नई दिल्ली / टीम डिजिटल। यूपी में लोकसभा चुनाव में तो प्रियंका गांधी कोई करिश्मा न कर पाई लेकिन लगता है उसने अपने भाई राहुल गांधी की तरह हार नहीं मानी । उसमें जज्बा है संघर्ष का । इसीलिए तो वह सोनभद्र पहुंची जहां भूमि विवाद के चलते दस आदिवासियों को गोलियों से भून दिया गया । यूपी पुलिस ने प्रिय॔का को सोनभद्र तक पहुंचने से पहले हिरासत में ले लिया और जिस रेस्ट हाउस में रखा गया वहां लाइट भी नहीं थी यानी टार्चर की थर्ड डिग्री । प्रियंका ने जमानती बांड भरने से भी इंकार कर दिया । कुछ याद आता है ? इंदिरा गांधी को चौ चरण सिंह ने भूल से ऐसे ही टार्चर करवाय था और इंदिरा गांधी मातर अढाई साल में सत्ता में लौट आई थीं । वैसी स्थतियां केंद्र में नहीं और न ही यूपी में लेकिन कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं । कहीं प्रियंका से किया गया ऐसा व्यवहार कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम न कर जाए ? राहुल ने जहां हिम्मत छोड दी , वहीं प्रियंका ने रिले रेस की तरह दौडना शुरू किया है । यह सुखद है पस्त पडी कांग्रेस के लिए । कोई तो खेवनहार मिले । फिर यह तो सभी कह रहे थे कि प्रियंका को राजनीति में सक्रिय तौर पर आने में थोडी देर हो गयी । अब तो कोई देर नहीं । विधानसभा चुनाव में प्रियंका को आगे आना होगा । प्रियंका में गुण है सामने वालों से निकटता बनाने का । सरल बात से दिल जीतने का और वह कभी लक्ष्य से भटकती नहीं । यही खूबी उसे आगे ले जाएगी ।
राहुल ने कांग्रेहमस को बीच मंझधार क्यों छोड दिया ? क्या दिग्गज कांग्रेसियों से निबट पाने में असफल रहने पर ? क्या ये दिग्गज प्रियंका को परेशान नहीं करेंगे ? राहुल ने साफ कहा था कि चिदम्बरम् , अशोक गहलोत और कमलनाथ जैसे नेता अपने ही बेटों की चिंता मे रहे और उन्हें पूरे प्रदेश के प्रत्याशियों की कोई चिंता नहीं थी । क्या अब विधानसभा में भी परिवारवाद का शिकार होगी कांग्रेस ? फिलहाल एक सोनभद्र से ज्यादा उम्मीदैमें लगाना गलत होगा । फिर भी प्रियंका की पहल बढिया है ।