किसान आंदोलन, राजद्रोह और कोर्ट

कमलेश भारतीय 
किसान आंदोलन को चलते लगभग सात माह हो गये । पहले पहल सरकार चिंतित हुई थी और बातचीत के दौर भी चले । गुरुद्वारा बंगला साहिब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी माथा नवाने भी गये और मन ही मन उदास भी की कि यह आंदोलन समाप्त हो जाये लेकिन वार्ताओं के दौर पर दौर चले फिर भी बात वहीं की वहीं रही ।किसान अपनी मांगों पर बल्कि एक ही मांग पर कि तीनों कानून रद्द किये जायें, अटल रहे और सरकार मैं नहीं मानूं पर टिकी रही और आखिर वार्ताओं के दौरों पर पूर्ण विराम लग गया । हालांकि प्रधानमंत्री कहते रहे कि मैं किसानों से बस एक फोन काॅल की दूरी पर हूं और राकेश टिकैत का जवाब कि हमें तो प्रधानमंत्री जी का फोन नम्बर ही नहीं मालूम । इस तरह बात अटकी तो अटकी ही पड़ी है और हरियाणा में तो इसने और ही रूप ले लिया है । सत्ताधारी दल के नेताओं के कार्यक्रमों का विरोध ।  काले झंडे लेकर हर कार्यक्रम में पहुंच जाते हैं किसान । क्या मुख्यमंत्री तो क्या उपमुख्यमंत्री या कोई भी मंत्री या फिर डिप्टी स्पीकर या कोई भी विधायक । सबको काले झंडे दिखाये जाते हैं और अब कारों पर पथराव भी करने लगे हैं । पहले टोहाना के जजपा विधायक देवेंदर बबली इसके शिकार हुए और अब ताज़ा घटनाक्रम में डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा जब सिरसा की यूनिवर्सिटी से बाहर आ रहे थे तब उनकी गाड़ी पर हमला हुआ और वे बाल बाल बच गये । सिरसा के एस पी पर गाज गिरी और तबादला हो गया । किसानों पर केस दर्ज कर लिया गये जैसे पहले टोहाना, झज्झर उससे भी पहले हिसार में दराज किये गये थे । इसी तरह हिसार की यूनिवर्सिटी के बाहर भी काले झंडे दिखाये गये भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को ।
 इस बार राजद्रोह में पांच किसानों पर केस दर्ज कर लिया गया है और इसका विरोध करने पर एक युवक को पुलिस कर्मी को थप्पड़ मारने की फोटो वायरल हो गयी है । राकेश टिकैत ने फिर इसका विरोध किया है और कहा कि किसानों पर राजद्रोह के केस दर्ज कर इस आंदोलन को दबाने की कोशिश है । किसान अपनी मांगों के लिए लड़ रहे हैं न कि किसी दूसरी या बाहरी शक्ति से मिलकर कोई विद्रोह कर रहे हैं । सरकार इसे बंद करे नहीं तो आंदोलन के लिए तैयार रहे ।
दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट कह रहा है सरकार से कि जो कानून अंग्रेज ने महात्मा गांधी व लोकमान्य तिलक को चुप करवाने के लिए बनाये , क्या स्वतंत्र भारत में उसकी जरूरत है कोई ? कोर्ट ने राजद्रोह कानून के दुरूपयोग और इस पर किसी की जवाबदेही न होने पर चिंता जताई है ।
प्रधान न्यायधीश एनवी रमना ने केंद्र सरकार से पूछा है कि जिस राजद्रोह कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों द्वारा स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन को दबाने के लिए किया गया , क्या आज़ादी के पचहतर वर्ष बाद भी इसे जारी रखना जरूरी है ? तो हम अमृत महोत्सव किसलिए मना रहे हैं ?
अब सरकार , किसान नेताओं और जनता को सोचना है कि कौन सा रास्ता सही है ,, किस ओर चलना है और किधर जाना है ,,,,
हम तो इतना ही कहेंगे:
हम लाये हैं तूफान से कश्ती निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के

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