युवा कैसे याद करेंगे भारत रत्न प्रणब मुखर्जी को ?


सुभाष चन्द्र

भारत रत्न पूर्व राष्ट्पति प्रणब मुखर्जी अब पंचतत्व में विलीन हो गए। उनकी कीर्ति और राजनीतिक प्रतिबद्धता को लेकर लोग उन्हें याद करेंगे। भारतीय राजनीति और सरकार में लंबे समय तक उनकी भागीदारी रही। 21वीं सदी को युवाओं की सदी कहा गया है। ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि युवाओं के लिए प्रणब मुखर्जी होने का क्या अभिप्राय है ? मेरे हिसाब से प्रणब मुखर्जी की पूरी जीवन कथा अपने आप में एक ऐसी खुली किताब है, जिसे युवा पढ लें, तो जीवन में अपेक्षित सफलता हासिल करने में उन्हें सहायता मिलेगी। जीवन में धैर्य हो। धैर्य रखेंगे, तो लक्ष्य हासिल होगा ही। रूकावटें आएंगी, लेकिन आपके परिश्रम से वह दूर हो जाएगी। प्रणब मुखर्जी के जीवन में एक नहीं, कई उदाहरण हैं, जो इस बात को सिद्ध करती है।

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी हमेशा शिक्षा में शोध को बढ़ावा देने की बात करते थे, जिससे उस शिक्षा को ग्रहण करके ज्यादा से ज्यादा युवा रोजगार के लिए अग्रसर हो सके। प्रणब मुखर्जी चाहते थे कि शिक्षण संस्थाओं, कारपोरेट जगत व सरकार में हमेशा तालमेल रहे, जिसका बड़ा फायदा विद्यार्थियों को मिल सके। इसके साथ ही वह हमेशा युवाओं को ग्लोबल प्रतिस्पर्धा में सक्षम रहने की सीख देते थे, जिससे हमारे देश के युवा दुनिया में कुछ करने में आगे रहे। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने यह सब कुछ सोनीपत में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में 18 मार्च 2017 को अपने व्याख्यान में कहा था।

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी सोनीपत में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में पहुंचे थे। जहां उन्होंने भविष्य के विश्वविद्यालय पर अपने विचार रखे थे। उन्होंने कहा था कि प्राचीन समय में शिक्षा की बदौलत भारत पूरी दुनिया में विश्वगुरु था और अन्य देशों के छात्र-छात्राएं शिक्षा लेने के लिए नालंदा व तक्षशिला विश्वविद्यालय में आते थे। समय के साथ ही शिक्षा बदली है और यह तकनीक का युग है। जिसके अनुसार ही विश्वविद्यालयों में शिक्षा देनी जरूरी है।
उन्होंने कहा था कि युवाओं को स्किल और गुणवत्तापरक उच्चतर शिक्षा प्रदान कर ग्लोबल प्रतिस्पर्धा में सक्षम बनाने के लिए आगे आना होगा। वह जर्मनी के एकीकरण में अहम योगदान देने वाले चिंतक बिस्मार्क को याद करते हुए कहते थे कि भारत पूरी दुनिया में नेतृत्व करने की क्षमता रखता है। क्योंकि जिस तरह की लोकतांत्रिक प्रणाली यहां है, उसकी बदौलत ही दुनिया के अन्य देश भारत से काफी उम्मीद रखते हैं। उन्होंने देश के बड़े औद्योगिक घरानों से उच्चतर शिक्षण संस्थान खोलने की ओर कदम बढ़ाने की उम्मीद जताई थी। वह हमेशा शिक्षण संस्थाओं को शिक्षा तक ही सीमित नहीं रखकर, बल्कि उनको शोध की ओर बढ़ते हुए देखना चाहते थे और वह इसको अपने व्याख्यान में कहते थे। क्योंकि शोध से ही भविष्य की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। इसके साथ ही वह शिक्षण संस्थाओं में शोध के लिए आधुनिक प्रयोगशालाओं को स्थापित करने पर जोर देने को कहते थे।

प्रणब मुखर्जी ने अपने जीवन काल में तमाम प्रधानमंत्री देखे तो सियासत के तमाम समीकरणों को बनाने और तोड़ने में एक बड़ी भूमिका भी निभाई।1969 में वेस्ट मिदनापुर के चुनाव के दौरान इंदिरा गांधी के संपर्क में आए प्रणब मुखर्जी को इंदिरा गांधी ने कांग्रेस का हिस्सा बना लिया। इसके बाद 1982 के साल प्रणब मुखर्जी कांग्रेस पार्टी की सरकार में वित्त मंत्री बनाए गए। प्रणब मुखर्जी के राजनीतिक सफर में एक घटना ये भी थी कि उन्होंने राजीव गांधी की सरकार में खुद को हाशिए पर पाकर अपना नया दल बनाया। हालांकि बाद में नरसिम्हा राव के सक्रिय होने के बाद प्रणब 1991 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष बन गए। सरकार में मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी को साल 2012 में देश का राष्ट्रपति बनाया गया। अपने कार्यकाल के दौरान वह तमाम बड़े फैसलों के साक्षी रहे। उन्होंने अपने कामकाज के दौरान ही कांग्रेस का सत्ता से अवसान और मोदी सरकार का बनना देखा।

पश्चिम बंगाल में जन्मे इस राजनीतिज्ञ के नाम कई ऐसी महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती हैं। वह चलते फिरते ‘इनसाइक्लोपीडिया’ थे और हर कोई उनकी याददाश्त क्षमता, तीक्ष्ण बुद्धि और मुद्दों की गहरी समझ का मुरीद था। साल 1982 में वे भारत के सबसे युवा वित्त मंत्री बने। तब वह 47 साल के थे। आगे चलकर उन्होंने विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त व वाणिज्य मंत्री के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं। वे भारत के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जो इतने पदों को सुशोभित करते हुए इस शीर्ष संवैधानिक पद पर पहुंचे। उन्होंने इंदिरा गांधी, पी वी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह जैसे प्रधान मंत्रियों के साथ काम किया। यही वजह थी कि दशक दर दशक वे कांग्रेस के सबसे विश्वसनीय चेहरे के रूप में उभरते चले गए।

मुखर्जी भारत के एकमात्र ऐसे नेता थे जो देश के प्रधानमंत्री पद पर न रहते हुए भी आठ वर्षों तक लोकसभा के नेता रहे। वे 1980 से 1985 के बीच राज्यसभा में भी कांग्रेस पार्टी के नेता रहे। अपने उल्लेखनीय राजनीतिक सफर में उन्होंने और भी कई उपलब्धियाँ हासिल कीं. उनके राजनीतिक सफर की शुरूआत 1969 में बांग्ला कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा सदस्य बनने से हुई। बाद में बांग्ला कांग्रेस का कांग्रेस में विलय हो गया। मुखर्जी जब 2012 में देश के राष्ट्रपति बने तो उस समय वे केंद्र सरकार के मंत्री के तौर पर कुल 39 मंत्री समूहों में से 24 का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। साल 2004 से 2012 के दौरान उन्होंने 95 मंत्री समूहों की अध्यक्षता की। राजनीतिक हलकों में मुखर्जी की पहचान आम सहमति बनाने की क्षमता रखने वाले एक ऐसे नेता के रूप में थी जिन्होंने सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ विश्वास का रिश्ता कायम किया जो राष्ट्रपति पद पर उनके चयन के समय काम भी आया। उनका राजनीतिक सफर बहुत भव्य रहा जो राष्ट्रपति भवन पहुंचकर संपन्न हुआ। लेकिन प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठना उन्हें नसीब नहीं हुआ । हालांकि उन्होंने खुलकर इस बारे में अपनी इच्छा व्यक्त कर दी थी।
देश के 13वें राष्ट्रपति मुखर्जी का पूरा राजनीतिक जीवन भले ही कांग्रेस के साथ बीता हो लेकिन भारतीय जनता पार्टी के दो नेताओं से वह खासा प्रभावित थे। ये दो नेता हैं पूर्व प्रधानमत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वर्तमान प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी। इसका जिक्र उन्होंने खुद एक कार्यक्रम में किया था। अटल बिहारी वाजपेयी को मुखर्जी सबसे असरदार प्रधानमंत्री मानते थे तो नरेंद्र मोदी के बारे मे उनकी राय तेजी से सीखने वाले प्रधानमंत्री की थी। नरेंद्र मोदी खुद कह चुके हैं कि जब वह दिल्ली आए थे तो प्रणब दा ने ही उन्हें अंगुली पकड़कर चलना सिखाया था। राष्ट्रपति के रूप में जब मुखर्जी का अंतिम दिन था तो प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें चिट्ठी लिखकर कहा था कि आपके साथ काम करना सम्मान की बात रही।
साल 2017 में प्रणब मुखर्जी ने एक कार्यक्रम में अटल बिहारी बाजपेयी से संबंधित एक किस्सा सुनाया था। उन्होंने कहा था, ‘मैं राज्यसभा में था। अचानक मैंने देखा कि प्रधानमंत्री मेरी सीट की ओर आ रहे हैं। मैंने शर्मिंदगी महसूस की। मैंने उनसे कहा कि आपने मेरे पास आने की तकलीफ क्यों की? आप किसी को भेज देते तो मैं ही आ जाता। इस पर वाजपेयी ने कहा कि हम दोस्त हैं। इसके बाद उन्होंने मुझसे कहा कि जॉर्ज फर्नांडिस (तत्कालीन रक्षा मंत्री) मेहनती मंत्री हैं, उनके लिए ज्यादा तल्ख न हों। मैंने उनसे कहा कि आपकी इस बात की मैं तारीफ करता हीं कि आप अपने साथी की इतनी चिंता करते हैं।’

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