नई दिल्ली / टीम डिजिटल। बडा दुखद है लिखना प्रो बी के कुठियाला पर । हिसार में सन् 1997 में दैनिक ट्रिब्यून में जिला रिपोर्टर बन कर आया तो पहली मुलाकात इनसे ही हुई और पहला फीचर गुजवि के पत्रकारिता विभाग पर ही लिखा । संपादक विजय सहगल और बी के कुठियाला दोनों हिमाचल प्रदेश के थे और अक्सर उन्हें विभाग में आमंत्रित किया करते । इस नाते नजदीकिया भी बढीं ।
मैं थोडा वामपंथी विचारों का होने के चलते कुठियाला मुझे पत्रकार की बजाय सोशल एक्टिविस्ट पुकारते । पर दोस्ती अलग अलग विचारधारा के भी बनी रही । मेरी बेटी रश्मि भी उनकी शिष्या रही । फिर वे कुरूक्षेत्र विश्चवविद्यालय चले गये । मीडिया विभाग के मुखिया बन कर । कुछ लोगों को नियुक्तियां दीं । तब भी चर्चा में आए । पर चल गया ।
सब ठीक ठाक से । आशुतोष मिश्रा के पीछे ऐसेहाथ धोकर पडे कि कहीं काम करने लायक नहीं छोडा । दोनों एक दूसरे पर चिट्ठियों और सोशल मीडिया में वार प्रहार करते । खैर । प्रो कुठियाला भोपाल चले गये । माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति बन कर । यह शायद उनका सपना भी था । सच हुआ ।
टर्म पूरी और हरियाणा सरकार ने उन्हें हरियाणा हायर एजुकेशन का चेयरमैन बनाया । इसी बीच मध्य प्रदेश में सरकार बदल गयी और जांच शुरू हुई पत्रकारिता विश्वविद्यालय में उनके कार्यकाल में हुई अनियमितताओं की और इससे पहले कि कानून के हाथ उन तक पहुंचें वे अंडरग्राउंड हो गये । चार माह तक । वही पी चिदम्बरम वाली हालत । जब संपत्ति कुर्क जैसा नोटिस मिला तब । है न समानता ? बाकी तो कोई समानता नहीं । अब प्रो कुठियाला कह रहे हैं कि मुझे लगा कि मेरी जमानत नहीं होने दी जायेगी , इसलिए लापता रहा ।