पर्यावरण का जरूरी है संरक्षण

कुमकुम झा

5 जून संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिवस पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए मनाया जाता है ।5 जून 1973 से विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाने लगा ।आज पर्यावरण एक जरूरी सवाल ही नहीं बल्कि ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। ग्रामीण समाज को छोड़ दें तो महानगरीय जीवन में इसके प्रति कोई खास उत्सुकता देखने को नहीं मिलता और पर्यावरण सुरक्षा महज एक खानापूर्ति भर रह गया है। मानवता अपने पर्यावरण के लिए कितनी जागरूक है वह आज के समय का ज्वलंत प्रश्न है। पर्यावरण का सीधा संबंध प्रकृति से है परंतु आज की आवश्यकता यह है कि हम बचपन से ही पर्यावरण के प्रति बच्चों में युवाओं में एक जागरूकता फैलाएं क्योंकि पर्यावरण के खतरे ने मनुष्य को गंभीर परेशानियों में डाल दिया है ।पिछले 3 महीनों में हमारी दुनिया एकदम बदल गई है हजारों लोगों की जान चली गई है। लाखों लोग कोविड-19 से संक्रमित हैं ।कोरोना का कहर बढ़ता ही जा रहा है बहुत सारे सुरक्षा के उपाय किए गए हैं ताकि कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोका जा सके , लगातार होने वाली मौतों के सिलसिले को थामा जा सके। वैश्विक महामारी कोरोनावायरस से जहां दुनिया भर में विकट चुनौतियां पैदा की हैं वहीं दूसरी ओर प्रकृति के अद्भुत और जीवंत नजारे भी देखने को मिल रहे हैं। इतिहास गवाह है कि अतीत में जब जब इस प्रकार की महामारी आई है तब तब पर्यावरण ने सकारात्मक करवट ली है सुनने में आता है कि यमुना भी साफ हो गई ।गंगा भी निर्मल हो गई आकाश भी नीला दिख रहा है। प्रकृति में आए सार्थक बदलाव ने आबादी को बड़ा संदेश दिया है। आकाश से लेकर नदियों तक में बनी स्वच्छता और विभिन्न स्थानों पर दूर पर्वत श्रृंखलाओं के साफ नजर आने का इस समय सबसे बड़ा परिवर्तन मानते हैं। जहरीली गैस व अन्य रसायनिक तत्वों का उत्सर्जन घटने से एयर क्वालिटी इंडेक्स में इस बीच आए सुधार को आने वाले कल के लिए बेहतर संकेत माना जा सकता है। कहा जा सकता है कि कोविड 19 दुनिया को एक नजरिए से देखने और जीने का अवसर भी प्रदान किया है। पर्यावरण के लिए प्रकृति और वन्य जीवन का सम्मान करना बेहद जरूरी है। प्रकृति का यह रूप भले ही क्षणिक राहत वाला हो परंतु कोविड-19 संक्रमण का खतरा जब खत्म होगा तब क्या पर्यावरण की यही स्थिति बरकरार रह पाएगी ?नहीं ……. पर्यावरणीय समस्या का यह सुधार अल्पकालिक है ।यह स्थाई समाधान नहीं हो सकता है।

आज मानव विकास की अंधी दौड़ में यह भी भूल गया है कि प्रकृति के इस अनमोल उपहार को कितना नुकसान हुआ है हम उसे नष्ट करते जा रहे हैं यह मानव की सबसे बड़ी भूल साबित हो सकती है इस अंधी दौड़ में कहीं ऐसा ना हो कि यह दुनिया हमारे रहने के लिए बचे ही ना। पर्यावरण के प्रति सोच का आरंभ कुछ प्रमुख घटनाओं के घटित होने के कारण हुई है । जब तक लोगों में पर्यावरण के प्रति एक स्वभाविक लगाव पैदा नहीं होगा तब तक पर्यावरण संरक्षण एक दूर का सपना ही बना रहेगा मनुष्य द्वारा की जाने वाली समस्त क्रियाएं पर्यावरण को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।

5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष

प्रतिवर्ष जनसंख्या में तीव्र गति से हो रही वृद्धि की वजह से पूरा प्रकृति चक्र ही चरमरा रहा है ।प्रकृति और पर्यावरण को पुनः संतुलित करने तथा भावी पीढ़ियों को विरासत में सुंदर और व्यवस्थित समाज प्रदान करने के लिए जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना बहुत ही आवश्यक है ।हम सभी जानते हैं कि प्रकृति में संसाधनों के भंडार सीमित हैं जिसका उचित और विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए ।यह बचपन से ही दिमाग में बैठाना होगा कि हमारे संसाधन सीमित हैं और हमें इसका विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए। पेड़ और वनस्पति ही कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन प्राणवायु में बदल सकते हैं इन बिंदुओं की जानकारी भी बच्चों के साथ-साथ आम लोगों तक भी पहुंचने चाहिए ।आज के युग में वैज्ञानिक उपलब्धियों तथा तकनीकी क्रांति के फलस्वरूप सुख-सुविधाओं के उपकरणों ने चारों तरफ अनेक प्रकार का प्रदूषण फैलाया है। उन्हें नियंत्रित व कम करने तथा बचाव के उपाय हेतु कार्यक्रम चलने चाहिए।
जल पर्यावरण का जीवनदायी तत्व है लोगों ने अपने ही क्रियाओं द्वारा जल स्रोतों को प्रदूषित किया है यदि लोगों को जल प्रदूषण के कारणों दुष्प्रभाव एवं रोकथाम की विभिन्न विषयों के बारे में जानकारी दी जाए तो लोग स्वतः जागरूक होंगे। लोगों में प्राकृतिक संपदा की सुरक्षा व संरक्षण के प्रति सामुहिक जागरूकता जगाना होगा ।पर्यावरण से संबंधित सामाजिक मुद्दे, मानव का पर्यावरण से संबंध , पर्यावरण को सुरक्षित रखना इन चीजों को साहित्य के माध्यम से नाटकों के माध्यम से तथा अन्य माध्यम से लोगों के बीच लाना होगा।पर्यावरण संरक्षण के लिए जिन्होने भी काम किया है उन्हे हम याद करें ।भारत की आधी आबादी नारी शक्ति ने कैसे अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है वह भी जानें । कहते हैं कि 1730 में जोधपुर के महाराजा को महल बनाने के लिए लकड़ी की जरूरत पड़ी तो राजा के आदमियों ने राजस्थान के खिजड़ी गांव में पेड़ो को काटने पहुंचे तब उस गांव की अमृता देवी के नेतृत्व में 84 गांव के लोगों ने पेड़ों को काटने का विरोध किया अमृता देवी पेड़ से चिपक गई और कहा की पेड़ काटने से पहले उसे काटना होगा ।यहां से मूल रूप से चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई अमृता देवी ने तो अपने प्राणों की आहुति दे दी लेकिन इस आंदोलन ने विकराल रूप ले लिया और 363 लोग विरोध के दौरान मारे गए तब जाकर राजा ने पेड़ों को काटने से मना कर दिया ।तब से लेकर आज तक बहुत सारी नारियों ने पर्यावरण को लेकर जागरूकता की अलख जगाई है। आज आवश्यकता है कि जन जन में पर्यावरण के प्रति संवेदना जागृत हो प्रकृति से सहज जुड़ाव हो तभी पर्यावरण को दूषित करने वालों के प्रति हम सचेत होंगे। भावी पीढ़ी को विरासत में स्वस्थ और समृद्ध प्रकृति दे सकेंगे। सभी को अपनी दिनचर्या खानपान स्वभाव आदि में सकारात्मक बदलाव करते हुए आगे बढ़ना जरूरी है। आम जनमानस विशेषकर बच्चे और युवा पीढ़ी को आने वाले सुखद भविष्य के लिए पर्यावरण को स्वच्छ रखने और पर्यावरण से संबंधित तथ्यों पर संवाद करने के लिए पहल करनी होगी।

(लेखिका शिक्षिका और सामाजिक सेवा से जुडी हैं।)

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