कैश की समस्या ,कही राजनीतिक षडयंत्र तो नही?

कृष्णमोहन झा

देश मे लगभग देढ़ साल पहले 500 एवं 1000 रुपये के नोटों को प्रचलन से बाहर किये जाने की घोषणा के बाद नगदी की कमी के जिस भयावह संकट से आमआदमी को जूझना पड़ा था उस संकट की दुखद यादें एक बार फिर ताजा हो उठी । एटीएम और बैंकों के बाहर नोटबन्दी के दौरान जो भीड़ देखने को मिलती थी वैसे ही लंबी कतारें देश के 12राज्यो के बैंको के बाहर आज भी देखने को मिल रही है। इन राज्यो में नकदी के भयावह संकट ने आम नागरिक मध्यमवर्गीय,व्यापारियों,किसानों को बेहद परेशानी की स्थिति का सामना करने के लिए विवश कर दिया है। एटीएम से पर्याप्त धनराशि ना निकलपाने से निराश उपभोक्ता जब अपना दुखड़ा बैंक अधिकारियों के सामने रोते है तब वहां भी उनकी सुनवाई करनेवाला कोई नही है। बैंक अधिकारियों द्वारा संतोषजनक जवाब दिये जाने के बजाय केवल टालमटोल करके उपभोक्ताओं को वापस लौटाया जा रहा है। बैंको से एक ही जवाब मिलता है कि हमे आरबीआई द्वारा वांछित मूल्यों के नोटों की आपूर्ति नही हो रही है,तो हम कहा से भुगतान करें। अब सवाल यह उठता है कि स्थिति कब तक ऐसी बनी रहेगी ? शादियों के इस मौसम में वे लोग बेहद परेशान है जिनके यहां आगामी दिनों में वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न होने वाले है परंतु शादी के साजो सामानों की खरीदी के लिये बैंको और ्रञ्जरू से उन्हें निराश होकर लौटना पड़ रहा है। केन्द्र सरकार द्वारा बार बार यह दिलासा दिया जा रहा है कि यह नगदी का संकट अस्थायी है और अगले दो तीन दिनों में ही स्थितियों में सुधार आने लगेगा। परन्तु सरकार यह मानने को तैयार ही नही है कि नगदी का संकट एक दो दिन में भयावह होने के संकट पहले ही नजर आने लगे थे। कुछ राज्यो के अधिकारियों ने तो संभावित संकट के बारे में पहले ही सरकार को आगाह कर दिया था,परंतु सरकार इन सूचनाओ को गंभीरता से नही लिया था और जब पानी गले तक आ पहुंचा तो सरकार यह दावा करने में पीछे नही रही कि दो तीन दिनों में हालात में सुधार आने लगेगा,और अब ऐसी आशंकाये बलवती होती जा रही है कि नगदी का यह संकट जल्द हल होने के आसार धूमिल हो चुके है। आशचर्य की बात तो यह है कि जिन राज्यो में नकदी का संकट झेलना पड़ रहा है उन राज्यो की सरकारों और केंद्र सरकार के बयानों में भी विरोधाभास है। मध्यप्रदेश के वित्त मंत्री जयंत मलैया का कहना है कि 2000 के नोटो की कालाबजारी की जा रही है और जमाखोरी की वजह से 2000 के नोटो की कमी की वजह से यह स्थिति निर्मित हुई है। मलैया ने कहा कि रिजर्व बैंक से नोटो की पर्याप्त मात्रा में पूर्ति नही हो रही है जिससे यह हालत पैदा हुये है,उन्होंने प्रदेश की जनता से कैश में लेनदेन कम करने की अपील की है। पर आरएसएस के सरसंघचालक इस बारे में अलग ही राय रखते है,उनका कहना है कि भारत जैसे देश मे केश लेश समाज संभव नही है। गांवो में केश का जिस तरह का संकट देखने को मिल रहा है उससे देखते हुये भागवत जी का कथन सही प्रतीत होता है। राज्य सरकार ने 5 दिनों पहले ही किसानों के खाते में 1650 करोड़ की राशि जमा की है परंतु कैश की भयावह कमी की वजह से किसान यह राशि निकालने से वंचित रह गये। दरसल नगदी का यह संकट इस लिए भी निर्मित हुआ क्योंकि शादियों और धार्मिक त्योहारों को धूम धाम से मनाने के लिए संबंधित वर्गो के लोगो ने बड़ी मात्रा में धनराशि आहरित करली परंतु सवाल यह उठता है कि सरकार यह अनुमान लगाने से क्यो चूक गई कि उक्त वजहो से बैंको में नकदी का संकट न पैदा हो पाए। 2000 मूल्यों के नोटो की भयावह कमी का एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि आगामी माह में कर्नाटक में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के कारण नगदी की मांग भी असाधारण रूप से अधिक बढ़ गई है,यदि ऐसा वास्तव में है तो सरकार को इस बात का ध्यान भी रखना होगा कि इस वर्ष के अंत मे मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान राज्यो में विधानसभा चुनाव होने है,उस समय भी उन राज्यो के नागरिकों को कैश किल्लत से जूझना पड़ सकता है। अब देखना यह है कि इस समस्या के निदान के लिए सरकार कौन सा कदम उठायेगी। सरकार की तरफ से बार बार यह दावे किये जा रहे है कि नगदी का यह संकट जल्द से जल्द दूर कर लिया जायेगा,परंतु ऐसे ही दावे सरकार तब भी किये थे जब 500 आवर 1000 के नोटो को सरकार ने प्रचलन से बंद कर दिया था। तब भी एक दो माह में स्थिति सामान्य होने के दावे किए गए थे लेकिन वास्तविकता में स्थिति सामान्य होने में 6 माह का समय लग था। देश के नागरिक बड़ी मुसीबतों से समय काटे थे।
केंद्र और राज्य सरकारों को भी इस बात का पता लगाना चाहिए कि वास्तव में साजिशन बड़े नोटो को गायब कर इस तरह की स्थिति का निर्माण किया जा रहा है तो इसके पीछे कौन लोग है ? अब यह भी आशंका व्यक्त की जाने लगी है कि कालेधन पर काबू पाने के लिए अगर 500 ओर 1000 के प्रचलित नोटो पर पाबंदी लगाई गई थी तो यकायक 2000 के नोटो की अनुपलब्धता भी तो कालाधन की वजह तो नही है? सरकार यह भी मानती है कि पिछले 6 महो से 2000 के नोटों की छपाई बंद है इसलिये इन नोटों की कमी की स्थिति निर्मित हुई है,परंतु सरकार को गहराई में जाकर यह पता लगाना होगा कि आखिर एकाएक यह संकट क्यो पैदा हुआ। वित्त मंत्रालय में विभाग के आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने जानकारी दी है कि नगदी संकट को दूर करने के लिए 500 रुपये मूल्य के नोटो की छपाई बढा कर 5 गुनी कर दी गई है। देवास के प्रेस में 4 -4 पालियो में नोटों की छपाई शुरू कर दी गई है।
यहां इस सच्चाई को भी नजरअंदाज नही किया जा सकता कि जब भी नकदी का संकट भयावह रूप लेता प्रतीत होता है तो लोग अपने घरों में नगदी संग्रहित करने लगते है। लोगों को यह भरोसा दिलाना सरकार की जिम्मेदारी है कि वह उन्हें उनकी आवश्यकता के अनुसार नगदी की उपलब्धता सुनिश्चत करेगी। परंतु सरकार लोगो को यह भरोसा दिलाने में असफल रहती है तो नगदी की कमी का संकट आगे भी पैदा हो सकता है। देखना यह है कि सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से अगर मुह मोड़ेगी तो देढ़ साल पहले अचानक की गई नोटों की बंदी की कड़वी यादे लोगो के जहन में हमेशा ही बनी रहेगी, और राजनैतिक दल वोट कबाडऩे में इसे उछालते रहेंगे।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)

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