कहने नहीं, करने से संरक्षित होगा पर्यावरण : निशिकांत ठाकुर

निशिकांत ठाकुर

आजकल पर्यावरण एक बहुत बड़ा मुद्दा है जिसके बारे में सभी को जागरुक होना चाहिए।हमें प्रकृति में हो रहे नकारात्मक बदलाव को रोकने की जिम्मेदारी लेनी है। इस आयोजन के माध्यम से भारत का मकसद दुनिया को यह संदेश देना है कि पर्यावरण दिवस पर पेड़ लगाने जैसे सांकेतिक काम करने के बजाए इसे प्रदूषण फैलाने वाली लोगों की सामान्य आदतों में बदलाव से जोड़ कर एक बड़ा जन आन्दोलन बनाना है। हम सब को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि हम घटिया पॉलीथीन व प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करेंगे। हम प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने का प्रयास करेंगे, क्योंकि इससे हमारी प्रकृति पर, वन्य जीवन पर और हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है। हमारा देश, भारत, प्लास्टिक से पर्यावरण संरक्षण के बारे में जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस 2018 का वैश्विक मेजबान (होस्ट) है। इस वर्ष वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे सेलिब्रेशन का थीम हैं ” बीट प्लास्टिक पोल्लुशन” इस अवसर पर पुरे देश के सभी लोग मिलकर प्लास्टिक के इस्तेमाल से होने वाली प्रदूषण के लिए आवाज उठाएंगे।1972 में संयुक्त राष्ट्र में 5 से 16 जून को मानव पर्यावरण पर शुरु हुए सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र आम सभा और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनइपी) के द्वारा कुछ प्रभावकारी अभियानों को चलाने के द्वारा हर वर्ष मनाने के लिये पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना हुयी थी। इसे पहली बार 1973 में कुछ खास विषय-वस्तु के “केवल धरती” साथ मनाया गया था। 1974 से, दुनिया के अलग-अलग शहरों में विश्व पर्यावरण उत्सव की मेजबानी की जा रही है। कुछ प्रभावकारी कदमों को लागू करने के लिये राजनीतिक और स्वास्थ्य संगठनों का ध्यान खींचने के लिये साथ ही साथ पूरी दुनिया भर के अलग देशों से करोड़ों लोगों को शामिल करने के लिये संयुक्त राष्ट्र आम सभा के द्वारा ये एक बड़े वार्षिक उत्सव की शुरुआत की गयी है। हमें प्रकृति के साथ सद्भाव के साथ जुड़ कर रहना है। इस पर्यावरण दिवस पर हम सब इस बारे में सोचें कि हम अपनी धरती को स्वच्छ और हरित बनाने के लिए क्या कर सकते हैं ? किस तरह इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं ? क्या नया कर सकते हैं ?
पुराने समय में पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिये पेड़ लगाने पर सबसे अधिक जोर रहता था। पेड़ों की रक्षा करने के लिये बड़े बुजुर्ग बच्चों को उनसे सम्बन्धित किस्से-कहानियां सुनाये करते थे। पड़ों को देवताओं के समान दर्जा दिया जाता था ताकि उन्हें कटने से बचाया जा सके। बड़-पीपल जैसे छायादार पेड़ों को काटने से रोकने के लिये उनकी देवताओं के रूप में पूजा की जाती रही है। इसी कारण आज भी लोग बड़ व पीपल का पेड़ नहीं काटते हैं। तुलसी का पौधा पर्यावरण के लिये सबसे अधिक उपयोगी माना गया है, इसलिये लोगों द्वारा तुलसी का पौधा मन्दिरों व घर-घर में लगाया जाता है। पहले के समय में गांवों में कुंआ बनाते समय कुंअे के पास एक छायादार पेड़ देवता के नाम पर लगाया जाता था जिसे काटना वर्जित था। उसका उद्देश्य था कि गर्मी में उस कुंअे पर पानी पीने आने वाला राहगीर कुछ देर पेड़ की शीतल छाया में विश्राम कर सके। पहले लोगों ने पर्यावरण को बचाने के लिये नदी को माँ का दर्जा दिया तो तालाब, कुंआ, बावड़ी, जोहड़ को धार्मिक रीति-रिवाजों से जोड़ कर विभिन्न शुभ कार्यों में उनकी पूजा करने लगे। ऐसा करने का मकसद एक ही था कि लोग धार्मिक मान्यता के चलते उनमें गन्दगी डाल कर उन्हें प्रदूषित नहीं करें।

निशिकांत ठाकुर

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