प्रकृति से नाता जोड़ें, पत्तल को अपनाएं

नई दिल्ली / टीम डिजिटल। जब हम बचपन में अपने गांव में रहते थे और उसके बाद शहर आए, तो शादी-ब्याज जैसे बड़े आयोजनों में भोजन पत्तल पर ही होता था. लेकिन, जब महानगर दिल्ली आया तो चीजें बदलने लगी. लोग पत्तल के बजाय थर्मोकाॅल, कागज के प्लेट आदि का उपयोग करने लगे. कुछ समय तक तो लोगों को यह अच्छा लगा, लेकिन अब लोगों को यह अखर रहा है. पर्यावरण की चिंता सताने लगी है. यदि आप वाकई अपने पर्यावरण को बचाना चाहते हैं और देश के तमाम किसानों का भला चाहते हैं, तो पत्तल का उपयोग करें. प्रकृति से नाता जोड़ें. यकीन मानिए, प्रकृति और पर्यावरण को बचाए रखेंगे, तो हमारा भविष्य सुखमय होगा.
असल में, असंगठित क्षेत्र के पत्तल उद्योग से लाखों मजदूरों की आजीविका जुड़ी है. बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड और राजस्थान जैसे राज्यों में भी अब पत्तों से बने पत्तलों का चलन धीरे-धीरे कम होने लगा है. यह शायद अकेला ऐसा उद्योग है जिस पर नोटबंदी की मार नहीं पड़ी है. यह कहना सही होगा कि यह उद्योग नोटबंदी नहीं बल्कि आधुनिकता की मार से परेशान है. ग्रामीण इलाकों में तो पत्तलों पर भोजन की परंपरा अब भी कुछ हद तक बरकरार है लेकिन शहरों में इसकी जगह कांच या चीनी मिट्टी की प्लेटों ने ले ली है. विभिन्न समारोहों में बुफे पार्टी का प्रचलन बढ़ने की वजह से भी पत्तों से बने पत्तल अप्रासंगिक होते जा रहे हैं.
पत्तल पर भोजन के अनगिनत फायदे हैं. जिन पत्तों से पत्तल बनते हैं उनमें अनगिनत औषधीय गुण होते हैं. कहा जाता है कि पलाश के पत्तल में भोजन से सोने के बर्तन में भोजन करने का लाभ मिलता है और केले के पत्तल में भोजन से चांदी के बर्तन में भोजन का लाभ. खून की अशुधद्ता की वजह से होने वाली बीमारियों में पलाश के पत्तल पर भोजन को फायदेमंद माना गया है. पाचन तंत्र संबंधी रोगों में भी इस पत्तल पर भोजन की सलाह दी जाती है. सफेद फूलों वाले पलाश के पत्तों से तैयार पत्तल पर भोजन करने से बवासीर यानी पाइल्स के मरीजों को लाभ होता है. इसी तरह पैरालिसिस या लकवाग्रस्त मरीजों को अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तल में और जोड़ों के दर्द से परेशान मरीजों को करंज की पत्तियों से बनने वाले पत्तल में भोजन की सलाह दी जाती है. पीपल के पत्तल में भोजन मंदबुद्धि बच्चों के इलाज में कारगर साबित होता है.
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे देश मे 2000 से अधिक वनस्पतियों की पत्तियों से तैयार किए जाने वाले पत्तलों और उनसे होने वाले लाभों के विषय में पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान उपलब्ध है, लेकिन मुश्किल से पांच प्रकार की वनस्पतियों का प्रयोग हम अपनी दिनचर्या मे करते हैं.

आम तौर पर केले की पत्तियों में खाना परोसा जाता है. प्राचीन ग्रंथों मे केले की पत्तियों पर परोसे गए भोजन को स्वास्थ्य के लिए लाभदायक बताया गया है. आजकल महंगे होटलों और रिसोर्ट मे भी केले की पत्तियों का यह प्रयोग होने लगा है.

भारत में सदियों से विभिन्न वनस्पतियों के पत्तों से बने पत्तल संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा रहे हैं. ये पत्तल अब भले विदेशों में लोकप्रिय हो रहा है भारत में तो कोई भी सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक उत्सव इनके बिना पूरा नहीं हो सकता था. इन समारोहों में आने वाले अतिथियों को इन पत्तलों पर ही भोजन परोसा जाता था. लेकिन अब ये पत्तल खत्म होने लगी हैं.
बता दें कि सुपारी के पत्तों से बनाई गई प्लेट, कटोरी व ट्रे भी बाजार में उपलब्ध हैं, जिनमें भोजन करना स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक है. जिसे प्लास्टिक, थर्माकोल के विकल्प में उतरा गया है, क्योंकि थर्माकोल व प्लास्टिक के उपयोग से स्वास्थ्य को बहुत हानि भी पहुंच रही है. सुपारी के पत्तों यह पत्तल केरला में बनाई जा रही हैं और कीमत भी ज्यादा नहीं है. तकरीबन 1.5, 2, रुपये साइज और क्वांटिटी के हिसाब से अलग अलग है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ पत्तल की जगह प्लास्टिक और थर्माकोल से बनी प्लेटों में भोजन को स्वास्थ्य के प्रति नुकसानदेह बताते हैं. उनका कहना है कि डिस्पोजेबल थर्माकोल की प्लेट में खाना खाने से उसमें मौजूद केमिकल भोजन के साथ मिल कर पाचन क्रिया पर प्रभाव डालते हैं. इससे कैंसर की आशंका होती है. इसी तरह डिस्पोजेबल गिलास में मिलाए गए केमिकल का छोटी आंत पर प्रतिकूल असर पड़ता है.
भारत में सदियों से विभिन्न वनस्पतियों के पत्तों से बने पत्तल संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा रहे हैं. ये पत्तल अब भले विदेशों में लोकप्रिय हो रहा है भारत में तो कोई भी सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक उत्सव इनके बिना पूरा नहीं हो सकता था. इन समारोहों में आने वाले अतिथियों को इन पत्तलों पर ही भोजन परोसा जाता था. लेकिन अब ये पत्तल खत्म होने लगी हैं.
भारत में पत्तल बनाने और इस पर भोजन करने की परंपरा कब शुरू हुई, इसका कोई प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है. लेकिन यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. यह जान कर किसी को भी हैरत हो सकती है कि देश में किसी दौर में 20 हजार से ज्यादा किस्म की वनस्पितयों की पत्तियों से पत्तल बनते थे. लेकिन आधुनिकता की बढ़ती होड़ ने इस उद्योग को समेट दिया है. अब खासकर शहरी इलाकों में पत्तल पर भोजन की परंपरा दम तोड़ती जा रही है. हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी केले के पत्तल पर भोजन की परंपरा का जिक्र मिलता है. अब तो महंगे होटलों और रेस्तरां में भी प्लटों पर केले के पत्ते रख कर भोजन करने की परंपरा बढ़ रही है. यह जानना दिलचस्प होगा कि भारत में भले ही सदियों पुरानी यह परंपरा बदल रही हो, विदेशी इसे बड़े चाव से अपना रहे हैं. खासकर यूरोप के प्रमुख देश जर्मनी में तो पत्तलों पर भोजन की परंपरा काफी लोकप्रिय हो रही है. पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए वहां इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है और अब उसकी देखादेखी दूसरे यूरोपीय देश भी पत्तलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं.
कहा तो यह भी जाता है कि पलाश के पत्तल में भोजन करने से स्वर्ण के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है. केले के पत्तल में भोजन करने से चांदी के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है. रक्त की अशुद्धता के कारण होने वाली बीमारियों के लिए पलाश से तैयार पत्तल को उपयोगी माना जाता है. पाचन तंत्र संबधी रोगों के लिए भी इसका उपयोग होता है. आम तौर पर लाल फूलों वाले पलाश को हम जानते हैं, पर सफेद फूलों वाला पलाश भी उपलब्ध हैं. इस दुर्लभ पलाश से तैयार पत्तल को बवासिर (पाइल्स) के रोगियों के लिए उपयोगी माना जाता है.जोड़ों के दर्द के लिए करंज की पत्तियों से तैयार पत्तल उपयोगी माना जाता है. पुरानी पत्तियों को नई पत्तियों की तुलना में अधिक उपयोगी माना जाता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि लकवा (पैरालिसिस) होने पर अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तलों को उपयोगी माना जाता है.


अनंत अमित, वरिष्ठ  पत्रकार  

Leave a Reply

Your email address will not be published.