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कुमकुम झा
मत कहो कि रंगहीन हो गया है
उम्मीदों का रंग
मत जोड़ो उस इन्द्रधनुष के संग
किसी भोर का सम्बन्ध ?
कई बार ऐसा भी हुआ है कि
क्षितिज के उस पार उगा सूर्य
फिर भी सुबह नहीं हुई ।
काली घनघोर घटाएँ सूरज को
छिपाने की कोशिश की
फिर भी नींद से जगा मुझ से बोली
की भोर हो गई ।
क्यों खड़े हो याचक सा
और मांग रहे हो प्रकाश का दान
आओ अपने हाथों से बनाएँ सूर्य
हो सकता है हमारा बनाया हुआ सूर्य
नही छू सकता आकाशी ऊँचाई
फिर भी वो भर देगा मेरे हाथों
में प्रकाश असीमित रंगों वाला
और तब आप नहीं कह पाएँगे कि
रंगहीन हो गया है उम्मीद का रंग ।