उपचुनाव के परिणाम से भाजपा में सुगबुगाहट तो हुई जरूर

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की दो महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार के बाद पार्टी के अंदर तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं. दोनों सीटों पर जीत को लेकर भाजपा आश्वस्त थी. गोरखपुर की सीट उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खाली की थी तो फूलपुर की सीट उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने. इसके बावजूद भाजपा दोनों सीटें हार गई. इनमें गोरखपुर की सीट तो ऐसी है जहां पार्टी 29 साल बाद हारी है. चाहे लहर किसी की भी रही हो, गोरखपुर सीट भाजपा ही जीतती ही रही है. 1989 से लेकर इस उपचुनाव के पहले तक गोरखनाथ पीठ के प्रमुख इस सीट से सांसद रहे हैं. पहले महंथ अवैद्यनाथ और बाद में योगी आदित्यनाथ. पहली बार इस सीट पर भाजपा ने मठ के बाहर के किसी को उम्मीदवार बनाया था. लेकिन केंद्र और राज्य में अपनी सरकार होने के बावजूद पार्टी यह सीट हार गई. इसके उलट फूलपुर भाजपा की पारंपरिक सीट नहीं रही है. 2014 में पहली बार इस सीट पर भाजपा को जीत मिली थी. उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य यहां जीते थे. 2014 में केशव प्रसाद मौर्य को यहां 52.43 प्रतिशत वोट मिले थे. फिर भी इस उपचुनाव में भाजपा जीत नहीं सकी. अतीक अहमद के बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में होने और कुछ मुस्लिम वोट काटने के बावजूद यह सीट सपा जीत गई. अतीक अहमद और कांग्रेस उम्मीदवार को इस सीट पर तकरीबन 65,000 वोट मिले फिर भी भाजपा की हार का अंतर 59,000 से अधिक रहा.
मीडिया में गोरखपुर की हार को योगी आदित्यनाथ के लिए निजी झटका बताने वालों की कमी नहीं है. लेकिन पार्टी के अंदर की सच्चाई कुछ और ही है. दरअसल, पार्टी के लोगों का कहना है कि इस हार से योगी कमजोर नहीं बल्कि मजबूत हुए हैं. गोरखपुर में योगी जिसे उपचुनाव का टिकट दिलाना चाहते थे, उसे दिया नहीं गया. पहले तो योगी की इच्छा था कि गोरखनाथ मठ के ही किसी व्यक्ति को टिकट मिले. ऐसा नहीं होने पर भी योगी की पसंद उपेंद्र शुक्ला नहीं थे. लेकिन पार्टी ने योगी की इच्छा के उलट जाते हुए शुक्ला को उम्मीदवार बनाया. एक वर्ग के मुताबिक अब पार्टी के अंदर योगी कहेंगे कि अगर उम्मीदवार उनकी पसंद का होता तो गोरखपुर में भाजपा नहीं हारती. योगी पर अपना निर्णय थोपने वाले बड़े नेताओं को अब रक्षात्मक रुख अपनाना पड़ेगा.
दरअसल, विधानसभा चुनावों में भाजपा की सीटों की संख्या 300 के पार पहुंचने की सबसे बड़ी वजह यही बताई गई कि अन्य पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग के बहुत सारे लोगों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को एक बड़ी वजह माना जाता है. लेकिन इन वर्गों का साथ भाजपा को मिलने की एक बड़ी वजह यह भी थी कि चुनावों में जीत के बाद पिछड़े वर्ग से आने वाले उस समय के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के मुख्यमंत्री बनने की संभावना थी. लेकिन नतीजों के बाद ऐसा नहीं हो पाया और ठाकुर समाज से आने वाले योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया. भाजपा के अंदर यह बात चल रही है कि संभव है कि इससे पिछड़े वर्ग के लोगों को यह लगा हो कि भाजपा ने उनके योगदान को महत्व को नजरंदाज किया और फिर से इस वर्ग के लोगों न सपा-बसपा का रुख कर लिया हो.

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.