बेकाबू रात की बाहों में पटाया और बैंकॉक

थाइलैंड से लौट कर संदीप ठाकुर

5 मई 2018। एक गर्म सुबह। हर रोज की तरह इस दिन भी सबेरे-सबेरे टहलने के लिए पार्क पहुंचा। पार्क गाजियाबाद के वैशाली रिहायशी इलाके के सेक्टर 4
में है। वॉक करने के बाद दोस्तों के साथ बैठ योगा कर रहा था कि तभी हमारे एक मित्र सुगन चंद्रा ने एक आॅफर दिया कि जो मेरे साथ बैंकाक चलेगा उसका खर्च मैं उठाउंगा। बात कुछ समझ नहीं आई। मित्रों ने उसे खुल कर बोलने को कहा। सुगन ने कहा कि, मैंने और गुप्ताजी ने बैंकाक-पटाया चलने का प्रोग्राम बनाया था। गुप्ताजी पारिवारिक विरोध के कारण साथ नहीं चल रहे हैं। मैं चलने का पूरा-पूरा मन बना चुका हूं। घर वालों,यार-दोस्तों को कह दिया है। यदि नहीं गया तो शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी। इसलिए जो मेरे साथ चलेगा उसका खर्च में उठाउंगा। मित्र मंडली ने उनके इस आॅफर को गंभीरता से नहीं लिया। सुगन ने कभी विदेश यात्रा नहीं की थी। इसलिए शायद उन्हें किसी ऐसे पार्टनर की तलाश थी जिसे विदेश
यात्रा का अनुभव हो। मैंने कई विदेश यात्राएं की हैं। दो दिन बाद उन्होंने पूछा, मेरे आॅफर पर सोचा। मैंने कहा..हां। फिर चल रहे हैं..सुगन ने पूछा। मैंने कहा ..हां। और इस तरह बैंकाक-पटाया का प्रोग्राम बन गया। यात्र के लिए टिकट से लेकर अन्य तमाम औपचारिकताएं उन्होंने ही पूरी की और 16 मई की रात 11 बजे इंदिरा गांधी हवाई अड्डा से स्पाइस जेट की फ्लाइट से हम बैंकाक के लिए रवाना हो गए।


सुगन की पहली विदेश यात्रा थी इसलिए उत्सुकता का पारा चरम पर था। उपर से तितलियों के देश बैंकाक और पटाया की यात्रा का रोमांच सुगन को सोने नहीं दे रहा था। उत्साहित तो मैं भी कम नहीं था। उड़ान के दौरान हम आपस में बात करते रहे बैंकॉक की बेकाबू रात के बारे में जो पर्यटकों के लिए खास होती है। बैंकॉक की गतिविधि जो रात होते ही जवान हो उठती है। बैंकॉक की नाइट लाइफ जिसका आकर्षण दूर दूर से लोगों को अपने पास खींच लाता है। इसके अलावा और भी बहुत कुछ मसलन थाईलैंड के न्यूड शो, लाइव सेक्स शो-69, अल्काजर शो, पारासेल, सीवॉक और कोरल आइलैंड..। मरीन पार्क में प्रशिक्षित डॉल्फिन्स के करतब शो। सफारी वर्ल्ड विश्व के सबसे बड़े खुले चिड़ियाघर, स्नो हाउस, पन्ना बुद्ध के मंदिर, शाही परिवार के पैलेस आदि के बारे में । बातचीत करते और खाते पीते बम बैंकाक पहुंच गए। रात के पौने तीन बजे थे। एयरपोर्ट पर यात्रियों की संख्या बेहद कम थी। लेकिन सभी काउंटर पर लोग मौजूद थे।
थाईलैंड की धरती पर आज हमारी जिंदगी का पहला कदम था और हम स्वर्णभूमि एयरपोर्ट पर उतरे थे। उतरते ही हमने डॉलर को बाट(थाइलैंड की करेंसी) में कन्वर्ट किया। रेट था 30.80 बाट। एक डॉलर देने पर 30 बाट 80 पैसे। लोकल करेंसी इसलिए जरुरी थी क्योंकि वीजा की रकम सिर्फ बाट में ही जमा होती है। वीजा आॅन अराइवल प्राप्त कर बाहर हम निकले। वीजा प्राप्त करने में एक घंटे लाइन में लगना पड़ा, इसके बाद इमीग्रेशन काउंटर पर तो जरा भी भीड़ नहीं थी। उन्होंने सिर्फ वेबकेम से हमारा फोटो लिया और बाहर जाने दिया। कार्यक्रम के मुताबिक आज ही हमें पटाया प्रस्थान करना था। थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक से दो घंटे की दूरी पर बसा है पटाया। ये वो जगह है जहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। तय कार्यक्रम के अनुसार सुबह के आठ बजे हमें पिक करने के लिए टूर आॅपरेटर के किसी व्यक्ति को आना था, लेकिन वह आया नहीं। सुबह के 10 बज चुके थे। अब हमने अपने आप पटाया जाने का फैसला किया और पूछताछ के बाद जा पहुंचे एयरपोर्ट के बेसमेंट में जहां से बस और टैक्सी पटाया जाती है। हमने टिकट कटाया और जा बैठे बस में। बस वातानुकूलित थी और वहां मौजूद थी महिला कंडक्टर। हमनें उससे अंग्रेजी में बात करने की कोशिश की,लेकिन वह पूरी बात समझ नहीं पाई और न ही मैं उसकी पूरी बात समझ पाया। खैर ,बस ने हमें पटाया बस स्टॉप पर उतार दिया।


बस स्टॉप पर भीड़-भाड़ अधिक नहीं थी, पर भारतीय पर्यटक अच्छी खासी संख्या में थे। हमारा होटल नोवा प्लैटिनम साउथ पटाया में था। गूगल मैप के मुताबिक दो से तीन किमी की दूरी पर। थाईलैंड में चार पहिये वाले आॅटो-रिक्शे को टुकटुक कहा जाता है, जिसकी बनावट भारतीय टेम्पो से कुछ अलग थी। टुकटुक वाले ने होटल तक पहुँचाने के लिए 100 बाट प्रति व्यक्ति मांगे। हमें महंगा लगा। मोलभाव किया बात नहीं बनी। फिर हमने मोटरसाइकिल वाले से बात की। 60 बाट में इसने हमें हमारे होटल नोवा प्लैटिनम ड्राप कर दिया। होटल पहुंचते-पहुंचते दोपहर के 12 बज चुके थे।
चेक इन टाइम 2 बजे का था। लॉबी में बैठ इंतजार करने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं था। 2 बजे के बाद हम कमरे में पहुंचे। फ्रेश होने के बाद खाने के लिए बाहर निकले। खोजबीन करने के दौरान मेरी नजर एक रेस्तरां पर पड़ी जहां 149 बाट में वेज थाली का बोर्ड टंगा दिखा। रेस्तरां का नाम था रेड चिली। रेड चिली के मालिकों से मुलाकात हुई। वे गुजरात के थे। हिंदी में बातचीत शुरू हुई माधव पटेल से। माधव ने कहा कि खाना खा कर देखिए..पसंद नहीं आए तो फ्री। हमने खाना खाया ,वाकई घर जैसा था। खाना खाने के बाद हम होटल के कमरे में पहुंचे। थकान के कारण शाम तक सोये रहे, शाम को अल्काजर शो देखने के लिए निकले और फिर में रात में शहर दर्शन।
लाखों पर्यटक हर साल थाईलैंड की रंगीन रातों का मजा लेने पटाया पहुंचते हैं। हमदोनों भी उन्हीं पर्यटकों में से थे। मैंने सुना और पढ़ा था वाकिंग स्ट्रीट के बारे में। साफ-सुथरी चौड़ी सड़क। सागर किनारे की यह सड़क संसारभर में आकर्षण का केन्द्र है। शाम ढलते ही यहां रंग और नूर की बारात सजने लगती है। सारी सड़क गुले-गुलजार होने लगती है। सड़क के दोनों तरफ बीयर-बार। पब्स। रंगीन और चमकदार। संगीतमय और नृत्यमय। पूछा तो पता चला कि वाकिंग स्ट्रीट होटल से पास ही था। फिर क्या था ..चल पड़े वाकिंग स्ट्रीट की ओर। आपको बता दें कि थाईलैंड में जिस्म का धंधा गैर कानूनी है लेकिन इसे अनदेखा करते हुए लड़कियों ने इसे अपना पेशा बना लिया है और इस समय थाईलैंड में करीब 1 लाख 23 हजार सेक्स वर्कर हैं। खैर रास्ते में जगह जगह सेक्स वर्कर खड़ी थीं …ग्राहकों को रिझाने में व्यस्त। रास्ते में मसाज पार्लर और दूकानों का नजारा लेते हुए जा पहुंते वाकिंग स्ट्रीट।
संगीत की धुन पर थिरकती, हंसती और मुस्कुराती लड़कियां हर तरफ नजर आ रही थीं। ऐसा लग रहा था, बीयर-बार की बालाएं दूल्हे और बाराती के स्वागत के लिए खड़ी हों। स्ट्रीट की दोनों तरफ लड़कियां ही लड़कियां। उपलब्ध लड़कियां, जो आपके एक इशारे पर आपके साथ कहीं भी चलने को तैयार। आपका एक इशारा ही काफी है। इशारा कीजिए। कीमत तय कीजिए और अपने साथ ले जाइए। हमारे सामंती समाज की सामंती भाषा में ऐसी औरतों को रंडी जैसे शब्द से संबोधित किया जाता है, वेश्या कहा जाता है। वॉकिंग स्ट्रीट पर थाई युवतियों के बीच रूसी लड़कियों की संख्या भी अच्छी खासी थी। इसे ग्लासनोस्त और पेरिस्त्रोइका का यह करिश्मा कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा। वेश्यावृत्ति का उन्मूलन साम्यवादी सोवियत संघ की एक सबसे बड़ी सामाजिक उपलब्धि थी। जो भी वेश्यागामी उस दौर में पकड़ाते, उसकी तस्वीर उतार कर चौराहे पर टांग दी जाती और उसके नीचे लिख दिया जाता था – मैं रंडीबाज हूं। इस भय से वेश्यागमन खत्म हो गया था। लेकिन साम्यवादी सोवियत संघ के विघटन के बाद वहां फिर से वेश्यागमन न सिर्फ शुरू हुआ बल्कि वहां की लड़कियां पूरे विश्व में फैल गईं।


हम दोनों वॉकिंग स्ट्रीट पर चल रहे थे तभी पीछे से एक सुंदर-सी थाई लड़की आती दिखी। थाई, चीनी, रूसी, जापानी और दुनियाभर के देशों की लड़कियों
को आप यहां देख सकते हैं। वे आपकी जेब को देखती हैं और फिर आपके जिस्म और जेब को ढीला करने के वास्ते अपनी जिÞन्दगी की एक रात आपके हवाले कर सकती हैं। मैंने सहज भाव से हलो कहा और वह भी मुस्कुराते हुए हलो बोलकर साथ-साथ चलने लगी। मैंने पूछा, वेयर आर यू फ्रॉम?
वह बोली, आई एम फ्रॉम थाईलैंड। लाल ड्रेस में उसका चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे काले बादलों के बीच से चांद झांक रहा हो। आंखें सुंदर थीं। बदन गठीला और छरहरा। रंग गोरा। रंगबिरंगी रोशनियों से वॉकिंग स्ट्रीट नहाया हुआ था। बातचीत का सिलसिला जारी था। वह एक नौकरी पेशा युवती थी। बातचीत करते हुए हमलोग वॉकिंग स्ट्रीट के अंतिम छोर पर पहुंच गए थे। समंदर की लहरों की आवाज सुनाई पड़ रही थी। स्ट्रीट पर ही हमलोग बैठ गए। सुगन ने मुझसे पूछा, आपका क्या इरादा है?
मैंने कहा, इरादा क्या होगा? आपने सुना, वन थाउजंड बाट फॉर वन शॉट। रुपये के जरिये कामसुख ऐसा ही होता है। रुपया दीजिए और सीधे सेक्स कीजिए। इसमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। इसमें मुझे मजा नहीं दिखता। न बात, न चीत। सीधे ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट। मुझे अटपटा लगता है। जब तक बौद्धिक बातचीत न हो, राग और अनुराग का भाव उत्पन्न न हो, तब तक यौनक्रिया में सुख नहीं दिखता। मेरा इस मामले में बिल्कुल अलग नजरिया है। मुझे हर प्रकार की स्त्रियों से बातचीत पसंद है। बस। सुगन ने भी छूटते कहा,मेरी सोच भी यही है। नो सेक्स विथ स्ट्रेनजर। हमारे मना कर देने पर वह लड़की मुस्कुराते हुए किसी और की तलाश में वहां से चली गई। दूसरे दिन हमारा कॉरल आइलैंड का टूर था। सुबह करीब साढ़े नौ बजे हम समुद्र किनारे पहुंच गए। उमस भरा मौसम और खिली हुई धूप। तेज हवा। नीला आकाश और मटमैला समुद्र। एक लेडी सभी पर्यटकों को लाइन में खड़ा करवा रही थी। हम भी लाइन में खड़े हो गए। कलाई पर ठप्पा लगवाने के बाद वोट में सवार हुए। हमारी बोट समुद्र की लहरों पर ऊपर-नीचे होते हुए कॉरल
आइलंड की ओर बढ़ रही थी। अनेक रंगबिरंगी मोटर बोट समुद्र में दौड़ रही थीं।
कुछ देर के बाद हमारी बोट समुद्र के बीच बने लकड़ी के एक प्लेटफार्म पर रुकी। वहां वाटर स्पोर्टस होता है…पारा ग्लैडिंग,ली वाकिंग,वाटर स्कूटर रेसिंग…। दो घंटे बाद वहां से हमारी वोट रवाना हुई और कॉरल आइलंड के तट पर रुकी। दुनियाभर के विदेशी सैलानी। समुद्र की लहरों से खेलते लोग। रंगबिरंगे वॉटर स्कूटर। लहरों पर दौड़ते बच्चे, बच्चियां, युवक-युवतियां। घूप तो तेज थी लेकिन बड़ा ही ग्लैमराइज्ड नजारा था। धूप में रेत पर लेटे लोग। रंगबिरंगी छतरी से भरा तट। छतरी के नीचे सी बीच कुर्सी। कुर्सी पर आराम से लेटे लोग। कुछ बियर पीते। कई अमरूद, तरबूज और नारियल का मजा लेते हुए। छतरी के नीचे कुर्सी पर हमने भी रिलैक्स किया। संपूर्ण कॉरल आइलंड धूप से चमक रहा था। नर्म-मुलायम सफेद धूप के चूमने से रेते सोने की तरह सुनहरी लग रही थी। हम दोनों आराम कुर्सी पर बैठे थे। सामने आंखों के आगे लहराता समुद्र था और पीछे बाजार। हम लोग बाजार का जायजा लेने उठे। दुकानों की लंबी कतार थी। कपड़े और खाने की ढेर सारी चीजें बिक रहीं थीं। सी-वॉक के समय जिन समुद्री जीवों को देखा था, वे यहां व्यंजन रूप में बिक रहे थे। दिन ढलने लगा था। दिनभर का थका-हारा लाल सूरज समुद्र में डुबकी लगाने जा रहा था। रेत पर सर पटकती समुद्र की नीली और उदास लहरें रेत से दूर समुद्र में लौट रही थीं। हमदोनों भी बोट पर सवार हुए। बोट पटाया सिटी की तरफ दौड़ रही थी। विशाल समुद्र की गहराई में खोए कब पटाया के तट पर पहुंच गए, यह ध्यान ही नहीं रहा। बोट रुकी तो होश आया कि बोट से उतरना है। उतरे,वैन में सवार हुए और जा पहुंचे एक मॉल स्थित रेस्तरां में जहां लंच हमारा इंतजार कर रहा था। खाना खाने के बाद होटल वापस लौटे और कमरे में आकर मैं नहाने के लिए बाथरूम चला गया। रेत और समुद्र के पानी के चिपचिपेपन से बदन बेहाल था। नहाने के बाद राहत मिली। नहा-धोकर बाथरूम से बाहर निकले और बिस्तर पर सीधे हो गए। सुगन बाथरूम में नहाने चले गए।


तीसरा दिन रवानगी थी बैंकाक ले लिए। दोपहर 12 बजे पटाया से बैंकाक के लिए चले और करीब 3 बजे पहुंच गए होटल बायोके स्काइ। गलियों में स्थित 88 मंजिला यह होटल अकल्पनीय है। औपचारिकता पूरी करने के बाद अपने कमरे में पहुंचे जो 40वीं मंजिल पर था। 40 मंजिल से बैंकाक शहर देखने के आनंद को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। बैंकाक में दो दिन रहने व घूमने के बाद दिल्ली के लिए रवानगी। ट्रैवल एजेंट ने शाम 5 बजे स्वर्णभूमि एयरपोर्ट पर ड्राप कर दिया। थाइलैंड छोड़ने से पहले एयरपोर्ट की कुछ औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए वीजा,पासपोर्ट और टिकट आदि जरूरी पेपर लेकर कतार में खड़े हो गए। साथ में विभिन्न देशों के सैलानी खड़े थे। तमाम औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद हमदोनों एयरपोर्ट के अंदरुनी हिस्से में घूमने लगे। बैंकॉक एयरपोर्ट एक बड़े बाजार के रूप में दिख रहा था। ढेर सारे ड्यूटी फ्री शॉप्स। दुनियाभर की चीजें बिक रही थी। चीजें पटाया और कोरल आइलैंड के बाजारों से महंगी थीं। रात 8 बजे की फ्लाइट थी। समय से थोड़ा पहले हमदोनों हवाईजहाज के भीतर पहुंचे। अपनी सीट पर बैठे। इस बार खिड़की वाली सीट मुझे मिली। सुगन मेरी बगल में बैठे। सीटबेल्ट बांधा। थोड़ी देर बाद हवाईजहाज रन-वे पर दौड़ने लगा। यह दृश्य बेहद सुंदर लग रहा था। हवैआजहाज जमीन छोड़ चुका था। आकाश में ऊपर उठ रहा था। बैंकाक का विहंगम दृश्य दिखाई पड़ रहा था। मौसम साफ और सुहाना था। हमारा हवाईजहाज थाईलैंड की हरियाली और खुशहाली से दूर ऊपर बादलों के झुरमुट में उड़ने लगा था। 3 घंटे 45 मिनट की उड़ान के बाद हवाईजहाज के उतरने की घोषणा हुई। हवाईजहाज ने दिल्ली एअरपोर्ट पर लैंड किया। सुगन के मुंह से निकला झ्र लैंडिंग अच्छी थी। स्मूथ। रन-वे पर दौड़ता हुआ हमारा विमान रुका और थाइलैंड ट्रिप पूरी हुई,इस उम्मीद के साथ कि फिर कभी दुबारा आने का कोई आॅफर मिले तो …..एक बार फिर तितलियों के देश की सैर की जा सकती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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