हे प्रधानसेवक ! हम गरीबों पर जुर्माना मत लगाइये

अखिलेश अखिल

इसमें कोई दो राय नहीं कि देश की मोदी सरकार गरीबो को लूटने में कोई कोताही नहीं बरत रही है।  गुलाम भारत में भी गरीब गुरबे ,किसान,मजदूर लूट के शिकार थे ,आज भी हैं। गरीबो के घर पहले भी सूदखोरों ,महाजनो और सरकारी तंत्रों के डाके पड़ते थे ,आज भी पड़ रहे हैं। लगता तो ऐसा है कि पहले की तुलना में गरीबो की लूट पहले से ज्यादा बढ़ गयी है। प्रधानसेवक मोदी जी बार बार कहते फिरते हैं कि वे चाय बेचते थे। अब प्रधान सेवक हो गए हैं। चाय बेचने से आज तक उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा होगा। इस देश में बहुतेरे लोग चाय बेचकर जीवन जीते हैं। खानदान दर खानदान। लेकिन उनकी हालत आज भी जस की तस है। हालात नहीं बाले। अधिकतर खानदानी पेशेवरों की हालत नहीं बदली। लेकिन जो एक बार राजनीति में आ जाता है उसकी हालत कई पुस्तो के लिए बदल जाती है। समझ में नहीं आता कि राजनीति में आने के बाद नेताओं की हालत अचानक कैसे बदल जाते हैं।
मोदी जी अपने हर भाषण में कहते हैं कि उन्हें गरीबो की बड़ी चिंता है। लेकिन उनकी चिंता कही दिखाई नहीं पड़ती। दिख तो रहा कि उनकी सरकार उलटे गरीबो को लूट रही है। पिछले एक साल से देश में ऐसी व्यवस्था स्थापित की जा रही है जिसमें सभी तरह की रोक, टैक्स आदि गरीब वर्ग पर लागू किया जाएगा और अमीर वर्ग शासन करेगा। स्टेट बैंक आफ इंडिया ने अप्रैल से नवंबर 2017 के बीच उन खातों से 1771 करोड़ कमा लिए हैं, जिनमें न्यूनमत बैलेंस नहीं था। यह डेटा वित्त मंत्रालय का है।
न्यूनतम बैलेंस मेट्रो में 5000 और शहरी शाखाओं के लिए 3000 रखा गया है। एसबीआई की ये वसूली उसके जुलाई से सितम्बर तिमाही के मुनाफे से भी ज़्यादा है। पंजाब नेशनल बैंक ने इन खातों पर चार्ज लगाकर 97 करोड़ वसूले और भारतीय केन्द्रीय बैंक ने 68 करोड़।
एसबीआई के पास 42 करोड़ बचत खाताधारक हैं। उन लोगों पर जुर्माना लगाया है जो न्यूनतम बैलेंस अकाउंट में नहीं रख पा रहे हैं। इनके खाते से 50-100 रूपये काटते-काटते एसबीआई ने 1771 करोड़ उड़ा लिए।
अब आप ही बताये साहेब कि जिन लोगों के खाते में पैसे नहीं है तो इसमें उनका क्या दोष है ? कमाई होगी और बचत होगा तब ही कोई आदमी बैंक में पैसा डालेगा। एक तरफ आप कहते हैं कि खाता खोलो और दूसरी तरफ कहते हैं कि खता में आपसे नहीं हैं इसलिए तुम्हारे जमा धन को आप खा जाएंगे। यह कहाँ का न्याय है साहेब ! अगर आप हमारी आय बढ़ाने की चेस्टा करते ,रोजगार देते और कमाई का साधन बढ़ाते तभी हम गरीब बैंक में जमा करते। क्या आपने ऐसा किया ? उलटे जो राशि जमा थी उसे भी हजम करते चले गए। कुछ इसी तरह का खेल आप अमीरों के साथ क्यों नहीं करते ? उन कॉर्पोरेट घरानो के साथ क्यों नहीं करते जो देश की बड़ी पूंजी आपके तंत्र के जरिए ले उड़े और अब देने का नाम नहीं लेते। डाका डाले कोई और भरपाई करें हम। यह कैसा इन्साफ है।
सुनिए साहेब ! जो इंसान अपने खाते में 3 से 5 हज़ार भी नहीं रख पा रहा है उसकी कमाई कितनी होगी। देश में किसकी कितनी कमाई है इसकी जानकारी तो आपको है ही। गरीबी की संख्या आपके फाइलों में चाहे जितनी हो लेकिन सच यही है कि देश की आधी से ज्यादा आवादी घोर गरीबी और विषमता में जीने को अभिशप्त है। आप चुकी अब हवाई सफर करने लगे हैं और एक देश से दूसरे देश जाने लगे हैं इसलिए भारत की असली हालत का शायद आपको ज्ञान नहीं रह गया है। एक महीना देश के गाँव और और गरीबो के घर में जाकर घूमिये तब आपको पता चलेगा कि आपकी सरकार जो वादा करती फिरती है उसकी सच्चाई क्या है। हम गरीबो के लिए किसी की सरकार बने कोई फरक नहीं पड़ता। हमारे बाल बच्चे क्या कर पाते हैं ,खाते है या नहीं ,बेटी बहन की शादी कैसे करते हैं ,आप क्या जानेंगे ?
क्या आप की सरकार हम गरीबो के जमा पैसे से अमीरों की अमीरी बढ़ाने का काम नहीं कर रही ? हम गरीबो के पैसे से आप अपना तंत्र चलाना चाह रहे हैं लेकिन हमें कुछ देना नहीं चाहती। एक तो हम पहले से ही कमजोर हैं और इस कमज़ोर आर्थिक स्थिति में भी आपके बैंको ने हमसे चार्ज वसूला। हमारी गरीबी और कमजोरी का मजाक मत उड़ाएं सरकार। सवाल है कि क्या अब इस देश में ग़रीब होने का भी जुर्माना लगेगा? आपको बता दें, कि ये चार्ज पांच साल पहले बंद कर दिया गया था लेकिन पिछले साल से इसे फिर से लागू कर दिया गया है।
गौरतलब है कि बैंकों पर एनपीए ( बैंकों का ऐसा कर्ज़ जिसे कर्ज़दार वापस ना दे रहा हो) बढ़ता जा रहा है। सरकारी आकड़ों के मुताबिक ये लगभग 10 लाख करोड़ है। इसमें ज़्यादातर कर्ज़ बड़े उद्योगपतियों का है। बैंक इसे वसूल नहीं पा रहा है न ही सरकार इन उद्योगपतियों पर कर्ज़ चुकाने का दबाव बना पा रही है। लेकिन गरीब लोगों पर जुर्माना आसानी से लगाया जा रहा है। इतना ही नहीं पिछले तीन साल में उद्योगपतियों का 3 लाख करोड़ का कर्ज़ माफ़ कर दिया गया है।
हे प्रधानसेवक ,हम आपके ही देश के वाशिंदा हैं। हम भी इसी लोकतंत्र के आदमी हैं। हमारे ही वोट पर आपसबका खेल चलता है। हमारे बीच ही आप वादा करते फिरते हैं। हम कभी आपसे नहीं पूछते कि किये वादे को आपने नहीं निभाया। लेकिन आप हम से पूछे बगैर हमारा मामूली धन भी हड़प रहे हैं। हम गरीब जरूर हैं लेकिन ईमान में ज्यादा यकीन रखते हैं। काम से कम हमारी पूंजी पर डाका तो नहीं पड़े।

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