कोजागरा, मिथिलांचल का एक लोक पर्व, जिसे लक्ष्मी पूजा के नाम से भी जाना जाता है। आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को यह व्रत होता है। चांद तो यूं भी खूबसूरत होता है, परंतु इस रात चांद की खूबसूरती देखते बनती है। आश्विन और कार्तिक को शास्त्रों में पुण्य मास कहा गया है। वर्षा ऋतु में जहां कीचर और पानी का जमाव हो गया था अब वे सूख गये हैं और चारों ओर हरियाली बिखरी रहती है। नदियों एवं तालबों में जल भरे रहते हैं। किसान पुरानी फसल काट कर नई फसल बोने की तैयारी कर रहा होता है। हर तरफ नयापन और उमंग दिखाई देता है। इस खुशियों भरे मसम में आसमान से बादल छट चुके होते होते है और धवल चांदनी पूरी धरती को आलोकित करती है।
कोजागरा पूर्णिमा की रात की बड़ी मान्यता है। कहा गया है कि इस रात चांद से अमृत की वर्षा होती है। बात काफी हद तक सही है। इस रात दुधिया प्रकाश में दमकते चांद से धरती पर जो रोशनी पड़ती है उससे धरती का सन्दर्य यूं निखरता है कि देवता भी धरती पर आनन्द की प्राप्ति हेतु चले आते हैं। इस रात की अनुपम सुन्दरता की महत्ता इसलिए भी है, क्योंकि देवी महालक्ष्मी जो देवी महात्मय के अनुसार सम्पूर्ण जगत की अधिष्ठात्री हैं, इस रात कमल आसनपर विराजमान होकर धरती पर आती हैं। मां लक्ष्मी इस समय देखती हैं कि उनका कन भक्त जागरण कर उनकी प्रतिक्षा करता है, कौन उन्हें याद करता है। मां इस रात देखती है कि कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है। यही कारण है कि शाब्दिक अर्थ में इसे को-जागृति यानी कोजागरा कहा गया है।
कोजागरा पूजा की ऐसी मान्यता है कि जो भक्त रात में जागरण करते हैं और भजन कीर्तन करते हुए माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं, उन्हें मां का आशीर्वाद मिलता है। माता लक्ष्मी के आशीर्वाद से धन का आगमन होता है और सुख सम्पत्ति का भोग होता है। इस रात धन धान्य की प्राप्ति के लिए माता लक्ष्मी और गणेश की पूजा करनी चाहिए। इस दिन व्रत का भी विधान है। व्रत रखने वालों को संध्या के समय गणपति और माता लक्ष्मी की पूजा करके अन्न ग्रहण करना चाहिए। माता महालक्ष्मी की पूजा करते समय सबसे पहले प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश जी की पूजा करें फिर माता महालक्ष्मी की। पंचोपचार से पूजा करने के बाद मां को नैवेद्य में मखाना, सिंघाड़ा व लड्डू का भोग लगाएं।
देश के विभिन्न भागों में इस दिन को अलग अलग रूप में मनाया जाता है। बिहार के मिथिला क्षेत्र में यह दिन काफी उल्लास पूर्वक मनाया जाता है। जिनकी शादी वर्ष के अन्दर हुई होती है, उस दुल्हे को चूमाया जाता है। पान, मखान और मिठाईयां बांटी जाती है। इस अवसर पर लोग अपने रिश्तेदारों एवं समाज के लोगों को खाना खिलाते हैं। चूंकि इस रात जागने की एक प्रथा है इसलिए जीजा और साले मिलाकर कौड़ियों का खेल खेलते हैं। देश के दूसरे भागों में भी इस दिन कड़ी यानी चपड़ खेलने का रिवाज है जिसमें देवर भाभी के बीच यह खेल होता है।