न्यूजीलैंड की संसद में ली संस्कृत में शपथ, हिमाचल प्रदेश के डॉ गौरव शर्मा ने रौशन किया नाम

देश में पश्चिमी कल्चर बढ़ने के साथ भारतीय संस्कृति पर प्रभाव को लेकर देश-विदेश में चर्चा चलती रहती है। आज देश में अंग्रेजी भाषा की बढ़ती लोकप्रियता को लेकर हिंदी, संस्कृत इत्यादि भाषा के महत्व पर चिंता जताई जा रही है। किंतु न्यूजीलैंड के सबसे युवा व नवनिर्वाचित सांसद डॉ. गौरव शर्मा ने बुधवार को देश की संसद में संस्कृत में शपथ ली है। बता दें कि 33 वर्षीय डॉ. गौरव हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर के रहने वाले हैं और हाल ही में न्यूजीलैंड में हैमिल्टन वेस्ट के लिए उन्हें लेबर पार्टी से संसद सदस्य के रूप में चुना गया है। 2017 में निर्विरोध चुनाव लड़ चुके डॉ. शर्मा ने इस बार नेशनल पार्टी के टिम मैकिंडो को हराया है।

समोआ और न्यूजीलैंड में भारत के उच्चायुक्त मुक्तेश परदेशी ने ट्विटर पर कहा कि डॉ. गौरव शर्मा ने सबसे पहले न्यूजीलैंड की स्वदेशी माओरी भाषा में शपथ ली, उसके बाद भारत की शास्त्रीय भाषा- संस्कृत, में शपथ लेकर उन्होंने भारत और न्यूजीलैंड दोनों की सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति गहरा सम्मान दिखाया। उन्होंने ऑकलैंड से एमबीबीएस किया और वाशिंगटन से एमबीए किया है और वे हैमिल्टन के नवाटन में जनरल प्रैक्टिशनर के रूप में कार्यरत हैं। वे पूर्व में न्यूजीलैंड, स्पेन, अमेरिका, नेपाल, वियतनाम, मंगोलिया, स्विट्जरलैंड और भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य, नीति, चिकित्सा और परामर्श में शामिल रह चुके हैं। बता दें कि इसी साल प्रियंका राधाकृष्णन न्यूजीलैंड की पहली भरतीय मूल की मंत्री बनीं.श। प्रधानमंत्री जसिंडा आर्डर्न ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया।

न्यूजीलैंड में भारत के उच्चायुक्त मुक्तेश परदेसी ने भी सोशल मीडिया पर कहा कि संस्कृत में शपथ लेकर गौरव ने भारतीय भाषा और परंपराओं के प्रति सम्मान जाहिर किया है। सोशल मीडिया पर जब एक ट्विटर यूजर ने डॉ. गौरव शर्मा से पूछा कि उन्होंने हिंदी में शपथ क्यों नहीं ली तो उन्होंने कहा कि सभी को खुश करना कठिन है इसलिए मैंने संस्कृत में शपथ लेने का फैसला किया। सच कहूं तो मैंने सोचा था कि हिंदी में शपथ लूं, लेकिन तब मेरी पहली भाषा (पहाड़ी) या पंजाबी को लेकर सवाल उठा। ऐसे में सभी को खुश रखना मुश्किल था जबकि संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की जननी है इसलिए मैंने शपथ के लिए संस्कृत को चुना।

डॉ. गौरव शर्मा ने बताया कि वे 1996 में न्यूजीलैंड चले गए थे। गौरव के पिता हिमाचल प्रदेश बिजली विभाग में इंजीनियर थे। उन्होंने वीआरएस लिया था। इसके बाद वे परिवार के साथ न्यूजीलैंड चले गए। उनके पिता को छह साल तक न्यूजीलैंड में नौकरी नहीं मिली। परिवार ने बड़ी मुश्किल से वक्त गुजारा। उन्होंने बताया कि मैं समाजसेवा के लिए राजनीति में हूं क्योंकि मेरा परिवार बहुत ही कष्टों से गुजरा है। उन्होंने कहा कि सामाजिक सुरक्षा के रूप में भी मुझे बहुत ज्यादा सरकारी मदद नहीं मिली।

 

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