किसके सिर सजेगा राजनांदगांव का ताज ?


रायपुर। सोमवार को जिन सीटों पर मतदान होगा उनमें राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री रमन सिंह की सीट राजनांदगांव भी शामिल है। कांग्रेस ने रमन सिंह के खिलाफ पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को मैदान में उतारा है। वह भाजपा को छोड़ कांग्रेस में शामिल हुई हैं। अभियान के आखिरी दिन भाजपा नेताओं ने राजनांदगांव में रोड शो भी किया। इस चरण में राज्य की 18 विधानसभा सीटों पर 12 नवंबर को मतदान होगा। इसमें बस्तर और राजनांदगांव की सीटों पर भी वोटिंग होगी, जिन पर नक्सलियों का प्रभाव हैं।

दरअसल, मुख्यमंत्री रमन सिंह को इस बार उनकी पार्टी के पितृपुरुष अटल बिहार वाजपेयी के परिवार से ही चुनौती मिल रही है। राजनांदगांव विधानसभा सीट से छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को मैदान में उतारा है। करुणा शुक्ला पिछले लोकसभा चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर कांग्रेस में आ गईं थीं। भाजपा अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर छत्तीसगढ़ की जनता से वोट मांगती रही है। इस सच को अधिकतर लोग जानते हैं कि इस बार भी चुनावी पोस्टरों में रमन सिंह के पीछे यदि किसी की परछाई नजर आती है, तो वह अटल बिहारी वाजपेयी ही हैं, लेकिन अटल की मौत के बाद उनकी श्रद्धांजलि सभा में भाजपा के कुछ नेताओं का हंसते हुए वीडियो सामने आने के बाद उनकी भतीजी करुणा शुक्ला हमलावर हो गईं थीं। अब वे रमन सिंह के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर ही वोट मांग रहीं हैं।

राज्य में सत्तारुढ़ दल भाजपा के नेता कहते हैं कि भाजपा और वाजपेयी एक दूसरे के पर्याय हैं। उधर, करूणा शुक्ला का आरोप है कि मुख्यमंत्री भाजपा के इन कद्दावर नेता की विचारधारा का पालन करने का दावा कर अपना दोहरा मापदंड दिखा रहे हैं, क्योंकि राज्य सरकार पूर्व प्रधानमंत्री की सीखों से मीलों दूर है। वो कहती हैं कि भाजपा ने अपना चाल, चरित्र और चेहरा बदल लिया है। अब वह वैसी पार्टी नहीं है जिसकी संकल्पना अटलजी और आडवाणीजी ने की थी और राज्य के लोग यह जानते हैं।

साल 2013 में भाजपा छोड़ने से पहले पार्टी की केंद्रीय पदाधिकारी रह चुकीं शुक्ला कहती हैं कि इससे कोई इनकार नहीं किया जा सकता कि मैं अटल जी की भतीजी हूं। उनकी सीख और साहस मेरे खून में हैं। मैं उनके सिद्धांतों से निर्दिष्ट होती हूं। राजनांदगांव के लोग जानते हैं कि यदि कांग्रेस चुनाव जीत गई तो मैं भ्रष्टाचार में डूबे इस राज्य में सुशासन का आदर्श कायम करूंगी। बता दें कि तीस साल तक जुड़े रहने के बाद भाजपा से निकलकर शुक्ला फरवरी, 2014 में कांग्रेस में शामिल हो गई थीं। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन वह हार गईं। भाजपा नेता के तौर पर उन्होंने 2004 में जांजगीर से लोकसभा चुनाव जीता, लेकिन 2009 में वह कोरबा से हार गईं। कांग्रेस ने अब उन्हें मुख्यमंत्री के गढ़ राजनांदगांव से चुनाव मैदान में उतारा है। शुक्ला बताती हैं कि रमन सिंह मुझे अपनी बहन कहते हैं। वह दावा करते हें कि वह अटल बिहारी वाजपेयी की विचारधारा पर चलते हैं। जहां तक मैं जानती हूं कि यह सरकार अटलजी की सीखों से मीलों दूर है। यह उनका (मुख्यमंत्री का) दोहरा मापदंड है।

गौर करने योग्य यह भी है कि भाजपा ने रमन सिंह के निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव को स्थानीय बनाम बाहरी के मुकाबले के रूप में पेश किया है। प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता संजय श्रीवास्तव ने कहा कि शुक्ला बाहरी हैं और मतदाता यह बात जानते हैं। एक अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि भाजपा सुशासन और विकास के नाम पर वोट मांग रही है। अटलजी समेत पार्टी के सभी नेता और उनकी विरासत निश्चित ही पार्टी के अभियान का हिस्सा है।

इसके साथी ही दंतेवाड़ा सीट पर भी निगाहें रहेंगी, यहां से मौजूदा विधायक देवती कर्मा कांग्रेस की उम्मीदवार हैं। देवती कर्मा दिवंगत नेता महेंद्र कर्मा की पत्नी हैं, जिनकी नक्सली हमले में मौत हो गई थी। चुनाव प्रचार के आखिरी दिन शनिवार को भाजपा, कांग्रेस और अजीत जोगी की पार्टी के नेताओं ने पूरी ताकत झोंक दी। भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अलग-अलग जगहों पर कई चुनावी जनसभाओं को संबोधित किया।

जिन 18 सीटो पर मतदान होना है उनमें 12 कांग्रेस और छह भाजपा के पास हैं। इन सीटों पर सोमवार को कोंटा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, चित्रकोट, बस्तर, जगदलपुर, नारायणपुर, केशकाल, कोंडागांव, अंतागढ़, भानुप्रतापपुर, कांकेर, खेरागढ़, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, डोगरगांव, खुज्जी और मोहल्ला मानपुर सीटों पर मतदान होगा। नक्सल प्रभावित बस्तर इलाके में 20.4 लाख वोटर्स हैं। बस्तर के 12 विधानसभा क्षेत्रों में से 15,00 पोलिंग बूथों लाल आतंक का खतरा मंडराता है। पुलिस ने इन पोलिंग बूथों को अति संवेदनशील बूथों में रखा है। जब से यहां आचार संहिता लगी है तब से लेकर अब तक यहां नक्सलवादी हिंसा की तीन घटनाएं हो चुकी हैं।

 

 

 

 

 

 

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