‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के दबाव से बेदम चुनाव आयोग

जब से हमारे प्रधानमंत्री मोदी साहेब सारे चुनाव एक साथ कराने को लेकर गंभीरता दिखा रहे हैं तो चुनावी लाभार्थी मायूस होते दिख रहे हैं। हालांकि हमारे देश में चुनावी खर्च जिस तरह से बढ़ते जा रहे हैं उस हिसाब से सारे देश का चुनाव एक साथ कराना ठीक ही होगा लेकिन इतना तो साफ़ है कि चुनाव में मिलने वाले रोजगार की बलि चढ़ जायेगी।

अखिलेश अखिल

हम भारतीयों को भले ही पेट में अनाज नहीं हो लेकिन चुनावी राजनीति में आनंद खूब आता है। एक दूसरे को गरियाने का आनंद ,एक दूसरे से पैसा लेने का आनंद ,चुनाव -वोट के बहाने ही कुछ माल कमा लेने का आनंद ,कुछ जातीय खेल करने का आनंद ,कुछ धार्मिक अजेंडे को आगे बढ़ाने का आनंद ,रूठने -मनाने का आनंद , जान पहचान बनाने का आनंद और गाड़ी -घोड़ा लपकने का आनंद। इसके अलावे भी बहुत सारे आनंद के दौरान उठाते हैं। यह हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। बार बार का चुनाव हमें सिर्फ आनंदित ही नहीं करता ,हमें बहुत कुछ देता भी है। देश की एक बड़ी आवादी चुनाव के दौरान पेट पालती है और परिवार का पोषण भी करती है। ऐसे लोगों को आप भाड़े की टट्टू कह सकते हैं लेकिन उन लोगों के के लिए यह रोजगार का बड़ा साधन है। ग्रामीण इलाकों के लोग भीड़ में शामिल होने के लिए अपना रेट बना रखे हैं। पिछले चुनाव तक 300 रुपये का रेट था। खाना -पीना अलग से। चाय -नास्ता भी। शहरी इलाकों में यह रेट 500 से ज्यादा भी है। नास्ता ,खाना और कुछ गिफ्ट भी। कुछ यही तस्वीर पुरे देश की है। नेताओं को एक बड़ी राशि इस मद के लिए जुटानी होती है।
इधर जब से हमारे प्रधानमंत्री मोदी साहेब सारे चुनाव एक साथ कराने को लेकर गंभीरता दिखा रहे हैं तो चुनावी लाभार्थी मायूस होते दिख रहे हैं। हालांकि हमारे देश में चुनावी खर्च जिस तरह से बढ़ते जा रहे हैं उस हिसाब से सारे देश का चुनाव एक साथ कराना ठीक ही होगा लेकिन इतना तो साफ़ है कि चुनाव में मिलने वाले रोजगार की बलि चढ़ जायेगी। प्रधानमंत्री मोदी बहुत कुछ करना चाहते हैं। इसी चाहत में यह भी शामिल है कि सभी विधान सभाओं से लेकर लोक सभा का चुनाव एक साथ ही हो। इसके लिए सरकार और सरकारी तंत्र में खूब उठापटक जारी है। मंथन जारी है। लाभ हानि का गणित लगाया जा रहा है। इस सन्दर्भ में पीएम मोदी ने पार्टी के भीतर लगातार चर्चा तो कर ही रहे हैं नीति आयोग से भी बैठक कर रहे हैं और चुनाव आयोग से भी बात कर रहे हैं। यह बात और है कि हमारा चुनाव आयोग जब दो राज्यों का चुनाव भी एक साथ नहीं करा सकता तो फिर पुरे देश का चुनाव कैसे कराये। चुनाव आयोग पर बल पड़ा हुआ है। लोक सभा के 8 सीटों पर उप चुनाव भी आयोग एक साथ कराने में परेशान है। खैर सरकार और आयोग की कहानी अपनी जगह है।
जिस तरह से पीएम ने नीति आयोग के अधिकारियों और अर्थशास्त्रियों से चर्चा की है उससे साफ़ हो गया है कि मोदी सरकार के अजेंडे में वन नेशन वन इलेक्शन सबसे ऊपर है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री अगले आम चुनाव के साथ ही पूरे देश के चुनाव कराने की पहल कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने बैठक में मौजूद बौद्धिकों और अर्थशास्त्रियों से कहा कि उनको लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने के लिए देश में माहौल बनाना चाहिए। गौरतलब है कि नीति आयोग ने पहले ही इस बारे में विचार किया है। आयोग ने हालांकि अपनी रिपोर्ट में 2024 के आम चुनाव के साथ देश भर की विधानसभाओं के चुनाव कराने की राय दी है। पर ऐसे संकत मिल रहे हैं कि प्रधानमंत्री अगले ही चुनाव में इसे आजमाने पर विचार कर रहे हैं।
उन्होंने नीति आयोग की बैठक के अगले दिन अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की तो उसमें भी बताया जा रहा है कि उन्होंने एक साथ चुनाव कराने के मसले पर विचार किया। इसके बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, पार्टी के महासचिवों और कुछ वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों के साथ रात के भोजन पर मुलाकात की है । इस बैठक में वन नेशन, वन इलेक्शन के बारे में विचार किया गया। हालांकि भाजपा में भी इसे लेकर दो राय है। कई नेता अभी तुरंत एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में पार्टी के प्रदर्शन को फिर शायद नहीं दोहराया जा सके। बिहार को लेकर भी मन में आशंका है। कई और राज्यों में मिली जीत को फिर से दुहराने को लेकर परेशानी दिख रही है।
इधर सबसे बड़ी बात यह है किप्रधानमंत्री मोदी केंद्रीय चुनाव आयोग को भी इस सन्दर्भ में पत्र भेज चुके हैं। उन्होंने आयोग से एक साथ चुनाव कराने पर विचार करने को कहा है। हालांकि चुनाव को लेकर आयोग की पिछले कुछ समय से बड़ी किरकिरी हो रही है। चुनाव आयोग बेबस है। कुछ जबाब नहीं सूझ रहा है। कुछ जानकार नेताओं का यह भी कहना है कि जल्दी ही इस बारे में औपचारिक रूप से बात होगी और अगले बजट सत्र में या शीतकालीन सत्र में इसके लिए एक बिल लाया जा सकता है।
मोदी सरकार ने कई बदलाव किये हैं। जनता से जुडी तमाम समस्याएं भले ही जस की तस पड़ी हो लेकिन बहुत सी परिपाटी को यह सरकार धूमिल जरूर कर रही है। चुनाव एक साथ हो यह बेहतर कदम हो सकता है। बेहतर होता कि सब चुनाव एक साथ के बदले सबको काम ,सबको दाम का खेल पहले हो जाता। आनंद आता और सरकार की जयजयकार होती।

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