14 दिन में पांच अस्पतालों में लगे ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र

डॉ. सुनील कुमार

मार्च 2020 से देश कोविड महामारी के खिलाफ पूरी प्रशासनिक ताकत के साथ मिलकर मुकाबला कर रहा है। जब कोविड के मरीज घर पर इलाज के दौरान सही नहीं हो रहे थे, उनका ऑक्सीजन स्तर लगातार गिर रहा था। ऐसे मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पूरी करने के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया और ऑक्सीजन दिया गया। हालांकि कोविड की पहली लहर के दौरान भी देश में ऑक्सीजन की मांग में बढ़ोतरी देखी गई, लेकिन उस समय देश के भीतर उपलब्ध संसाधनों से अतिरिक्त ऑक्सीजन जुटा कर इसे अच्छी तरह प्रबंधित किया गया। इस तरह भारत ने कोविड की पहली लहर को काफी बेहतरीन तरीके से नियंत्रित किया।
दूसरी लहर ने हमारे स्वास्थ्य संसाधन, विशेष रूप से जीवनदायक ऑक्सीजन की उपलब्धता को चुनौती दी। एक बार फिर सरकार ने सभी संसाधनों का प्रयोग करते हुए बड़े पैमाने पर मेडिकल ऑक्सीजन का बंदोबस्त किया। ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए क्रायोजेनिक टैंकर प्रयोग किए गए। क्रायोजेनिक परिवहन टैंकर की सहायता से बड़े ऑक्सीजन उत्पादन प्लांट से अस्पतालों तक की दूरी तय की गई, लेकिन यह उपाय बेहद सीमित साबित हो रहे थे। जल्द ही यह महसूस किया गया कि टैंकर की सहायता से बड़ी दूरी तय कर अस्पतालों तक ऑक्सीजन पहुंचना अधिक दिनों तक चलने वाले ठोस उपाय नहीं है। ऑक्सीजन उत्पादन लिए अस्पतालों को आत्म निर्भर बनाना होगा।

पांच केंद्रीय अस्पतालों में फास्ट ट्रैक ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र लगाए गए, समर्पित टीम ने समय पर पूरा किया काम

23 अप्रैल 2021 को केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की आंतरिक बैठक में केन्द्र सरकार के पांच प्रमुख केन्द्रीय अस्पताल, एम्स एपेक्स ट्रामा सेंटर, सफदरजंग अस्पताल, डॉ. राममनोहर लोहिया अस्पताल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज व सम्बंधित अन्य अस्पताल, नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट एम्स झज्जर में मेडिकल ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्रों की फास्ट ट्रैक स्थापना करने के आदेश दिए गए। यह फैसला परिस्थिति को पूरी तरह बदलने (गेम चेंजर) वाला साबित हुआ।
डायरेक्टर जनरल स्वास्थ्य सेवाएं ( केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ) ने डीआरडीओ के वैज्ञानिक और तकनीकी अधिकारियों के साथ मिलकर पांच अस्पतालों का दौरा किया और 24 घंटे के भीतर अस्पताल के अधिकारियों के परामर्श से ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्रों की स्थापना के लिए के जगह का चयन किया गया। इन पांच स्थानों पर पांच ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए अगले ही दिन आदेश जारी कर दिया गया।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री द्वारा पूरे प्रोजेक्ट की नियमित तौर पर गहन निगरानी की गई। सफदरजंग और राम मनोहर लोहिया अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के निदेशक और एम्स एपेक्स ट्रामा सेंटर के नोडल अधिकारी और राष्ट्रीय कैंसर संस्थान की फैकल्टी और एम्स झज्जर की टीम ने हरियाणा के ऑक्सीजन प्लांट का व्यक्तिगत तौर पर निरीक्षण किया, जिसमें इलेक्ट्रिक, सिविल और ऑक्सीजन पाइप लाइन आदि की व्यवस्था का मुआयना किया। कम दिनों में युद्धस्तर पर काम कर संयंत्र लगाने की सभी तैयारियां पूरी कर ली गईं। डीजीएचएस (केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ) और डीआरडीओ से भानु प्रताप सिंह द्वारा साइट का नियमित रूप से मुआयना या दौरा किया गया। डीआरडीओ के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक व्यक्तिगत रूप से इस बात की निगरानी कर रहे थे कि कोयंबटूर के कारखाने में मेसर्स ट्राइडेंट न्यूमेटिक्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा गति और गुणवत्ता के अनुसार ऑक्सीजन उत्पादन करने वाले संयंत्र तैयार किए जा रहे हैं। अस्पतालों में साइट तैयार होने के साथ ही भारतीय वायुसेना ने सेमी लॉकडाउन की स्थिति में ऑक्सीजन पैदा करने वाले संयंत्रों को हवा में उठाने की महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान की। एक एक करके सभी चयनित अस्पतालों में ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र स्थापित किए गए, जिसमें सात मई को एम्स ट्रामा सेंटर, दस मई को राम मनोहर लोहिया अस्पताल, 16 मई को सफदरजंग, 17 मई को राष्ट्रीय कैंसर संस्थान झज्जर और 18 मई को लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन संयंत्र लगा दिए गए।
यह सभी संयंत्र लगातार काम कर रहे हैं, और प्रति मिनट 960 लीटर मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन कर रहे हैं। यह संयंत्र डीआरडीओ द्वारा विकसित और मेसर्स ट्राइडेंट न्यूमेटिक प्राइवेट लिमिटेड कोयंबटूर द्वारा निर्मित प्रेशर स्विंग अवशोषण (पीएसए) तकनीक की मजबूत प्रणाली पर आधारित हैं। यह सभी मौसम में अनुकूल रहने वाले और बहुत कम जगह घेरने वाले संयंत्र हैं। संयंत्रों को लगाने का काम 12 घंटे के बेहद कम समय में पूरा कर लिया गया। ऑक्सीजन संयंत्रों के उत्पादन और गुणवत्ता को लेकर अस्पताल पूरी तरह से संतुष्ट हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि यह सभी संयंत्र शोर रहित हैं और ध्वनि प्रदूषण नहीं बढ़ाते हैं। इनको ऑपरेट और अनुरक्षण करना बहुत आसान है। सभी संयंत्रों का पहला समय निर्धारित रखरखाव 4000 घंटे चलने के बाद आता है, इसलिए इसे बिना बंद किए छह महीने तक लगातार चलाया जा सकता है। संयंत्रों को चलने के कुछ घंटे बाद अस्पताल में ही उपलब्ध तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा निगरानी की आवश्यकता होती है। यह संयंत्र सामान्य बिजली पर संचालित किए जाते हैं प्रदूषण फैलाने वाले डीजल की जरूरत नहीं होती।
स्थापित ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र जियोलाइट बेड के माध्यम से उच्च दबाव पर हवा पारित करके ऑक्सीजन और नाइट्रोजन को अलग करने के लिए पीएसए तकनीक से वातावरण की वायु से ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं। संयंत्र से उत्पादित ऑक्सीजन की आपूर्ति कई माध्यमों से रोगियों के उपयोग के लिए अस्पताल की तक जाती है। जैसा कि हमारी जानकारी में है यह देश के पहले ऐसे पांच अस्पताल हैं जिनके पास इन- हाउस ऑक्सीजन उत्पादन की क्षमता है, जो इन अस्पतालों को ऑक्सीजन की आवश्यकता के मामले में जरूरत के आधार पर उत्पादन क्षमता के लिए आत्मनिर्भर बनाते हैं।
केन्द्रीय सरकार ने अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए चल रहे प्रयासों से पूरे देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में 1000 से अधिक ऐसे ऑक्सीजन पैदा करने वाले संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई है जो न केवल इस महामारी से निपटने में सहायक होंगे बल्कि भविष्य में ऐसी किसी भी स्वास्थ्य संबंधी चुनौती को स्वीकार करने में सहायक होंगे।

(डॉ. सुनील कुमार, महानिदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, भारत सरकार)

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