केजरीवाल की जनसभा पर सवाल

कमलेश भारतीय

हिसार। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की 25 मार्च को हिसार में होने वाली जनसभा पर सवाल उठाए जा रहे हैं । पहले पंजाब में बडी आशाएं और दावे कर चुनाव में उतरे लेकिन हारे । गोवा में भी यही हश्र हुआ । गुजरात में तो लडने का हौंसला ही नहीं हुआ पर लोकसभा में वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उतरे तो भगौडे से नवाजे गए ।
मूलत:हरियाणा के सिवानी के निवासी और हिसार के दोहिते अरविंद केजरीवाल की सारी शिक्षा और शादी तक हिसार में हुई । राजनीति में पूरी तरह आने से पहले अरविंद केजरीवाल दो बार हिसार आए । मीडियाकर्मी होने के नाते सवाल जवाब भी हुए । पहली बार राजगढ़ रोड पर भार्गव स्कूल में । बिल्कुल आमने-सामने बैठ कर सादगीपूर्ण बातचीत हुई । तब राजनीति में आएंगे या नही । इस पर संशय के बादल थे । वे आरटीआई एक्टिविस्ट के नाते चर्चित हो रहे थे । उनकी पत्नी सुनीता भी साथ आई थीं । वे हवाई चप्पल पहन कर भी पूरी तरह जमीन पर पांव रखे हुए थे । बहुत शांत व प्रभावशाली ।
दूसरी बार सुशीला भवन मे मीडिया के साथ रूबरू । वह समय उपचुनाव का था । मैंने सबके बीच सवाल किया था -बिल्कुल स्पष्ट -क्या हिसार से लोकसभा उपचुनाव में खडे होंगे ? अवसर भी है , दस्तूर भी है ?
जवाब आया – नहीं , राजनीति हमारा लक्ष्य नहीं है । राजनीति में ही आ गये तो इसे स्वच्छ कैसे करेंगे ? वे हिसार से चुनाव में नहीं उतरे पर संभवतः राजनीति उनमें उतर गयी । अन्ना के रोकते रोकते उनका प्रिय शिष्य उनके आंदोलन का सारा श्रेय लेते हुए -आम आदमी पार्टी का गठन कर बैठा । किरण बेदी , स्वामी अग्निवेश, फिर योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण और न जाने कितने इनकी राजनीति को नकार कर पीछे हट गये । राजनीति स्वच्छ डगर नहीं रही बल्कि वैसी ही गंदली होती गयी , जैसी दूसरे दलों की थी । सदस्यता और चंदे के लिए लगने वाली कतारें खत्म हो गयीं । नया सूरज चमकने से पहले डूबने लगा , जनमानस की उम्मीदें टूट गयीं ।
इंसान का इंसान हो भाईचारा का पैगाम देने वाले अरविंद केजरीवाल भाईचारे से दूर होते चले गये । अपने ही भाईबंद साथ छोडते चले गये । राजनीति बदलने आए अरविंद केजरीवाल खुद बदल गये । ऐसे बदलाव को देखकर यही कहने को मन करता है -आप तो ऐसे नहीं थे । कैसे बन गये ? क्यों हो गये ? क्या विवशता थी ? राज पाट के लिए सिद्धांत ताक पर रख दिए ? जनमानस अब जल्दी से किसी नये नेता पर विश्वास कैसे कर पाएगा ? सारी आशाएं धूल धूसरित कर दीं ।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह ने सवाल पूछा है कि पंजाब के चुनाव में एसवाईएल के हरियाणा के पानी की बलि क्यों चढा दी ? अब हिसार में क्या मुंह लेकर हरियाणा वासियों को क्या देने आ रहे हो ? किस मुंह से परिवर्तन की अलख जगाने आए हो ? कभी पंजाब के हितों का जयघोष करने वाले केजरीवाल जी अब हरियाणा के लिए क्या सपना दिखाने आए रहे हो ?
हिसार में केजरीवाल का क्रेज जरूर है पर अब उतना नहीं । पुराना गवर्नमेंट काॅलेज मैदान बहुत बडा नहीं है पर यह गवाह बनेगा कि केजरीवाल की लोकप्रियता कितनी बची है ? इससे ज्यादा शायद कुछ नहीं । पहले आप फिर से गांधी की शरण में राजघाट जाइए और चिंतन कीजिए । शायद गांधी से कोई संकेत मिल जाए । हिसार के पुराने दोस्तों से पूछिए और फिर बोलिए कि राजनीति में क्या करना है ?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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