23 दिसम्बर के बाद बिहार की राजनीति में होगा बदलाव

लालू यादव पर चारा घोटाले को लेकर सुनवाई चल रही है। 23 दिसंबर को बड़ा फैसला आने वाला है। लालू आरोपी हैं और अगर कोर्ट उन्हें दोषी करार देती है, तो स्वाभाविक है लालू को जेल यात्रा करनी पड़ सकती है। लालू के जेल जाते ही इसका सीधा प्रभाव राजद के साथ-साथ बिहार कांग्रेस पर भी पड़ेगा। कहते हैं सियासत में राजनेता राजनीतिक घटनाएं जल्दी नहीं भूलते हैं।

अखिलेश अखिल

हार जीत की राजनीति से गुजरात और हिमाचल में हलचल है लेकिन बिहार की राजनीति कुछ ज्यादा ही गर्म हो चली है। पटना की राजनीति का तापमान काफी बढ़ा हुआ है। लालू प्रसाद के खेमे में भी और नीतीश कुमार के खेमे में भी। लेकिन असर पड़ता दिख रहा है बिहार कांग्रेस पर। माना जा रहा है कि गुजरात और हिमाचल में बीजेपी की वापसी के बाद नितीश कुमार का खेमा कुछ ज्यादा ही तल्ख़ है। कांग्रेस के विधायकों को तोड़कर अपने खेमे में मिलाने की राजनीति चल रही है। खबर है कि कांग्रेस के 18 विधायक जदयू और बीजेपी के संपर्क में हैं और वे किसी भी वक्त अपना ईमान बदल सकते हैं।
लालू यादव पर चारा घोटाले को लेकर सुनवाई चल रही है। 23 दिसंबर को बड़ा फैसला आने वाला है। लालू आरोपी हैं और अगर कोर्ट उन्हें दोषी करार देती है, तो स्वाभाविक है लालू को जेल यात्रा करनी पड़ सकती है। लालू के जेल जाते ही इसका सीधा प्रभाव राजद के साथ-साथ बिहार कांग्रेस पर भी पड़ेगा। कहते हैं सियासत में राजनेता राजनीतिक घटनाएं जल्दी नहीं भूलते हैं। कांग्रेस के अध्यक्ष अब राहुल गांधी हैं। जिन्होंने सितंबर 2013 में दागियों के चुनाव लड़ने संबंधी सरकारी अध्यादेश को फाड़ दिया था। राहुल गांधी ने अध्यादेश के लिए बेहद कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा था कि अध्यादेश पर मेरी राय है कि यह सरासर बकवास है और इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए। राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें, तो राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने से बिहार के वह नेता खुश हैं, जो लालू को पसंद नहीं करते। लालू से खार खाए बिहार के कुछ विधायक, जो नीतीश और भाजपा से लगातार संपर्क में हैं। लालू के जेल जाने की स्थिति में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पार्टी का साथ छोड़ सकते हैं। कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता मानते हैं कि गुजरात में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया है और अब सवाल ही नहीं उठता है कि बिहार में लालू के नीचे रहकर पार्टी काम करे। जीतना होना था, वह हो गया, अब राहुल के नेतृत्व में ऐसा नहीं होगा।
लालू हाल तक अपनी ही हांक रहे थे और 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर बनने वाले एंटी एनडीए फ्रंट का अगुवा अपने-आपको मानकर चल रहे थे, लेकिन गुजरात में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन कर लालू के उस सपने पर पानी फेर दिया, जिसमें वह राहुल के नेतृत्व को अंदर ही अंदर स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। गुजरात में कांग्रेस हार कर भी अपना कद बढ़ाने में कामयाब रही है। वह गुजरात भाजपा के विकल्‍प में एक सशक्‍त पार्टी के रूप में नजर आयी है। इधर, बिहार में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अशोक चौधरी पर नीतीश गुट की कृपा दृष्टि बनी हुई है और वह लालू के विरोधी माने जाते हैं, जबकि कार्यकारी अध्यक्ष के बारे में कहा जाता है कि वह लालू के करीबी हैं। जदयू के नेता कई बार मीडिया के सामने बयान दे चुके हैं कि कांग्रेस के कई नेता लालू में अपना भविष्य नहीं देखते, इसलिए वह कभी भी जदयू के पाले में आ सकते हैं।
राजनितिक जानकार मानते हैं कि लालू के लिए परिवार हमेशा सर्वोपरि रहा है और वह पहले भी जेल जाते वक्त राबड़ी देवी को कमान सौंपकर गये थे। इस बार ऐसी परिस्थितियां आती हैं, तो लालू तेजस्वी को पहले से तैयार कर चुके हैं और वह उन्हें अपनी विरासत सौंपकर आराम से जेल जा सकते हैं। वहीं दूसरी ओर जदयू और कांग्रेस का मानना है कि लालू के जेल जाते ही राजद के अंदर भी फूट हो जायेगी और असंतुष्ट नेता बागी रुख अपना लेंगे। राजद के कई नेता पार्टी के अंदर सही तरजीह नहीं मिलने को लेकर खासे नाराज हैं और वह भी जदयू के संपर्क में हैं। फिलहाल, भले राजद के अंदर फूट पड़े या न पड़े, लेकिन इतना तय है कि लालू के जेल जाने के बाद कांग्रेस के कुछ नेता अब राजद से अपने आपको दरकिनार करना ही उचित समझेंगे।
23 दिसम्बर की संभावित घटना पर सियासतदानों की नजरें टिकी है। राजद के भीतर भी उबाल है और कांग्रेस के भीतर भी कई लोगों की ललचाई नजरें भविष्य पर टिकी है। राजद की राजनीति परिवार से बाहर निकलती नहीं दिख रही तो कांग्रेस के पास प्रदेश में कोई ऐसा नेता नहीं है कि पार्टी को सम्हाल कर रख सके और पार्टी को लालू के पंजे से छुटकारा दिला सके। ऐसे में समय रहते कोई बड़ी तैयारी कांग्रेस की तरफ से नहीं की गयी तो पार्टी में टूट की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

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