वायुसेना और गहराती राजनीति

कमलेश भारतीय

कमाल है । चौदह फरवरी को जैश ए मुहम्मद ने आत्मघाती हमला कर हमारी सीआरपीएफ के चालीस जवान शहीद कर डाले । पूरे देश में हाहाकार मचा । सब राजनीतिक पार्टियों ने कहा कि हम सरकार के साथ हैं । पर कुछ दिन बाद ही राजनीति शुरू हो गयी । विपक्ष को लगा कि प्रधानमंत्री मोदी इसे आने वाले लोकसभा चुनाव में भुनाने की फिराक में हैं ।
पंजाब के मंत्री और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिद्धू ने पूछा है कि वायुसेना के पायलट हमला करने गये थे या पेड गिराने ? इसी प्रकार दिग्विजय सिंह यानी अपने दिग्गी राजा ने सबूत मांगने में देर नहीं लगाई । सबको यह हो गया कि मात्र बीस मिनट के ऑपरेशन में कब हमला किया और कब लाशें भी गिन लीं ? यह बहुत उछला सोशल मीडिया में भी । आखिर कोई लाशें कैसे ख
गिन सकता है ?
इस पर एयर मार्शल धनोआ आगे आए और प्रेस कानफ्रेंस में कहा कि हमने टारगेट पूरा किया । हमला करना हमारा काम , लाशें गिनना हमारा काम नहीं । यदि पेड गिराए होते तो पाकिस्तान किसलिए शोर मचाता ?
बात यह भी दिल को लगती है । आखिर सबूत मांगने की जरूरत क्यों पडी ? जब इस हमले को राजनीति में कैश करने की कोशिश शुरू हुई । क्यों आप जवानों की शहादत पर राजनीति कर रहे हैं ? यदि ऐसे ही है तो सवाल उठाने वाले सवाल उठा रहे हैं कि फिर बाइक रैलीज क्यों नहीं रद्द कर दीं ? फिर लोकसभा की फिक्र क्यों ? छप्पन इंच के सीने को साबित करने की तडप क्यों ? देश के जवानों के परिवारों की फिक्र क्यों नही ? उन जवानों के परिवारों की फिक्र तो अक्षय कुमार कर रहे हैं । सरकार क्या कर रही है ? यह सरकार का काम था लेकिन एक एक्टर कर रहा है ।
आखिर राजनीति कयों ? क्यों सेना के बहाने राजनीति हो रही है या सेना को ढाल क्यों बनाया जा रहा है ? अपने दम राजनीति कीजिए । देश की सुरक्षा की कीमत पर क्यों ? सर्जिकल स्ट्राइक के समय भी यही हुआ था । तब यूपी विधानसभा के समय साइनबोर्ड और बैनर लगाये जाने पर विपक्ष ने आपत्ति जताई थी । अब भी चुनाव सिर पर हैं और दहाड रहे हैं वायुसेना के दम पर । वायुसेना यदि कहती है कि टारगेट पूरा किया तो बधाई की पात्र है । हमारी सेनाओं को और जवानों को सैल्यूट । अभिनंदन का अभिनंदन । जय हो ।

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