सुप्रीम कोर्ट ने बसपा की सुप्रीमो मायावती को अपने पूर्व मुख्यमंत्री के समय लगाई गयीं हाथी की मूर्तियों और अपनी व कांशीराम की प्रतिमाओं के पैसे देने के निर्देश दिए हैं जिन पर करोडों रुपये खर्च हुए थे । इन मूर्तियों के निर्माण के चलते मायावती अपने शासनकाल में ही आलोचना के केंद्र में रही थीं । अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी मोहर लगा दी कि इस तरह जनता के खून पसीने के पैसे को बर्बाद करना सही नहीं । अब इसका भुगतान करो ।
हरियाणा में भी एक समय चौ देवीलाल की प्रतिमाएं लगभग सभी शहरों के पार्कों में लगीं और कवियों ने मंच पर ही व्यंग्य करना शुरू किया कि
हर पार्क में ताऊ देवीलाल खडे ।
इस तरह वह समय भी पार्टी की आलोचना का समय था । अति हर चीज की बुरी होती है । फिर चाहे रोज खाने को खीर ही क्यो न परोसी जाए , वह भी अच्छी नहीं लगेगी । कंजकों को पूजते समय हम चाहते हैं कि सभी कन्याएं हमारे घर की पूरी और हलवा खाकर जाएं पर वे बच्चियां भी सिर्फ दक्षिणा की ओर देखती हैं और हलवा पूरी पैक करवा कर ले जाती हैं ।
राजनीति की इसी परंपरा पर एक बार फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर ने ट्वीट कर दिया था : क्या यार , जहां देखो , गांधी ही गांधी । एयरपोर्ट गांधी , अस्पताल गांधी । नेहरू और वह नेहरू के नाम । क्या सारा देश इन्हीं का हो गया ?
हालांकि इस ट्वीट के चलते ऋषि कपूर बहुत आलोचना के पात्र बने लेकिन यह एक आम आदमी का बयान समझा जाए । प्रतिमाओं और मूर्तियों के अलावा भी कोई और तरीका है सकता है नमन् करने का ? शहीद भगत सिंह के भांजे प्रो जगमोहन सिंह बार बार कहते हैं कि प्रतिमा लगाने की बजाय विचार जानिए और उन टर चलिए लेकिन फिर प्रदर्शन की राजनीति का क्या होगा ?
आज सेल्फी और फेसबुक के जमाने में जब प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह अस्पताल में भर्ती हैं तो लेखक उनके साथ अपनी पुरानी फोटो पोस्ट कर रहे हैं । किसी ने पूछा इसका मतलब क्या है ?
तो जवाब आया कि सस्ती लोकप्रियता । ठीक है । फिर इसके लिए नेता लोग पैसे भी जेब से खर्च करें । लोकप्रियता पाने का मजा भी आएगा ।