युग्म कान्सेप्ट के साथ मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल 2019 राजनगर और सौराठ में

मिथिला में युग्म का बहुत अधिक महत्व है। कई गांवों के नाम हैं। कई संस्कार और लोकाचार भी युग्म में हैं।मैथिल विवाह संस्कार में आम-महु विवाह से अधिकाधिक लोग परिचित हैं। युग्म की परिकल्पना मिथिला में सदियों से चली आ रही है। यहां के लोक जीवन में लोग इसे आत्मसात कर चुके हैं। मिथिला लिटरेचर फेस्टिवल का मानना है कि मिथिला के सांस्कृतिक परिवेश में युग्म की संकल्पना बहुत गहरे पैठी है मसलन सीता-राम शिव-शक्ति राधा-कृष्ण कारो-खिरहर सरिसब-पाही धस-सिसबा पड़री-चैनपुर ठक-बक सामा-चकेबा जटा-जटिन खेत-पथार और सैंकड़ों ऐसे आम बोलचाल की भाषा में प्रयोग एक समावेशी मानस की ओर इंगित करते हैं। ऐसे में हमने फेस्टिवल का स्वरुप आम-महु विवाह के सरीखा सूक्ष्म और सघन मानव-प्रकृति मेल में रचने की कोशिश की है। आम-महु विवाह मानवीय मैथिल संस्कार से ठीक पहले सर्वप्रथम प्रकृति के साथ एक अंतरंग संवाद है। बिना प्रकृति को केंद्र में रखे कोई भी संस्कार प्रतिफलित नहीं हो सकता है। ऐसी अवधारणा के संग हम इन दोनों ऐतिहासिक सांस्कृतिक महत्व के स्थलों को ग्राम-युग्म की संकल्पना के साथ उपस्थित होंगे।

ग्राम युग्म की परिकल्पना को धरातल पर उतारते हुए मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल 2019 इस बार ऐतिहासिक गांव राजनगर और सौराठ में किया जा रहा है। बता दें कि राजनगर मधुबनी जिले में है और इसका ऐतिहासिक महत्व है। यह एक जमाने में महाराज दरभंगा की उप-राजधानी हुआ करता था। यह महाराजा रामेश्वर सिंह के द्वारा बसाया गया था। उन्होंने यहां एक भव्य नौलखा महल का निर्माण करवाया लेकिन 1934 के भूकंप में उस महल को काफी क्षति पहुंची और अभी भी यह भग्नावशेष के रुप में ही है। इस महल में एक प्रसिद्ध देवी काली का मंदिर है जिसके बारे में इलाके के लोगों में काफी मान्यता और श्रद्धा है। बताया जाता है कि जब इस नगर को रामेश्वर सिंह बसा रहे थे उस वक्त वे महाराजा नहीं बल्कि परगने के मालिक थे। राजा के छोटे भाई और संबंधियों को परगना दे दिया जाता था जिसके मालिक को बाबूसाहब कहा जाता था। बाद में अपने भाई महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह की मृत्यु के बाद, रामेश्वर सिंह, दरभंगा की गद्दी पर बैठे। लेकिन 1934 के भूकंप ने राजनगर के गौरव को ध्वस्त कर दिया। हलांकि यहां का भग्नावशेष अवस्था में मौजूद राजमहल और परिसर अभी भी देखने लायक है। राजनगर, मधुबनी जिला मुख्यालय स करीब 7 किलोमीटर उत्तर में है और मधुबनी-जयनगर रेलवे लाईन यहां से होकर गुजरती है। यह मधुबनी-लौकहा रोड पर ही स्थिति है और यातायात के साधनों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

असल में मधुबनी जिला मुख्यालये चंद किलोमीटर दूर सौराठ अपनी ऐतिहासिकता और लोक-संस्कार के कारण देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। सौराठ सभा मिथिला का वह सांस्कृतिक तीर्थ है जहां विवाह योग्य वर विवाह हेतु जमा होते हैं और कन्यागत अपनी रूचि के अनुसार वर की योग्यता एवं शील गुण की जांच-परख कर विवाह सम्बंध तय करते हैं। इतिहास बताता है कि सौराठ-सभा शुभारम्भ ओइनवारवंशीय ब्राम्हण शासक दरभंगा महाराज क्षत्र सिंह के समय सन 1820 ई में हुआ। हालांकि मिथिला में ऐसी सभा का आयोजन पहली बार 1310 में होने का भी जिक्र है। कहा जाता है कि सौराठ-सभा इससे पूर्व समौल गांव में था। समौल ग्राम निवासी पंडित धारे झा पंजीकार महाराजा क्षत्र सिंह के आश्रय में रहते थे। एक बार उन्हें किसी कारण वश अशौच का संवाद दरभंगा में विलम्ब से दिया गया। इसी कारण वह अशौच से निवृत होने पर उन्होंने निर्णय लिया कि अब वे समौल गांव नहीं जाएंगे और अपने मौसेरा भाई के गांव सौराठ में रहने का निश्चय किया। उन्होंने तरौनी गांव निवासी हकरू गोसाई से आग्रह किया कि समौल की वैवाहिक सभा अन्यत्र स्थापित की जाए। हकरू गोसाई कुछ विलक्षण सामग्री मंगवाकर सौराठ गांव पहुंचे और एक पीपल वृक्ष की जड़ में अपने साथ लायी सामग्री एवं खंती को गाड़ दिया। उसके बाद प्रति वर्ष सौराठ में ही वैवाहिक सभा होने लगी। अभी भी नक्शा एवं जमीन के कागजात में यह उल्लेखित है -शुद्धान्त में वार्षिक सभा के वास्ते दरभंगा महाराज के द्वारा प्रदत्त।
कहा जाता है कि यह सभा पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है। जो बात विज्ञान आज कह रहा है, उसे राजा हरिसिंह देव ने सात सौ साल पहले लागू करवा दिया था। सौराठ सभा में सात पीढ़ियों तक रक्त संबंध यानी ब्लड रिलेशन व ब्लड ग्रुप मिलने पर शादी की इजाजत नहीं दी जाती है। देखा जाए तो आज मेडिकल साइंस भी ब्लड रिलेशन में शादी की इजाजत नहीं देता है। जो लोग इसे सूचीबद्ध करते हैं वे पंजीकार कहलाते हैं।
इतना ही नहीं, देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक गुजरात के भगवान सोमनाथ का एक अंश बिहार के मधुबनी जिले में भी है। यह बात सुनने में अटपटी लग सकती है लेकिन जब आप मधुबनी जिले के सौराठ में भगवान सोमनाथ के मंदिर पहुंचेंगे और वहां के लोगों की कहानियां सुनेंगे तो यकीन हो जाएगा। दरअसल मधुबनी जिले के सौराठ में सोमनाथ महादेव का मंदिर है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग गुजरात के सोमनाथ से लाया गया है। सौराठ का नाम भी गुजरात के सौराष्ट्र से मिलता जुलता है। सोमनाथ से शिवलिंग लाए जाने के कारण ही इस जगह का नाम सौराठ पड़ा जो सौराष्ट्र का ही अपभ्रंश है।

उल्लेखनीय है कि मधुबनी लिटरचेर फेस्टिवल का आयोजन सेन्टर फॉर स्टडीज ऑफ ट्रेडिशन एंड सिस्टम्स नई दिल्ली कर रही है। आयोजकों ने बताया कि इस बार मधुबनी लिटरचेर फेस्टिवल 24 से 27 दिसंबर, 2019 तक चलेगी। शुरुआत के दो दिन यानी 24 और 25 दिसंबर को राजनगर में और उसके बाद 26 व 27 दिसंबर 2019 को सौराठ में किया जा रहा है।

असल में यह फेस्टिवल एक बहुभाषिक समुदाय की अपने धरोहर के सचेतन को समेटने और समृद्ध साहित्य कला के उल्लास का एक उत्सव है इसकी परिकल्पना विरासत स्थानीयता और वैश्विक को एक सूत्र में बांधने का है। इसका उद्देश्य आने वाली पीढ़ी को उसके समृद्ध संस्कृति से परिचय और विस्थापन को रोकना है। इस फेस्टिवल का विषय क्षेत्र मिथिला के विशिष्ट अतीत और भविष्य का रेखांकन है। इस फेस्टिवल में मैथिली भाषा-साहित्य उद्योग जल संसाधन राजनीति कुटीर उद्योग हस्तकला (सुजनी केथरी लाह जनेऊ सूती कड़ी वस्त्र ) मिथिला चित्रकला(गोदना और तंत्र) भोजन-विन्यास स्थापत्य जीवन-शैली मैथिली रंगमंच फोटोग्राफी आदि विषयों पर पैनल चर्चा-परिचर्चा वार्ता आयोजित होंगे। हर दिन कवि सम्मेलन भी प्रस्तावित है।

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