नई दिल्ली।डायबिटीज (मधुमेह) एक वैश्विक समस्या है। विकासशील देशों में यह रोग एक महामारी का रूप ले चुका है; आयु, मोटापा और जीवनशैली जैसे कारक इसे व्यापक बना रहे हैं।
किसी को डायबिटीज मेलिटस होना उसे लंबे समय तक प्रभावित करता है। अर्ली-ऑनसेट डायबिटीज/ इंसुलिन-डिपेंडेन्ट डायबिटीज/ डायबिटीज मेलिटस टाइप 1 अक्सर बच्चों और किशोरों को होता है और यह उनके लिये रोग का पहला अनुभव होता है। वयस्कों में भी, डायबिटीज कई अन्य जटिलताओं की लहर ला देता है, जैसे कार्डियोवैस्कुलर रोग, आँखों के रोग, चोट ठीक नहीं होना, आदि। सबसे बड़ी चुनौती है यह जानकारी रखना कि डायबिटीज अब ठीक होने योग्य है। यदि रोकथाम न हो, तो यह धीमे-धीमे जीवन को खत्म करता है।
टाइप-2 डायबिटीज जीवनशैली के कारकों से होता है और अब सभी आयु की युवा पीढ़ी में आमतौर पर पाया जाता है और इसके रोगी बढ़ते जा रहे हैं। जो जितनी जल्दी मधुमेह से ग्रसित होता है, उसे जटिलताएं होने की संभावना भी उतनी तेज होती हैं; मधुमेह की जटिलताएं और तीव्रता उसके बने रहने के अनुपात में होती हैं। ऐसा तब होता है, जब शुगर अनियंत्रित हो जाती हैं। शुगर का नियंत्रण हमारे जीवन और श्वसन चक्र जैसी सतत् प्रक्रिया है, इसलिये सामान्य शुगर को सहने की शक्ति स्थायी होनी चाहिये। एक बार मधुमेह का ठप्पा लगने पर व्यक्ति उससे उबर नहीं पाता है! लेकिन मधुमेह के रोगियों को नियंत्रित और अनियंत्रित में वर्गीकृत किया जा सकता है। नियंत्रित रोगी में जटिलताओं की प्रगति रोकने की क्षमता होती है, जबकि अनियंत्रित के पास नहीं। अतः चाहे हमें टाइप 1 मधुमेह हो या टाइप 2, नियंत्रित रोगी रहना सबसे महत्वपूर्ण है।
ठीक करने योग्य एक अन्य सबसे महत्वपूर्ण विचार यह है कि मधुमेह अब रोकथाम के योग्य है, लेकिन यह अधिक खाने का रोग है, इसलिये पूरी तरह नियंत्रित हो सकता है और ठीक भी।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के डाटा के अनुसार मधुमेह की सबसे अधिक मौजूदगी चंडीगढ़ में थी, जिसके बाद तमिलनाडु, महाराष्ट्र और झारखण्ड का नंबर था। प्रीडायबीटीज की मौजूदगी भी सबसे अधिक चंडीगढ़ में थी, जिसके बाद महाराष्ट्र, तमिलनाडु और झारखण्ड थे। डीएम का लैंगिक वितरण लगभग समान था, कम साक्षर और शारीरिक श्रम करने वाले लोगों में अधिकता थी। प्री-डायबिटिक, डायबिटिक्स, अनियंत्रित मधुमेह और मेटाबॉलिक सिन्ड्रोम ग्रामीण जनसंख्या की तुलना में शहर के लोगों को अधिक था। डीएम होने की संभावना आयु के साथ बढ़ती है।
लोग टाइप 2 मधुमेह या प्री-डायबिटिक की रोकथाम ऐसे कर सकते हैं:
स्वास्थ्यकर आहार लेना
नियमित व्यायाम
सही वजन और बीएमआई बनाये रखना
डॉक्टर द्वारा दिये गये उपचार का अनुपालन करना
लक्षण
कुछ लक्षण दोनों प्रकार के मधुमेह में एक समान हैं।
डायबिटीज के प्रमुख लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हैं:
प्यास बढ़ना और बार-बार पेशाब आना
भूख
थकान
खीज
सांस से फल जैसी गंध आना
मासिक धर्म में अनियमितता
बार-बार संक्रमण होना
रोकथाम
वर्तमान में टाइप 1 मधुमेह की रोकथाम संभव नहीं है, लेकिन टाइप 2 मधुमेह से बचने के लिये कदम उठाये जा सकते हैं:
सही वजन बनाये रखनाः अधिक वजन वाले बच्चों को टाइप 2 मधुमेह होने का जोखिम रहता है, क्योंकि वे इंसुलिन प्रतिरोधकता के लिये अधिक संवदेनशील होते हैं।
सक्रिय रहनाः शारीरिक रूप से सक्रिय रहने से इंसुलिन प्रतिरोधकता कम होती है और ब्लड शुगर के नियंत्रण में मदद मिलती है।
अधिक शुगर वाले भोजन और पेयों का सेवन सीमित करनाः अधिक शुगर वाले आहार लेने से वजन बढ़ सकता है। संतुलित, पोषक-तत्वों से प्रचुर आहार, जिसमें विटामिन, फाइबर और लीन प्रोटीन हों, का सेवन करने से टाइप 2 मधुमेह का जोखिम कम होगा।
(यह लेख अमोल नाइकावाडी, प्रिवेन्टिव हेल्थकेयर स्पेशलिस्ट, इंडस हेल्थ प्लस का है)