उपचुनाव के डगर पर केजरीवाल की दुश्वारियां

नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी(आप) प्रमुख अरविंद केजरीवाल को अपनी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने और इनके पद पर रहते हुए भत्ते उठाने और अधिकारों का इस्तेमाल करने की उदारता बहुत महंगी पड़ी है. बीते दो साल से ज्यादा समय से आप के 21 विधायकों के ‘लाभ के पद’ का विवाद केजरीवाल और आप का लगातार पीछा कर रहा है. इन 21 विधायकों में से जरनैल सिंह इस्तीफा दे चुके हैं, जिसके बाद उन्होंने दोबारा चुनाव लड़ा और हार गए. सितंबर 2016 में केजरीवाल को तब बड़ा झटका लगा था, जब दिल्ली हाईकोर्ट ने सभी संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद्द कर दी थी. अब चुनाव आयोग ने लाभ के पद पर रहने के कारण 20 आप विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने की राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से सिफारिश करके आप को करारा झटका दिया है. मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ए के ज्योति 22 जनवरी को रिटायर होने वाले हैं. परंपरा के अनुसार राष्ट्रपति इस सिफारिश को मानने और इन विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मंजूरी देने के लिए बाध्य हैं.
आप के पास अदालत से राहत पाने के उपाय सीमित हैं. सबसे पहली बात तो यह कि दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही मामले पर सुनवाई करते हुए नियुक्तियों को निरस्त कर चुका है. दूसरी बात यह है कि मामले पर चुनाव आयोग ने विस्तार से विचार किया है, जिसके बारे में संविधान में ऐसे मामलों पर विचार करते समय करने को कहा गया है. संविधान के अनुच्छेद 120 (1) में ‘लाभ का पद’ की कसौटी बताई गई है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जया बच्चन बनाम केंद्र सरकार के मुकदमे में लाभ का पद को लेकर कही यह बात महत्वपूर्ण है कि, ‘लाभ के पद का अर्थ है ऐसा पद जो लाभ या आर्थिक प्राप्ति पैदा कर सकता है. कोई शख्स लाभ के पद पर है या नहीं यह तय करने के लिए, जो बात जरूरी है वह यह है कि पद लाभ या आर्थिक प्राप्ति देने में सक्षम है या नहीं, ना कि यह बात कि शख्स ने वास्तव में आर्थिक लाभ हासिल किया है या नहीं. अगर ‘आर्थिक लाभ’ पद के कारण ‘प्राप्त करने योग्य’ है तो यह लाभ का पद माना जाता है. इससे कोई मतलब नहीं कि आर्थिक लाभ हासिल किया गया या नहीं.’
चुनाव आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रपति की मुहर और दस्तखत के बाद 20 आप विधायक अयोग्य हो जाएंगे. इसका अर्थ होगा आप की सबसे बुरी आशंका- 20 सीटों पर मध्यावधि लघु चुनाव का सच हो जाना. फिलहाल विधानसभा में केजरीवाल के जबरदस्त बहुमत के चलते, 20 विधायकों की बर्खास्तगी के बाद भी उनकी सरकार को अल्पमत का कोई खतरा नहीं है.

केजरीवाल की असल समस्या सरकार बचाना नहीं है. उनकी समस्या कहीं और है. चुनाव आयोग की कार्रवाई का अर्थ है कि विधानसभा की 70 में से 20 सीटों पर चुनाव का सामना. इन विधानसभा सीटों पर चुनाव का अर्थ है केजरीवाल सरकार का जनमत संग्रह. अच्छी से अच्छी स्थिति में भी आप फरवरी 2015 (जब विधानसभा चुनाव हुए थे) के प्रदर्शन को दोहरा पाने, और सभी 20 प्रत्याशियों के विधानसभा में पुनर्निवाचित करा लेने की उम्मीद नहीं कर सकती.

केजरीवाल सरकार की नॉन-परफॉर्मेंस, मुख्यमंत्री के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विषवमन, दिल्ली से बाहर विस्तार की जल्दबाजी और शहर में सरकार चलाने से तकरीबन किनारा कर लेने से देश में मोदी को अकेले चुनौती देने की ताकत बीते तीन वर्षों में चूक गई है. दिल्ली में स्थानीय निकाय के चुनाव, राजौरी गार्डन उपचुनाव और पंजाब व गोवा में विधानसभा चुनाव केजरीवाल की बेलगाम महत्वाकांक्षा की जनता में अस्वीकार्यता का आइना हैं, चाहे वो राष्ट्रीय स्तर पर हो या राज्य स्तर पर. केजरीवाल ने चुनाव आयोग की कार्रवाई पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. उन्होंने बस किसी कृष्ण प्रताप सिंह के एक ट्वीट को रीट्वीट कर दिया है, जिसमें कहा गया है:
20 आप विधायक जिन पर बर्खास्तगी की तलवार लटकी है, वह इस बात से खुद को सांत्वना दे सकते हैं कि वह भी सोनिया गांधी और जया बच्चन (ये दोनों क्रमशः लोकसभा और राज्यसभा की सदस्य थीं) की कतार में शामिल हो गए हैं. इनका उदाहरण हमेशा राजनीतिशास्त्र के छात्रों और राजनेताओं के सामने पेश किया जाएगा. हालांकि इनके लिए दोहरी बुरी खबर है. सबसे पहले तो यह कि मुमकिन है कि केजरीवाल इनमें से सभी को दोबारा चुनाव ना लड़ाएं, दूसरा अगर ऐसा होता भी है तो इनमें से सभी दोबारा चुनाव जीत जाने की उम्मीद नहीं कर सकते.

‘लाभ के पद’ मामले में केजरीवाल को ममता बनर्जी से मिला साथ

केजरीवाल को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी के रूप में एक दोस्त और साथी मिल गया है, जिनके ट्वीट को उन्होंने रीट्वीट किया है: ‘एक संवैधानिक संस्था को राजनीतिक बदले के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. आप के 20 विधायकों को माननीय चुनाव आयोग ने सुनवाई का एक मौका भी नहीं दिया. यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है. इस घड़ी हम @arvindkejriwal और उनकी टीम के साथ मजबूती से खड़े हैं.’ सवाल है कि केजरीवाल उस विषय पर जो उनके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, अपने पक्ष में आए ट्वीट को रीट्वीट करने के बजाय खुद क्यों नहीं कुछ बोल रहे हैं.
एक विषय जो पूरी तरह वैधानिकता और संवैधानिकता के दायरे में आता है, उस पर उनकी पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज द्वारा दी गई प्रतिक्रिया रोचक है. वह कहते हैं, ‘जाइए और विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों में जाकर पूछिए, क्या इन लोगों ने लाभ के पद से फायदा लिया है. इस विषय पर फैसला लिए जाने से पहले विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों में लोगों से उनकी राय पूछी जानी चाहिए थी.’
अंततः उनकी नुमाइंदगी करने वाले विधायकों के बारे में लोगों की राय, निकट भविष्य में सामने आ ही जाएगी. अरविंद केजरीवाल के सामने एक बड़ी चुनौती है. अगर वह अपने ज्यादातर उम्मीदवारों को जिता ले जाते हैं तो वह अपना मान-सम्मान वापस पाने में कामयाब रहेंगे. लेकिन अगर वह और उनकी पार्टी अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है तो उनकी सरकार अगले दो साल लंगड़ाती हुई ही चलेगी.

 

(साभार: न्यूज 18)

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