पद्म भूषण कवि कुंवर नारायण का निधन

नई दिल्ली। कवि कुंवर नारायण का 90 साल की उम्र में बुधवार को निधन हो गया। मूलरूप से फैजाबाद के रहने वाले कुंवर पिछले करीब 51 साल से साहित्य में सक्रिय थे। उनकी पहली किताब ‘चक्रव्यूह’ साल 1956 में आई थी। राजनैतिक विवाद से हमेशा दूरी बनाए रखने वाले कुंवर को 41वां ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था। साल 1995 में उन्हें साहित्य अकादमी और साल 2009 में उन्हें पद्म भूषण अवार्ड मिला था। वह दिल्ली में सीआर पार्क इलाके में पत्नी और बेटे के साथ रहते थे।
लखनऊ यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर से पोस्ट ग्रेजुएट कुंवर नारायण कविता, महाकाव्य, निबंध, कहानियां, आलोचना, सिनेमा और कला पर लिखते रहे हैं। हालांकि, पढ़ाई के तुरंत बाद उन्होंने पुश्तैनी ऑटोमोबाइल बिजनेस में काम करना शुरू कर दिया था। बाद में आचार्य कृपलानी, आचार्य नरेंद्र देव और सत्यजीत रे से प्रभावित होकर साहित्य में उनकी गहरी रुचि हो गई।
कहा जाता है कि कुंवर को कबीर की कविताएं, उपनिषण, अमीर खुसरो और गालिब जुबानी याद थी। ‘अयोध्या 1992’ कविता पर उन्हें धमकी भी मिली थी। कुंवर जी की प्रतिष्ठा और आदर हिन्दी साहित्य की भयानक गुटबाजी के परे सर्वमान्य है। उनकी ख्याति सिर्फ़ एक लेखक की तरह ही नहीं, बल्कि कला की अनेक विधाओं में गहरी रुचि रखने वाले रसिक विचारक के समान भी है। कुंवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के माध्यम से वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। उनका रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं है। फ़िल्म समीक्षा तथा अन्य कलाओं पर भी उनके लेख नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं। आपने अनेक अन्य भाषाओं के कवियों का हिन्दी में अनुवाद किया है और उनकी स्वयं की कविताओं और कहानियों के कई अनुवाद विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं में छपे हैं। ‘आत्मजयी’ का 1989 में इतालवी अनुवाद रोम से प्रकाशित हो चुका है। ‘युगचेतना’ और ‘नया प्रतीक’ तथा ‘छायानट’ के संपादक-मण्डल में भी कुंवर नारायण रहे हैं।
वह उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के उपाध्यक्ष और भारतेंदु नाट्य अकादमी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उन्हें 1971 में हिंदुस्तान अकादमी पुरस्कार, 1973 में प्रेमचंद पुरस्कार, 1982 में मध्य प्रदेश के तुलसी पुरस्कार, 1982 में ही केरल के कुमारन् पुरस्कार और 1988 में हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा सम्मानित हो चुके हैं. उनकी प्रमुख कृतियां 1956 में चक्रव्यूह, 1959 में तीसरा सप्तक, 1961 में परिवेश: हम-तुम, 1965 में आत्मजयी/प्रबंध काव्य, 1979 में अपने सामने, 1971 में आकारों के आसपास उनकी चर्चित कहानी संग्रह है। उन्होंने कॉन्सटैंटीन कवाफी और खोर्खे-लुई बोर्खेस की कविताओं का भी साल 1986-87 में अनुवाद किया।

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