आ, अब लौट चलें प्रकृति की गोद में

कमलेश भारतीय 
कोरोना के संकट ने एक बार फिर यह बात सिद्ध कर दी कि हर चीज़ के दो पहलू होते हैं -अच्छा भी और बुरा भी । बुरा तो यह कि ज़िंदगी की रफ्तार थम गयी । खेत खलिहान तक सब कुछ थम गया । लाॅकडाउन तो क्या कई जगह कर्फ्यू जैसी हालत हो गयी । स्कूल , काॅलेज , यूनिवर्सिटीज सब जगह सन्नाटा । क्या रेल , क्या हवाई जहाज सब अपने अपने स्थान पर जाम । रेल कोच में तो अस्पताल का लुक लाया जा रहा है । होटल भी ऑफर किए जा रहे हैं तो अन्य सामाजिक स्थान भी कोरोना से बुरी तरह प्रभावित हैं । कितनी बुराइयां चाहूं तो गिना सकता हूं या आप गिना सकते हैं । पर आप दूसरा पहलू भी देखिए न । कभी इस आपाधापी की ज़िंदगी में परिवार ने कभी एकसाथ बैठ कर खाना खाया था ? कभी एक साथ बैठ कर अंताक्षरी खेली थी ? घर  के एक एक कमरे में सब अपने अपने मोबाइल में बिजी रहते और फिर काम काज के लिए निकल जाते । अब रफ्तार थमी तो रिश्तों में नयी और ताज़ा हवा आई । हंसते खेलते चेहरे आए । नकली पार्कों वाली हंसी नहीं सचमुच की हंसी । प्रकृति कितनी निखर गयी ? सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की जुबानी सुनिए कि दिल्ली में इससे पहले कभी रात में इतने तारे आसमान पर नहीं देखे । कभी मोरों का झुंड इस तरह नहीं देखा और यमुना इतनी स्वच्छ नहीं देखी ।
काश , यह लाॅकडाउन जुलाई तक चले । एक मासूम बच्चे जैसी इच्छा । बच्चा भी प्रकृति के निकट रह कर प्रसन्न रहता है और जैसे जैसे प्रकृति से दूरी बढ़ती जाती  है वैसे वैसे चिड़चिड़ा होता जाता है । वही हाल आज के दौर के आदमी का है । चिड़चिड़ा , काम के बोझ का मारा । सारे जहां का दर्द दिल में समाए हुए । न परिवार की परवाह , न परिवार की खबर । तभी तो चुटकुला आया कि बच्चे कितने बड़े हो गये तो लम्बाई की बजाय चौड़ाई बताने लगे क्योंकि कभी बच्चों को दिन में खेलते कूदते देखा ही नहीं । जब घर गये तब रात हो चुकी होती थी । प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की कविता पढ़ी थी -आह । प्रकृति कितना देती है ।
प्रकृति तो फल , फूल और सुगंध क्या क्या देती है । इसी को देखकर बाल मन पैसे रोप देता है धरती पर और फिर पैसे भी नहीं मिलते खोजने पर । प्रकृति पैसे से दूर और दिल में सुकून देती है । हमने जल , जंगल और ज़मीन को अपने फायदे के लिए इतना दुह लिया , निचोड़ डाला कि प्रकृति भी हमसे रूठ गयी और कोरोना लेकर आई । हम सब को घरों में लाॅकडाउन कर खुद ही अपना रूप संवारने लग गयी । प्रकृति ने अपने काम में दखल बंद कर दिया मानव का । इस लाॅकडाउन के सबक अनेक हैं । चंडीगढ़ से पहाड़ बहुत साफ दिखने लगे हैं । प्रकृति ने अपने हाथों में मनुष्य को खिलौना बना कर दिखा दिया है । काश , ये सबक लाॅकडाउन के बाद भी याद रह जाएं ।
आ , अब लौट चलें ,,,प्रकृति की ओर

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