नई दिल्ली / टीम डिजिटल। लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद बजाय सामुहिक चिंतन करने के राहुल गांधी ने एकांत में चिंतन किया और एक फैसला किया कि मैं कांग्रेस को नेहरू गांधी परिवार से मुक्त करूंगा । घोषणा कर दी और फिर चाहे कोई मनाने आया अपने फैसले से पीछे नहीं हटे । चाहे नवनिर्वाचित सांसद आए या फिर अशोक गहलोत , शीला दीक्षित लेकिन राहुल नहीं माने । सिर्फ दो महीने से भी कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने ट्वीट कर दिया कि मैं कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं । मुझे अपने कार्यकाल में सभी ने जो सहयोग किया उसके लिए हार्दिक आभार । अब कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष हैं मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल बोरा । लीजिए हो गयी कांग्रेस गांधी परिवार से मुक्त । किसी और ने नहीं की । खुद एक गांधी ने ही की ।
आखिर यह कहा जा सकता है कि राहुल अगले पांच साल के संघर्ष से बच निकले । पहले अमेठी छोडी और वायनाड भाग गये । अब अध्यक्ष पद छोडकर कहां छायेंगे ? बहुत बडा सवाल है । यदि मोतीलाल बोरा को भी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह कठपुतली अध्यक्ष बनाया गया तो यह और भी शर्मनाक स्थिति होगी । मनमोहन सिंह बेशक योग्य थे लेकिन राजनीतिज्ञ तो नहीं थे । इसीलिए कहा जाता था कि सरकार कल गयी तो सोनिया की और फेल हुई तो सरदार की । अब यह स्थिति कांग्रेस अध्यक्ष की न बने । बस । इतना ध्यान रखना बाबा राहुल । अब तो सचमुच यह दुआ देने को दिल करता है कि कम से कम घर तो बसा लो । शुभकामनाएं पर किसे ? राहुल को या मोतीलाल बोरा को ?