खेलते हुए तहजीब न छोड़ें खिलाड़ी : गिरिजा देवी

डॉ. गिरिजा देवी ने अपने दिल्ली प्रेम को जताते हुए कहा, ‘मैं 1952 से यहां आ रही हूं। 65 वर्ष हो गए दिल्ली में गायन करते हुए। एक प्यार बना हुआ है दिल्ली के श्रोताओं के साथ इसलिए मैं न चाहते हुए भी खुद को रोक नहीं पाई और दिल्ली चली आई।’

राकेश थपलियाल

देश के जाने माने और प्रतिष्ठित घरानों के गायक-गायिकाओं की स्वरलहरियों से गूंजती रही है दिल्ली। शास्त्रीय संगीत प्रेमी न जाने कितनी शाम ठुमरी के रंग में सराबोर हुए होंगे पर ठुमरी का असली रंग क्या होता है इसे दिखाया पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण से सम्मानित 87 वर्षीय गिरिजा देवी ने। उन्होंने ठुमरी, दादरा और झूला सुनाते हुए आवाज के साथ-साथ हाथों के उतार-चढ़ाव और चेहरे पर प्यार भरी मुस्कुराहट भरी भाव भंगिमाओं से गायन में भावनाओं की गंगा में पूरी तरह डूबकर श्रोताओं को हमेशा मंत्रमुग्ध किया है।
गिरिजा देवी की की शख्सियत ऐसी है कि जिस समारोह में वह नहीं गातीं और बतौर अतिथि मंच के सामने आगे की पंक्ति पर बैठती हैं उसमें भी आकर्षण का केन्द्र वही होती हैं। ऐसा नजारा दिल्ली में अख्तरी बाई फैजाबाजी उर्फ बेगम अख्तर की याद में आयोजित एक कार्यक्रम में देखने को हमें मिला चुका है। गिरिजा देवी के सामने युवा गायिकाएं ठुमरी गा रहीं थी और वह उन्हें सुनकर खुश हो रहीं थी। इस कार्यक्रम में मैंने देखा कि लोग गिरिजा देवी के ऑटोग्राफ ले रहे थे, उनके साथ फोटो खिंचवा रहे थे। गिरिजा देवी भी जिनके साथ संपर्क रखना चाह रहीं थी उनके टेलीफोन नंबर अपनी छोटी से डायरी में नोट करती जा रहीं थी।
इस माहौल में मैंने उनसे खेलों पर चर्चा शुरू की तो साथ खड़े वरिष्ठ खेल पत्रकार संदीप नकई ने चौंकते हुए मेरे कानों में कहा, इन से (गिरिजा देवी) ये क्या पूछ रहा है? लेकिन तभी गिरिजा देवी ने अपने खेल प्रेम के बारे में बातचीत शुरू करते हुए कहा, ‘हम खेलों में रुचि रखते हैं। बचपन में हम घुड़सवारी करते थे, तलवारबाजी करते थे। खूब दौड़ते भी थे।’
यह पूछने पर कि कौन से ऐसा खेल है जिसे वह टेलीविजन पर देखती हैं? इस पर गिरिजा देवी ने तपाक से अपने अंदाज में कहा, अरे वही (क्रिकेट)जो टीवी पर सबसे ज्यादा दिखाया जाता है उसे ही हम भी देखते हैं। हमें अच्छा भी लगता है।
आपका पसंदीदा खिलाड़ी कौन है? उन्होंने कहा, ‘हमें सभी अच्छे लगते हैं। उन्हें खेलते देख मजा आता है। सौरव (गांगुली) से तो कई कार्यक्रमों में मुलाकात होती ही रहती है।’ आजकल के खिलाड़ियों की कौन सी ऐसी चीज है जो आपको पसंद नहीं है? गिरिजा देवी ने बिना किसी झिझक के बेबाकी से कहा, ‘आज के खिलाड़ी तहजीब में रह कर खेलें। खेलते हुए वह तहजीब न छोड़ें, बस हम यही चाहते हैं। यह बहुत जरूरी भी है। इसके बिना खेल का मजा नहीं आ सकेगा।’
इस सवाल पर कि क्या लड़कियों को भी खेलों में बढ़चढकर हिस्सा लेना चाहिए? ठुमरी की रानी ने कहा, ‘क्यों नहीं। लड़कियां भी खेलें यह जरूरी है। हर मां बाप को चाहिए कि वह अपनी लड़कियों को खेलने के लिए प्रेरित करें। लड़कियां भी तो खेलों में देश का नाम रोशन करती हैं।’
वाराणसी में 8 मई 1929 को जन्मीं पुरबंग गायिकी की महान गायिका गिरिजा देवी ने पांच वर्ष की उम्र में पंडित सरजू प्रसाद मिश्रा से संगीत सीखना शुरू किया और उनके बाद वह पंडित श्रीचंद मिश्रा की शिष्या रहीं। उन्होंने उसी परिवार के अपने साथ तबले पर संगत कर रहे अभिषेक मिश्रा की तारीफ करते हुए कहा, ‘अभिषेक अपने परिवार की छठी पीढ़ी के सदस्य हैं जो मंच पर मेरे साथ संगत कर रहे हैं।’ ठुमरी के प्रति अपने आघाढ़ प्रेम को दर्शाते हुए गिरिजा देवी का कहना है, ‘ख्याल गायकी और राग रागिनी से तुलना की जाए तो ठुमरी को बहुत कम हिस्सा मिला है। कोई चीज कम नहीं होती। सबका अपना-अपना स्थान होता है। सबकी अपनी खूबसूरती होती है।’
उनके गायन के बीच फोटोग्राफर फोटो खींच रहे थे तो गिरिजा देवी ने हंसते हुए जब यह कहा कि ‘मुझ बुढ्डी की तस्वीरें क्यों खींच रहे हो,’ तो पूरा सभागार जोरदार ठहाके से गूंज उठा।

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