केरल की एक पुकार

नई दिल्ली। कैसे भूल सकता है कोई भी शख्स पिछले वर्ष की केरल त्रासदी को, आज भी जब उसका ख्याल उठता है तो वही रोते-बिलखते लाखों चेहरे सामने आ जाते हैं। लेकिन ये सोचकर संतुष्टि होती है कि जब बाढ़ के बीच लाखों जिंदगियां जूझ रही थी तो केरल की एक पुकार पर पूरा देश एकजुट हो गया था। थोड़ा ही सही, लेकिन कोने-कोने मदद के लिए हाथ बढ़ रहे थे। उस घटना ने इंसानियत की एक नई मिसाल कायम की थी।

उस घटना ने मुझे विश्वास दिलाया था कि चाहे हम किसी शहर, किसी प्रांत, किसी राज्य में क्यूं न बसें हों, अगर दूसरे राज्यों में बसे हमारे भाईयो-बहनों, बुर्जुगों और बच्चों को तकलीफ पहुंचेगी तो हम सब हमेशा मजबूत ढाल बनकर उनके साथ खड़े रहेंगे। लेकिन बिहार में आई आपदा ने मेरा विश्वास तोड़ दिया है और ये घटना बार-बार मुझे अहसास दिला रही है कि इस प्यार में भी कहीं न कहीं सौतलेपन समा चुका है। बिहार में बाढ के कोहरम के चलते न जाने कितने लोग अब तक अपनी जानें गवां चुके है। हर ओर तबाही का मंजर है।

स्कूल, काॅलेज क्या अब तो अस्पतालों में भी पानी घुटने-घुटने तक भर चुका है। न लोगो को ठीक से खाना मिल पा रहा है, न इलाज। लेकिन रो रहें बिहार के आंसूओं को पोछने के लिए हाथ आगे नही बढ़ पा रहे हैं? मै पूछता हूं क्यूं? क्या वहां ज़िंदगियां नही बसती? क्या ये जिम्मेदारी केवल एनडीआरएपफ और एसडीआरएपफ की ही है,आपकी और हमारी नहीं? बिहार को आपकी जरुरत है, मेरा आपसे निवेदन है कि  आगे आईए और बिहार को बचाईए।

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