है कि बच्चों से मुझे गहरा लगाव है।
तिरंगा – एक कॉफी टेबल बुक है
बचपन से ही मुझे किताबें पढ़ने का चाव है। लगभग 10 साल पहले मैंने भारत से संबंधित विभिन्न विषयों पर पुस्तकों का संकलन शुरू किया। तिरंगा – एक कॉफी टेबल बुक है, जिसमें राष्ट्रीय ध्वज का सुंदर वर्णन है और यह भारतीय ध्वज और राष्ट्रीय रंगों पर अब तक की सबसे बड़ी फोटोग्राफिक प्रस्तुति है। यह पुस्तक लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है। एक अन्य पुस्तक है “फ्रीडम” – इस पुस्तक में भारत के समृद्ध इतिहास और स्थापत्य कला विरासत के साथ-साथ विशाल साहित्य और कविताओं का संकलन है, जो हमारे आध्यात्मिक गुरुओं और राजनेताओं के ज्ञान का संगम है ।