खुद ही खुद के डॉक्टर मत बनिए

नई दिल्ली। आजकल इंटरनेट बिल्कूल आम बात हो चुकी है और इस कारण सेल्फ डाग्नॉसिस करणेवालों कि तादाद तेजीसे बढ रही है. मानो ये ट्रेंड ही बन गया है. जब भी हम बेचैन या थोडा बहुत बिमार सा महसूस करते है तभी सभसे पहले हम गुगल पर जा कर लक्षणों को ढूंढना सुरू करते है. खुद को महसूस हो रहे लक्षण किस बिमारी के है और उसपर क्या इलाज किया जा सकता है इस बारे में हम इंटरनेटपर सर्च करने लगते है. दस मे से आठ इंटरनेट यूजर्स स्वास्थ से जुडी जानकारी ऑनलाईन खोजना पसंत करते है, ये बात संशोधनसे सामने आयी है. कुछ मामलों मे इस बात ने व्यसन का रूप धारण किया है. इसे सायबरकॉंड्रिया संबोधित किया जाता है. स्वाथ्य से जुडी समस्याओं के बारे मे खुद ही ऑनलाईन निदान करने की प्रवृत्ति को सायबरकॉंड्रिया के नाम दिया गया है.
कभी कभार इंटरनेट पर हमे स्वाथ्य स्मस्याओं के बारे मे सही जाणकारी भी मिलती है और सही इलाज के बारे मे भी पता चलता है. लेकीन जादा तर बार इस प्रकार कि ऑनलाईन मिली जानकारी चिंता और भय पैदा कर देती है. सेल्फ डायग्नॉसिंग और आरोग्य समस्याओं अप्रमाणित निदान गंभीर मुद्दा बन जाता है.
इंडस हेल्थ प्लस की प्रतिबंधक आरोग्यसेवा विशेषज्ञ कांचन नायकवडी कहती है कि, सेल्फ डायग्नॉसिस और दवाईयां लेना बहुत सामान्य बात हो गयी है. उसके लिए कई कारण है. समय कि कमी, स्वास्थ सेवाओं कि मारामार, आर्थिक विवशता, जागरूकता कि कमी, आकर्षक विज्ञापन और औषधिओं का आसानी से उपलब्ध होऩा इन सभी कारणों वजह से सेल्फ मेडिकेशन बढ रहा है. दवाईयां लेने से पहले डॉक्टर कि सलाह जरूर ले. क्योंकि इस तरह डॉक्टर कि सलाह बिनाही दवाईयां लेनेसे उसका शरीरपर गंभीर असर हो सकता है. लक्षण के बारे मे ऑनलाईन जानकारी लेना ठिक है लेकिन उसके बारे में डॉक्टर कि सलाह लेना और सही ढंग से सेहत का मुआयना करना भी जरूरी है.
सेल्फ मेडिकेशन कि वजहसे होने वाले नुकसान :
– बिमारी का गलत निदान
– दवाईयों के शरीर पर होने वाले गंभीर परिणाम
– डॉक्टर कि सही सलाह से वंचित रह जाना
– दवाईंओ के साईड इफेक्ट के बारे मे जानकारी न होना
– फर्जी दवाईंओं का इस्लेमाल करना
– कम या जाता दवाईंयां लेना
– अधिनता और दुष्प्रयोग होनी की संभावना
– खाद्य और दवा के बिच कि परस्पर क्रिया
– गलत निदान से होने वाले मनोवैज्ञानिक परिणाम
– लक्षण के ऑनलाईन निदान में होने वाली गलतीयॉं

( इंडस हेल्थ प्लस की प्रतिबंधक आरोग्यसेवा विशेषज्ञ कांचन नायकवडी से बातचीत पर आधारित।)

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