भाजपा को क्यों चाहिए शिवराज का विकल्प ?

भोपाल। मध्य प्रदेश में बदलाव की आहट सुनाई दे रही है.संकेत ‘सरकार का चेहरा’ यानी मुख्यमंत्री बदले जाने के हैं. और ये संकेत जिस स्तर पर मिल रहे हैं कि उन्हें देखकर सियासी समझ रखने वाले तो ये भी कहने लगे हैं कि छह महीने में होने वाले चुनाव के बाद सरकार बदलने में कांग्रेस क़ामयाब हो न हो पर भाजपा ज़रूर ‘सरकार’ बदल देगी. ऐसे में भाजपा की तरफ़ से मिलने वाले संकेतों का जायज़ा लेना निश्चित ही काफ़ी रोचक और अहम हो सकता है लेकिन, इससे पहले कांग्रेस की उन कोशिशाें पर एक नज़र जो वह सरकार बदलने के लिए कर रही है.
अभी तीन मई की ही बात है. झाबुआ जिले में आनंद विभाग के कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सबको चौंका दिया. कार्यक्रम खत्म होने से पहले ही यहां से निकलते हुए उन्होंने अपनी खाली कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘मेरे कुछ और कार्यक्रम हैं तो जल्दी जाना पड़ेगा. इससे एक मौका और मिलेगा. यह कुर्सी जिस पर लिखा है- माननीय मुख्यमंत्री- उस पर भी कोई बैठ सकता है.’ इससे तरह-तरह के क़यासों का दौर शुरू हो गया. इस क़यासबाज़ियों की वज़ह भी थी. पहली- एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री दिल्ली से लौटे थे और दूसरी- अगले दिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह प्रदेश इकाई के प्रमुख राकेश सिंह के ख़ास बुलावे पर कर्नाटक का चुनाव प्रचार छोड़कर भोपाल आ रहे थे. सूत्रों की मानें तो अमित शाह ने भोपाल आकर प्रदेश अध्यक्ष से यह कहा भी कि वे ख़ास तौर पर उनके आग्रह की वज़ह से आए हैं. यही नहीं, मंच से शाह ने इससे भी आगे की बात कह दी. उनका कहना था, ‘इस बार मध्य प्रदेश के चुनाव में कोई चेहरा नहीं होगा. यहां पार्टी चुनाव लड़ेगी.’ सो यहां से यह चर्चा गंभीर हो जाती है क्योंकि इससे पहले अमित शाह कहते रहे हैं कि मध्य प्रदेश में शिवराज ही भाजपा का चेहरा होंगे.
ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक हैं कि क्या मध्य प्रदेश में भाजपा ख़ुद ही अपनी सरकार बदल सकती है? और हां तो कब और फिर उसके पास विकल्प क्या होंगे? मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री बदले जाने की संभावनाएं कई कारणों से हैं. पहला तो यही कि शिवराज को प्रदेश में राज करते हुए 13 साल से ज़्यादा हो चुके हैं. लेकिन इतना वक़्त बीतने के बाद भी हालात ये हैं कि नीति आयोग के मुताबिक बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्य देश को विकास के मोर्चे पर पीछे धकेल रहे हैं.
कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्य प्रदेश के मंडल जिले में ‘राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस’ का उद्घाटन करने आए थे. यहां के रामनगर नाम के कस्बे से उन्होंने सीधे 2.44 लाख पंचायतों को संबोधित किया और जबलपुर के डुमना हवाईअड्‌डे पर बंद कमरे में प्रदेश के आठ जिलों के कलेक्टरों को भी. ये उन जिलों के कलेक्टर थे जिन्हें नीति आयोग ने ख़ास तौर पर ‘पिछड़े’ के तौर पर चिह्नित किया है. सूत्र बताते हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री की मौज़ूदगी में हुई बैठक के दौरान कलेक्टरों के कमजोर प्रस्तुतीकरण से प्रधानमंत्री ख़ासे नाराज़ दिखे. जाते-जाते उन्होंने इन कलेक्टरों को हिदायत दी कि चार-छह महीने में कुछ ऐसा करें कि बदलाव बड़े पैमाने पर दिखाई दे. बल्कि ख़बर तो यहां तक है कि प्रधानमंत्री ने इन आठ जिलों में विकास योजनाओं के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी सीधे अब अपने आठ अलग-अलग मंत्रियों को सौंप दी है.
कहा यह भी जा रहा है कि जबलपुर में प्रधानमंत्री की कलेक्टरों को दी गई चेतावनी अप्रत्यक्ष रूप से शिवराज के लिए भी थी जिनके बारे में माना जाता है कि वे घोषणाएं खूब करते हैं पर उनमें से आधी भी अमल में नहीं आतीं. एक स्थानीय अख़बार ने अभी हाल में ही अपनी पड़ताल के आधार पर यह तथ्य उजागर किया है. शिवराज सिंह चौहान कृषि के क्षेत्र में प्रदेश की उपलब्धियों का खूब बखान करते हैं. इसके बावज़ूद पिछले साल का किसान आंदोलन जगज़ाहिर है. इसकी परिणति मंदसौर गोलीकांड के रूप में हुई थी. अब ख़बर है कि जून में एक बार राज्य में किसान आंदोलन फिर शुरू हो सकता है. यानी कृषि क्षेत्र में कथित उपलब्धियों के बावज़ूद कृषक वर्ग नाख़ुश है. सरकार ने इस वर्ग को राहत देने के लिए भावांतर योजना शुरू की है, लेकिन वह भी भंवर में उलझी ही दिखती है. माना यह भी जाता है कि राज्य के मंत्रियों और अफसरों पर भी शिवराज का बहुत नियंत्रण नहीं है. यहां तक कि वे पिछले कई मौकों पर अपने कई दागी मंत्रियों को हटाने तक का जोखिम नहीं ले पाए. फिर इसी साल हुए कुछ उपचुनाव के नतीजे भी हैं जिनमें पूरा जोर लगाने के बाद भी शिवराज भाजपा के प्रत्याशियों को जिता नहीं पाए.

 

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