सीख ताको दीजिए, जाको सीख सुहाय…

जंगल में तालाब के किनारे एक बबूल का पेड़ था। उसमें लगे पीले फूल अपनी खूशबू चारों और फैला रहे थे। उस दिन आसमान में चारों तरफ काले बादल छाए थे। ठंडी-ठंडी हवा भी चल रही थी। मौसम बड़ा सुहावना था। जंगल में बारिश होने की उम्मीद थी और सभी जानवर अपने घरों को लौट आए थे।
बबूल के पेड़ की एक पतली डाल तालाब में लटक रही थी। इसी डाल के अंतिम सिरे पर बया पक्षी ने अपना घोसला बनाया था। अपने घोंसले में बया और बयी दोनों मस्ती में झूलते हुए मौसम का आनंद ले रहे थे। बबूल से सटा एक सहजन का पेड़ था, जो हवा के झोंकों से झूल रहा था। काले बादल घुमड़-घुमड़ कर जानवरों को डरा रहे थे। देखते-देखते आसमान में बिजली चमकने लगी।

बादलों की गड़गड़ाहट से आसमान थर्राने लगा। इसके साथ ही मोर-मोरनियों नृत्य करने लगीं। उनके पीकां-पीकां की आवाज से सारा जंगल गूंजने लगा। टिटहरियां भी आकाश में आवाज करती हुई उड़ने लगीं। आसमान से बड़ी-बड़ी बूंदें गिरने लगीं और थोड़ी देर में मूसलाधार बारिश शुरू हो गई।
इसी बीच एक बंदर सहजन के पेड़ पर आकर बैठ गया। उसने पेड़ के पत्तों से छिपकर बारिश से बचने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह भींगने लगा। वह पेड़ के पत्तों के बीच जाकर बैठ गया और सोचने लगा कि बारिश जल्दी बंद हो और वह पेड़ों पर कुलांचे भर सके, लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत। थोड़ी देर में आसमान से ओले गिरने शुरू हो गए। हवा और तेज चलने लगी। अचानक सर्दी बढ़ जाने से वह ठंड से कांपने लगा। वह जोर-जोर से किकियाने लगा।
वातावरण अजीब-सा गंभीर हो गया। बंदर की इस हालत को देखकर बया पक्षी से रहा नहीं गया। उसने बंदर से कहा: पाकर मानुस जैसी काया, ढूंढत घूमो छाया।
चार महीने वर्षा आवै, घर न एक बनाया।

बंदर ने बया पर तिरछी नजर डाली। बया बंदर की घुड़की से बिना डरे उसे नसीहत देती रही। बया सोचता था कि बंदर उसका क्या बिगाड़ सकता है। घोंसला पेड़ की इतनी पतली टहनी पर है कि बंदर वहां तक पहुंच ही नहीं सकता है। बया ने बंदर को फिर समझाया कि हम तो छोटे जीव हैं, फिर भी घोंसला बनाकर रहते हैं। तुम तो मनुष्य के पूर्वज हो। तुम्हारे वंशज जब घर बनाकर रहते हैं, तो तुम्हें भी कम-से-कम बारिश के मौसम से बचने के लिए कुछ-न-कुछ बनाकर रहना चाहिए। कहीं छप्पर ही डाल लेते। बया की इतनी बात सुनते ही बंदर बुरी तरह बिगड़ गया। उसने आव देखा न ताव, झलांग मारकर बबूल के पेड़ पर चढ़ गया।
वह बबूल के कांटों से बचते-बचाते उस पतली टहनी के पास पहुंच गया, जहां बया का घोसला था। वह जोर-जोर से पेड़ की टहनी को हिलाने लगा। घोंसला जोर-जोर से हिलने लगा। इससे घबराकर बया और बयी दोनों उड़कर सहजन के पेड़ पर बैठ गए। बंदर ने घोसला सहित वह टहनी तोड़कर ऊपर खींच ली। घोंसला हाथ में आते ही बंदर उसे नोचने लगा। इसके बाद टहनी समेत घोंसले को नीचे फेंक दिया।
नीचे तालाब में बारिश का पानी तेजी से बह रहा था। घोंसला और टहनी उसी में दूर तक बहते चले गए। नर बया और मादा बयी दोनों बड़े दुखी हो गए। वे आसमान से बरस रहे पानी में भीगते रहे। उन्हें इस बात का अफसोस हो रहा था कि बंदर को नेक सलाह क्यों दी?
तालाब के समीप एक हरा-भरा और लहलहाता टीला था, जिसपर एक छोटी-सी कुटिया थी। कुटिया के बाहर एक संत स्वभाव का व्यक्ति बैठकर माला फेर रहा था। वह बड़े ध्यान से बंदर और बया का नाटक देख रहा था। बया और बयी को बारिश में भीगता देखकर उसे उन पर बड़ा तरस आया। इस दुख में अचानक उसके मुंह से अचानक निकल पड़ाः

सीख ताको दीजिए, जाको सीख सुहाय।
सीख न दीजे बांदरे, बया का घर भी जाय।।

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