CAB : कोविड महामारी में जन सहभागिता बिना जंग जीतना नहीं आसान

कोरोना से जूझते हुए पूरी दुनिया को करीब डेढ़ साल हो चुका है। आज भी कई देश संक्रमण से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। भारतीय परिप्रेक्ष्य में बात करें, तो इसका असर देश के कई राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में है। कई राज्य अनलॉक की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं, लेकिन डर वहां भी है। कई राज्यों ने लॉकडाउन की अवधि कुछ सप्ताह के लिए बढ़ा दी है। इस समयावधि में भी स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार कोरोना उपर्युक्त व्यवहार करने की बात कह रहे हैं।
लॉकडाउन कोरोना संक्रमण का इलाज नहीं है, बल्कि एक सरकारी अनुशासनात्मक नीति है। जिससे संक्रमण की दर को रोका जा सकता है। बीते साल केन्द्र सरकार की ओर से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा हुई, तो इस वर्ष केन्द्र सरकार की सलाह पर राज्यों ने अपने सीमा क्षेत्रों में पाबंदी लगाई। लोगों ने लॉकडाउन के नियमों का पालन किया, जिसकी वजह से संक्रमण की दर में कमी आ रही है। इन नियमों के साथ ही केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से समय-समय पर कोरोना उपर्युक्त व्यवहार अपनाने की हिदायत दी जाती है।
इंसान सबसे समझदार प्राणी है जिसमें समय के साथ सामंजस्य करने की गजब की क्षमता है। हम सामाजिक प्राणी हैं, मगर कोरोना ने हमारी स्वाभाविक गतिविधियों को जानलेवा कमजोरी में बदल दिया है। हमें अपनी पुरानी दिनचर्या और आदतों को अब नई आदतों और तौर-तरीकों से बदलना होगा। अपने आचरण को इस महामारी के हिसाब से ढालना होगा। तो सवाल उठता है कि हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए? आज जब कोरोना के कारण हाथ मिलाना और गले लगना असामाजिक माना जा रहा है, तब भी हम इसे सामाजिक कैसे कह सकते हैं?
इसका एक ही जवाब है कि स्वास्थ्य विशेषज्ञों की ओर से जो सलाह दी जा रही है, उसका पालन करें, तो आप सामाजिक दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। देश के जाने-माने डॉक्टर्स और वैज्ञानिक भी देश के लोगों से कोरोना से जंग लड़ने के लिए मास्क, सेनिटाइजर, समय-समय पर हाथ धोने, दो गज की दूरी आदि नियमों का पालने करने की सलाह दे रहे हैं।

हमारे समाज में जब तक यह जागृति हर स्तर पर नहीं पहुंचेगी, हम कोरोना को पूरी तरह से नहीं हरा सकते हैं। बचपन से लोगों को स्कूल में नागरिक कर्तव्यों के बारे में पढ़ाया जाता है। सही अर्थों में कोरोना महामारी के दौरान सामाजिक दायित्व का पालन करना बेहद जरूरी है। समाज से राज्य और राज्य से देश प्रभावित होता है। हर नागरिक और समाज का दायित्व है कि वह कोरोना उपर्युक्त व्यवहार का पालन करें।
हमारे समाज में एक तबका ऐसा है, जो हर बात में यूरोपीय देशों का उदाहरण देकर ही बात करना और समझना चाहता है। उन लोगों को हाल ही में आई एक रिपोर्ट को ध्यान में रखना चाहिए, जिसमें यह बताया गया कि अमेरिका में 36 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज ले ली। इस दौरान उन लोगों ने कोरोना उपर्युक्त व्यवहार का पालन भी किया। उसके बाद सरकार ने ऐसे लोगों को मास्क पहनने की छूट दे दी। अब वे सामान्य जीवन में आ गए।
अब सवाल उठता है कि क्या हमारा समाज ऐसा नहीं कर सकता है? भारत बहुत ही अधिक घनी आबादी वाला देश है। खासकर दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में कई जगहों पर एक कमरे में कई लोग एक साथ रहते हैं। कुछ बड़े शहरों में भी यही स्थिति है, ऐसे में सामाजिक दूरी का पालन करना चुनौतीपूर्ण है। लेकिन कुछ आदतें सामान्य व्यवहार में अपनाकर स्थिति सुधर सकती है। आप जब बाहर जाएं, उस समय मास्क अनिवार्य रूप से पहनें। उसके बाद जब घर में हों और लोगों की संख्या अधिक हो, तो मास्क पहनने से कोई नुकसान नहीं है, इससे फायदा ही होगा, क्योंकि संक्रमण से अब परिवार के सभी सदस्य संक्रमित हो रहे हैं।
हमें यह समझना होगा कि अगर कोई व्यक्ति घर से बाहर नहीं जा रहा तब तो ठीक है, लेकिन अगर कोई एक भी घर से बाहर जा रहा है, तो वह बाहर से संक्रमण ला सकता है। हो सकता है वो खुद ए-सिम्प्टोमैटिक हों और घर के बाकी बड़े लोगों को संक्रमित कर दें। इसलिए बहुत जरूरी है कि लोग मास्क पहनें।
अभी भी कई राज्यों से यह खबर पढ़ने और सुनने में आती है कि लोग न तो मास्क लगाते हैं और न ही कोरोना वैक्सीन के लिए केन्द्रों तक जा रहे हैं। सरकार की ओर से तमाम माध्यमों से यह संदेश दिया गया कि अभी के समय में कोरोना नियमों का पालन करें और वैक्सीन लगवाएं। बावजूद, इसके लोग अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह नहीं कर रहे हैं। देश को स्वस्थ और सुरक्षित करने में प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी जरूरी है।

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