शिक्षा, स्वास्थ और बाढ़ से निजात के संकल्प के साथ मैदान में आसिफ गफूर

गोपागलंज. महागठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी आसिफ गफूर ने ने कांग्रेस के टिकट पर 101 गोपालगंज विधानसभा क्षेत्र से कलेक्टेरियट में नामांकन किया. महागठबंधन के मुख्य घटकदल राजद के वरिष्ठ नेता व सीनियर एडवोकेट रामनाथ साहू आसिफ गफूर के प्रस्तावक बने.नामांकन के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए आसिफ गफूर ने कहा कि वे गोपालगंज में परिवर्तन के लिए चुनावी मैदान में हैं. नेता विजनरी हो तो विकास में किसी तरह की बाधा नहीं आती है. उन्होंने कहा कि पिछले डेढ दशक से गोपलगंज का विकास ठप पडा हुआ है. इसके गति देने के लिए परिवर्तन जरूरी है. उन्होंने कहा कि पिछले 15 साल में यहां के जनप्रतिनिधि विधायक कमजोर और अफसरशाही सशक्त हो चुकी है. नेता का मतलब होता है पब्लिक का सशक्तिकरण. लेकिन गोपालगंज की जनता भ्रष्टाचार और अफसरशाही के सामने खुद को बेवस महसूस कर रही है. इसलिए वे परिवर्तन के संकल्प के साथ चुनावी मैदान में जनता का अशीर्वाद मांगने आए हैं. उन्होंने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ और जिले को बाढ से निदान को मुद्दा बना कर ही वे पब्लिक के बीच जा रहे हैं. इसको लेकर पब्लिक से ढेर सारा प्यार, आशीर्वाद और समर्थन प्राप्त हो रहा है.

आफिस गफूर ने एक ही सेट में पर्चा दाखिल किया. नामांकन से पहले घोष मोड पर महागठबंधन के समर्थक एकजुट हुए और वहां से पैदल मार्च करते हुए डा. बाबा साहब अंबेडर चौक पहुंचे. यहां आसिफ गफूर ने बाबा साहब की प्रतिमा को माल्यार्पण करते हुए उन्हें नमन किया और पोस्ट आफिस चौक मार्च करते हुए यहां देशरत्न डा. राजेद्र प्रसाद तथा स्वर्गीय नगीना राय की प्रतिमा को भी माल्यापर्ण करते हुए कलेक्टेरियट पहुंचे. कलेक्टेरियट में आसिफ गफूर ने एक सेट में नामांकन दाखिल किया. नामांकन के लिए आसिफ गफूर के समर्थन में गोपालगंज विधानसभा के हर बूथ से कार्यकर्ता पहुंचे थे. कार्यकर्ताओं का अभिनंदन करतेर हुए आसिफ गफूर ने कोविड—19 के नियमों को पालन करते हुए उन्होंने अपने समर्थकों से सोशल डिस्टेंस मेंटेंन करते हुए सादगी के साथ नामांकन करने के लिए कलेक्टेरियट तक पैदल मार्च करके का निर्णय किया. सादगीपूर्ण और शालिन तरीके से जा रहे आफिस गफूर रास्ते भर लोगों का अभिवादन करते रहे

आसिफ गफूर देश के स्वतंत्रता सेनानी व बिहार के पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर के पोते हैं. इनकी एक झलक देखने के लिए आसपास की भीड कौतुहल से देख रही थी. आसपास के दुकानें पर बैठे कई बुजर्ग को तो अब्दुल गफूर साहब की याद ताजी हो गई.

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