10 में से एक व्यक्ति क्रोनिक किडनी डिस्ऑर्डर से पीड़ित

इंडियन सोसायटी आॅफ नेफ्रोलाॅजी की 48वीं वार्षिक कांग्रेस – ‘इस्नकाॅन 2017‘ का नई दिल्ली में उद्घाटन हुआ। सम्मेलन के पहले दिन क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) की अल्प जांच और अधिक जांच जैसे विषयों पर चर्चा हुई। लगभग 1500 राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि दुनिया भर में किडनी रोग के खतरे से निपटने सहित अन्य कई मुद्दों पर कर रहे हैं विचार विमर्श।

नई दिल्ली। दिल्ली नेफ्रोलाॅजी सोसाइटी (डीएनएस) द्वारा आयोजित दिल्ली नेफ्रोलॉजी सोसाइटी की 48वीं वार्षिक कांग्रेस का नई दिल्ली में उद्घाटन हुआ। सम्मेलन के पहले दिन किडनी की उम्र्र बढ़ने संबंधी मौजूदा सिद्धांतों और विवादों पर चर्चा की गई। बताया गया कि आनुवंशिक या जेनेटिक टैस्ट के नतीजे समय के साथ नहीं बदलते। मैग्नीशियम से नेफ्रोेलॉजिस्ट कब परेशान होते हैं वाले सत्र में संकेत मिला कि हाइपो और हाइपर मैग्नेसेमिया होना आम बात है, विशेष रूप से अस्पताल में भर्ती मरीजों में, और इसका जांच के लक्षणों में शामिल होना जरूरी नहींे। हाइपो और हाइपर मैग्नेसेमिया लक्षणों में भिन्नता दर्शाते हैं, जिससे सीरम मैग्नीसियम का आकलन किये बिना रोग की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। कुछ अन्य दिलचस्प सत्र भी हुए, जैसे कि सेप्सिस एवं पीडियाट्रिक एक्यूट किडनी चोट, प्रमुख जांच, एक नेफ्रोलॉजिस्ट को क्या-क्या मालूम होना चाहिए, और सीकेडी के निदान में कम और अधिक जांच से कैसे बचाव किया जाये।

अपने स्वागत भाषण में, इस्नकाॅन के आयोजन सचिव, डॉ. श्याम बिहारी बंसल, डायरेक्टर, नेफ्रोलॉजी, किडनी एंड यूरोलॉजी इंस्टीट्यूट, मेदांता – दि मेडिसिटी ने बताया कि शुरुआती दिन की चर्चा में कई दिलचस्प बिंदु सामने आये। सबसे उल्लेखनीय टिप्पणियों में से एक यह थी कि भले ही सीक सहित अनेक अध्ययनों में भारत में सीकेडी की उच्च मौजूदगी का दावा किया गया है, लेकिन हाल के अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि सीकेडी का काफी हद तक अधिक या कम निदान हो रहा है। गुर्दे की बीमारियों की जांच गुर्दे के आकार और बनावट, ईकोजेनिसिटी, मूत्र-स्थान, रीनल आर्किटेक्चर और वास्क्यूलेचर (प्रतिरोधक सूचकांक) पर निर्भर करती है। इन्सकाॅन 2017 एक शैक्षणिक कार्यक्रम है, क्योंकि इसमें एक ही छत के नीचे नेफ्रोलॉजी के क्षेत्र के अनेक दिग्गज मौजूद हैं। इस सम्मेलन की जानकारी को व्यापक बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि यह पोस्टग्रेजुएट और नेफ्रोलोजिस्ट सभी के लिए उपयोगी साबित हो सके।’
आंकड़े बताते हैं कि अनुमान के अनुसार, सामान्य आबादी में हर 10 में से एक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के क्रोनिक किडनी डिस्ऑर्डर (सीकेडी) से पीड़ित है। भारत में प्रति वर्ष, किडनी फेल होने के लगभग 1,75,000 नये मामले (स्टेज वी सीकेडी) सामने आते हैं और इन्हें डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। यह भी अनुमान लगाया गया है कि सीकेडी मामलों में से लगभग 60 से 70 प्रतिशत मामले डायबिटीज और हाइपरटेंशन की कारण होतें हैं। सीकेडी को सेट होने में लगभग 10 से 15 साल लगते हैं और इसलिए यह जरूरी है कि जल्द से जल्द बचाव के उपाय किये जायें। ऐसा नहीं करने से गुर्दे काम करना बंद कर सकते हैं, जिसे केवल दो तरीकों, डायलिसिस और ट्रांसप्लांटेशन, से ही ठीक किया जा सकता है। बहुत से भारतीय इन दोनों उपायों का खर्च बर्दाश्त नहीं कर सकते। सम्मेलन का उद्देश्य इन सब और बाकी मुद्दों पर चर्चा करना है।
वक्ताओं और भागीदारों का स्वागत करते हुए, डॉ. संजीव गुलाटी, डायरेक्टर, नेफ्रोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पिटल, वसंत कुंज, ने बताया, ‘नेफ्रोलॉजी की दुनिया एक रोमांचक क्षेत्र है, जिसमें हमें साक्षर बने रहने के लिए नई चीजें सीखना, पुरानी चीजों को भूलना और फिर से सीखना जरूरी होता है। इसी कारण से हम इस तरह के कार्यक्रमों में मिलते हैं और प्रेरित लोगों को एक साथ लाने के प्रयास करते हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के सदस्य अपटूडेट रहें। सम्मेलन के पहले दिन ही कुछ व्यावहारिक विचार-विमर्श सामने आये हैं। आज के सत्रों में जो ब्योरा दिया गया है वो आंखें खोलने वाला है। उदाहरण के लिए, नेफ्रोलॉजी में अल्ट्रासाउंड के अन्य एप्लीकेशंस भी हैं, जैसे कि हीमोडायलिसिस वास्कुलर एक्सेस, विशेष रूप से आरटीरियोवीनस फिस्टुला, पेरिटोनियल कैथेटर्स, पेरिटोनियल डायलिसिस कैथेेटर्स में टनल संक्रमण की जांच, इन्फीरियर वेनाकावा की जांच के जरिये इंट्रावास्कुलर वॉल्यूम स्टेटस के मूल्यांकन और फेफड़ों में पानी का पता लगाना। हमें आशा है कि अगले दिनों में भी और उपयोगी सामने आयेंगी।’
आॅर्गनाइजिंग चेयरमैन डॉ. संजीव सक्सेना, वरिष्ठ सलाहकार एवं नेफ्रोलॉजी विभाग के हेड, पीएसआरआई हाॅस्पिटल और डाॅ. विजय खेर, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, नेफ्रोलाॅजी, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट, ने कहा, ‘सीकेडी एक छिपा हत्यारा है और यदि इसे ठीक से ट्रीट न किया जाये, तो यह हृदय रोग और किडनी फेल होने का खतरा बढ़ा सकता है। किडनी के पुराने रोगियों को अक्सर आखिरी स्टेज में किडनी की विफलता वाले रोगियों की अक्सर आखिरी स्टेज में ही पहचान हो पाती है। गुर्दा संबंधी कुछ रोग गर्भवती महिलाओं को भी प्रभावित कर सकते हैं। इस क्षेत्र में हो रहे शोध के लिहाज से यह सम्मेलन अत्यंत महत्वपूर्ण है। ज्ञान साझा करने के इस मंच के माध्यम से, हम सीकेडी के बढ़ते खतरे से निपट सकते हैं और समाज के एक बड़े हिस्से में जागरूकता पैदा कर सकते हैं।’
इस तीन-दिवसीय सम्मेलन के दौरान, प्रतिभागियों को व्यावहारिक चर्चाओं और दिलचस्प सत्रों का लाभ मिलेगा। जेसीएम शास्त्री मेमोरियल ओरेशन, ग्लोबल नेफ्रोलोजी एजुकेशन एंड रिसर्च, विद्या आचार्य मेमोरियल ओरेशन, किडनी ट्रांसप्लांट और गर्भावस्था, डायलिसीस के दौरान हाई ब्लड प्रेशर, नेफ्रोलॉजी के क्षेत्र में रिसर्च और विकास, पैनल डिस्कशन और केस स्टडी आधारित चर्चा जैसे सत्र काफी सूचनाप्रद होने की उम्मीद की जाती है।
इस्नकाॅन 2017 सम्मेलन, मूत्र रोगों के क्षेत्र में काम कर रहे क्लिनिकल नेफ्रोलोजिस्ट और शोधकर्ताओं को आकर्षित करेगा। इस वैज्ञानिक कार्यक्रम में कई सारी सीएमई होनी हैं, रिसर्च पेपर पढ़े जाने हैं, प्लेनरी लेक्चर होने हैं, पोस्टर सत्र होगा और पैनल डिस्कशन होंगे। पूरे देश से लगभग 1500 प्रतिनिधियों केे इस सम्मेलन में भाग लेने की संभावना है। पिछले साल पड़ोसी देशों के करीब 100 प्रतिनिधि सम्मेलन में शामिल हुए थे। आईएसएएन, इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी से संबद्ध है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.