क्या एनसीपी भी थामेगी एनडीए का दामन ?

अगर भाजपा और एनसीपी एक साथ आने के बेहद करीब पहुंच गए हैं तो इसमें प्रफुल्ल पटेल की सबसे अहम भूमिका बताई जा रही है. गुजरात में हाल ही में हुए हाई-प्रोफाइल राज्यसभा चुनावों में पटेल की भूमिका जिस तरह की रही, उससे यह संकेत मिल रहा था कि वे भाजपा या यों कहें कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के करीब आ रहे हैं.

सुभाष चंद्र

सियासत में कब क्या हो जाए, कह नहीं सकते. सियासी गलियारांे में चर्चा जोरों पर है कि गुजरात विधानसभा चुनाव को देखते हुए पडोसी राज्य महाराष्ट् की राजनीति भी नई करवट ले सकती है. शरद पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) आने वाले कुछ दिनों में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले केंद्र के सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा बन सकती है. जिन लोगों को एनसीपी को एनडीए में लाने के लिए चल रही प्रक्रिया के बारे में थोड़ा-बहुत मालूम है, वे कह रहे हैं कि इसकी कोशिशें पिछले कुछ हफ्तों से चल रही थीं, लेकिन अब जाकर स्थिति ऐसी बनी है जिसमें दोनों पक्ष सहमति के बिल्कुल करीब पहुंच गए हैं.
कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि आज अगर भाजपा और एनसीपी एक साथ आने के बेहद करीब पहुंच गए हैं तो इसमें प्रफुल्ल पटेल की सबसे अहम भूमिका बताई जा रही है. गुजरात में हाल ही में हुए हाई-प्रोफाइल राज्यसभा चुनावों में पटेल की भूमिका जिस तरह की रही, उससे यह संकेत मिल रहा था कि वे भाजपा या यों कहें कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के करीब आ रहे हैं. गुजरात में एनसीपी के दो विधायक हैं. वहां इन विधायकों ने भाजपा के लिए वोट डाले. जेडीयू के विधायक छोटू भाई वसावा ने दावा किया कि प्रफुल्ल पटेल उनसे भी आग्रह कर रहे थे कि वे भाजपा के पक्ष में वोट दें.
राज्यसभा के उन चुनावों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार और पार्टी में बेहद ताकतवर माने जाने वाले अहमद पटेल की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई थी. उस परिस्थिति में जिस तरह का बर्ताव प्रफुल्ल पटेल और उनकी पार्टी एनसीपी ने अहमद पटेल के साथ किया, उससे साफ हो गया था कि अब एनसीपी और कांग्रेस का एक साथ चलना मुश्किल है.
कहा जा रहा है कि कुछ बिंदुओं पर भाजपा और एनसीपी में सहमति तब तक नहीं बनी थी. यह बिल्कुल तय है कि अगर एनसीपी एनडीए में शामिल होती है तो वह मोदी सरकार का हिस्सा बनेगी. इसका मतलब साफ है कि उसके कुछ नेता मंत्री बनेंगे. अभी एनसीपी के पास लोकसभा में तीन सांसद हैं. राज्यसभा में पार्टी सांसदों की संख्या पांच है. ऐसे में कयास लगाया जा रहा है कि मोदी सरकार में एनसीपी के दो मंत्री बनाए जा सकते हैं.गुजरात में हुए राज्यसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस ने यह आरोप लगाया था कि भाजपा और उसकी अगुवाई वाली केंद्र सरकार अपनी एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए कर रही है. उन्हीं आरोपों के बीच जब यह बात सामने आई कि एनसीपी भाजपा के पक्ष में वोट डाल सकती है तो एक और चर्चा भी गर्म हुई. चर्चा यह कि जब प्रफुल्ल पटेल मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री थे तो उस वक्त का कोई मुकदमा उनके खिलाफ चल रहा है और इसकी आड़ में उन्हें भाजपा अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है.
कहा तो यह भी जा रहा है कि एनसीपी को भाजपा के करीब ले जाने की प्रक्रिया को तेज करने में नीतीश कुमार का भाजपा के साथ आ जाना भी एक बड़ी वजह बन गया. इससे एनसीपी में यह धारणा बनी कि विपक्ष का अभी की स्थिति में खड़ा हो पाना मुश्किल है और ऐसे में जिस तरह की सियासी बयार देश में बह रही है, उसके साथ हो लेना ही समय की मांग है. एक वर्ग का यह भी मानना है कि इस साथ के जरिये शरद पवार अपनी बेटी सुप्रिया सुले का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं.कांग्रेस से एनसीपी के मोहभंग की कड़ी सिर्फ प्रफुल्ल पटेल तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके तार पार्टी सुप्रीमो शरद पवार तक भी जाते हैं. गुजरात राज्यसभा चुनावों में पार्टी विधायकों का रुख बगैर शरद पवार की सहमति के तय हुआ हो, यह कोई नहीं मानेगा. थोड़ा और पीछे जाएं तो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन के वक्त भी शरद पवार की कांग्रेस के प्रति नाराजगी सार्वजनिक हुई थी. मीरा कुमार के नाम की घोषणा के वक्त को लेकर शरद पवार और कांग्रेस नेताओं में सहमति नहीं थी. उस वक्त और उसके बाद विपक्षी एकजुटता दिखाने के कई मौकों पर शरद पवार उपस्थित नहीं रहे हैं.
अब सवाल यह उठता है कि भाजपा को एनसीपी की क्या जरूरत है? दरअसल, एनडीए में शिव सेना ही एक ऐसी पार्टी है जो जब-तब भाजपा को आंख दिखाती है. पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे गाहे-बगाहे मोदी सरकार की नीतियों और भाजपा की आलोचना करते हैं. भाजपा एनसीपी को साथ लेकर शिव सेना को साथ लेकर चलने की मजबूरी को खत्म करना चाहती है. मजबूरी इसलिए क्योंकि महाराष्ट्र में भाजपा सरकार शिव सेना के समर्थन से ही बहुमत में है. याद रहे कि 2014 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद जब शिव सेना समर्थन का घोषणा करने में देर कर रही थी तो उस वक्त भी यह चर्चा जोरों पर थी कि एनसीपी के समर्थन से भाजपा वहां सरकार बना सकती है.

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