सरकारी बंगलों का मोह छोड़ना पडे़गा

बिहार में चार पूर्व मुख्यमंत्रियों को पटना हाईकोर्ट के आदेश पर सरकारी बंगले छोडने के आदेश हुए हैं। इनमें राबडी देवी, जीतन राम मांझी, जगन्नाथ मिश्रा और सतीश कुमार सिंह शामिल हैं। इससे पहले उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव को भी सरकारी बंगला छोडने को कहा गया था।
मजेदार बात यह है कि जीतन राम मांझी इसका ठीकरा तेजस्वी यादव के सिर पर ही फोडा और कहा कि अपना बंगला बचाने के लिए वे सुप्रीम कोर्ट तक चले गये।
अपने बारे में कहा कि सात बार विधायक बनता आ रहा हूं और मुख्यमंत्री चाहें तो यही बंगला उन्हें आबंटित कर सकते हैं, क्योंकि विधायक तो वे हैं ही। वाह, क्या तर्क है? तेजस्वी यादव भी विधायक तो हैं ही । वैसे सरकारी बंगले का मोह कमाल है । उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बंगला छोडा लेकिन नल की टूटियां तक उतार ले जाने के समाचार आए और मीडिया में आकर अखिलेश बोले कि ये टूटियां अपने पैसे से लगवाई थीं । है मजेदार व्याख्या या तर्क । भला सरकारी बंगले पर कोई निजी खर्च करता है ? ऐसे तो आम लीची के पेड लगवा जाते हैं तो क्या उनके फल भी लेने आ जाओगे कि मैंने लगवाए थे ? वैसे पटना में सरकारी बंगले के आम बेचे जाने की खबर भी चैनलों पर दिखाई गयी थी   कई सरकारी कोठियों में गेहूं की भरपूर फसल बाजार में बिकती देखी है इन आंखों ने पत्रकारिता के दौरान ।
यह मोह किसलिए ? यदि इस तरह सरकारी बंगलों पर कब्जे कर लिए जाएंगे और नये नये तर्क देकर इन्हें खाली न करने के बहाने बनाए जाते रहेंगे तो एक समय ऐसा आएगा कि नये विधायक या सांसदों को किराए के आवासों में रहना पडेगा।

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