नई दिल्ली। फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एफएसआईआई) और कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) ने नई दिल्ली में ‘सीड टेक्नोलॉजी इनोवेशन फॉर सस्टेनेबल राईस प्रोडक्शन’ पर एक सेमिनार आयोजित किया। इस सेमिनार का उद्देश्य सतत रूप से चावल का उत्पादन बढ़ाने के तरीकों पर वार्ता करना और भारत में किसानों की आय में सुधार करना था। कृषि एवं किसान कल्याण के लिए केंद्रीय राज्यमंत्री, श्री कैलाश चैधरी इस समारोह में मौजूद थे।
अन्य प्रतिष्ठित मेहमानों में डॉ.प्रेम कुमार, माननीय कृषि मंत्री, बिहार सरकार, भारत सरकार; डॉ.एस के मल्होत्रा, एग्रीकल्चर कमिश्नर, भारत सरकार और श्री वी के गौर, चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर, नेशनल सीड कॉर्पोरेशन शामिल थे। समारोह में वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, किसान संगठनों, वैज्ञानिकों एवं उद्योग के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया।
चावल भारत की प्रमुख फसलों में से एक है और इसीलिए इसका उत्पादन बढ़ाना बहुत जरूरी है। दुनिया में चावल उगाने वाले देशों में, भारत में सर्वाधिक क्षेत्र – 43.86 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती होती है और यह 163 मिलियन टन के उत्पादन के साथ चावल के उत्पादन में चीन के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है। चीन में 203 मिलियन टन धान का उत्पादन होता है। भारत में चावल की फसल में 25 प्रतिशत तक का नुकसान फसल की बीमारियों एवं कीटों की वजह से होता है। इसके अलावा पौधों का घनत्व कम होने, कृषि की खराब विधियों व खरपतवार नियंत्रण, बीजों के प्रतिस्थापन की कम दर आदि के कारण भी चावल का उत्पादन कम है। हालांकि सबसे बड़ी समस्या चावल के उत्पादन की वजह से होती है, क्योंकि 1 किलो चावल के उत्पादन के लिए 2000 से 3000 लीटर पानी की जरूरत होती है। इसलिए भारत में 163 मिलियन टन चावल के उत्पादन के लिए 327 हजार बिलियन लीटर पानी की जरूरत है। भारत में खेती की 90 फीसदी जमीन छोटे, सीमांत एवं मध्यम किसानों के पास है, इसलिए देश में उन्हें खेती की प्रभावशाली टेक्नोलॉजी और प्रक्रियाएं उपलब्ध कराना जरूरी है।
सेमिनार में किए गए विचार विमर्श में दीर्घकालिक शोध में निवेश की जरूरत पर बल दिया गया, ताकि हर दाने में बेहतर विशेषताओं वाले ज्यादा उत्पादन हाईब्रिड विकसित हो सकें, भौगोलिक विविधीकरण द्वारा बीज उत्पादन की प्रक्रिया मजबूत हो तथा पीपीपी के माध्यम से नए क्षेत्रों में हाईब्रिड को ज्यादा गहनता से बढ़ावा दिया जा सके। इसके अलावा सभी राज्यों में हाईब्रिड के अंतर्गत फसल की जमीन बढ़ाने के लिए राज्य सरकारों का सहयोग भी जरूरी है।
इस अवसर पर श्री कैलाश चैधरी ने कहा, सरकार सदैव किसानों की आय बढ़ाने के तरीकों पर विचार कर रही है, क्योंकि उन्हें विभिन्न समस्याओं के कारण समय पर पर्याप्त फायदा नहीं मिल पाता। नई टेक्नोलॉजी एवं तकनीकों के बारे में किसानों की जागरुकता इस सेक्टर को फायदेमंद बनाने के लिए जरूरी है। हमें खेती के बारे में दृष्टिकोण बदलने के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है। खेती को इस प्रकार एक ब्रांड बनाना होगा, ताकि युवा इसे व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित हों।
एफएसआईआई के चेयरमैन, डॉ. एम रामासामी ने कहा, ‘‘भारत में चावल उगाना बहुत महंगा है और हम अनेक बाधाओं के कारण अपनी पूरी सामथ्र्य तक नहीं पहुंच पाए हैं। नीतियों का सहयोग किसानों की आय बढ़ाकर दोगुनी करने के हमारे उद्देश्य को पूरा करने के लिए टेक्नोलॉजी एवं सतत विधियां अपनाने में मदद करेगा।’’
श्री राम कौंडिन्य, डायरेक्टर जनरल, एफएसआईआई ने कहा, ‘‘हाईब्रिड चावल किसानों के लिए सबसे उपयोगी एवं अपनाई जाने योग्य विधि है क्योंकि यह 20-35 प्रतिशत अतिरिक्त पैदावार देता है एवं पर्यावरण के लिए सतत है। इसके लिए कम पानी व नाईट्रोजन की जरूरत है क्योंकि यह कम अवधि में उगता है तथा बारिश में ज्यादा अनुकूलित होता है और बीमारियों एवं अन्य दबावों के लिए ज्यादा टाॅलरेंट है। भारत में मक्का और कपास का उत्पादन बढ़ाने में हाईब्रिड्स ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन चावल के साथ आज तक ऐसा नहीं किया गया।’’
एफएसआईआई के एक्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर, डॉ. शिवेंद्र बजाज ने कहा, ‘‘डायरेक्ट सीडेड राईस (डीएसआर) जैसी टेक्नोलॉजी के अनेक फायदे हैं। यह कम पानी और कम श्रम में सतत तरीके से चावल उगा सकती है तथा पैदावार बढ़ा सकती है। उदाहरण के लिए उत्तर के क्षेत्र में किसान चावल की बुआई के लिए प्रति एकड़ औसतन 50 लीटर डीज़ल का उपयोग करते हैं। डीएसआर अकेले उत्तर के क्षेत्र में पडलिंग के काम खत्म करके प्रति हेक्टेयर 15 लीटर डीज़ल बचाने का अवसर देगा।’
भारत में कृषि निर्यात 2015-16 में 2,15,396 करोड़ रु. से बढ़कर 2017-18 के वित्तवर्ष में 2,50,273 करोड़ रु. हो गया, यानि इसने 16.19 प्रतिशत की वृद्धि की। यह सफलता चावल (बासमति एवं अन्य) तथा उसके बाद कच्चे कपास, आॅईल मील्स, कैस्टर आॅईल आदि के ऊँचे निर्यात के चलते मिली। सतत रूप से चावल उगाते हुए इन रिकाॅर्ड से आगे निकलने के लिए किसानों को खेतों में नई टेक्नोलॉजी और प्रगति अपनाने व उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है।