परंपरावदी सोच छोड़ें, मासिक धर्म पर खुलकर बात करें

बांका। आधुनिकता के तमाम दावों के बावजूद आज भी हमारे समाज में लोग मासिक धर्म के बारे में खुलकर बोलने से परहेज करते हैं। इसका परिणाम यह है कि महिलाओं और किशोरियों को माहवारी के दौरान तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसी चुनौतियों से पार पाने के लिए हर वर्ष 28 मई को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य मासिक धर्म के प्रति समाज में फैली गलत धारणाओं को दूर करना और सही जानकारी देना है। 28 मई को ही इसे इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि मई साल का पांचवां महीना होता है। महिलाओं में 28 दिनों के बाद होने वाले पांच दिनों के मासिक चक्र का यह एक संकेत होता है।

शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉ सुनील कुमार चौधरी कहते हैं कि समाज के लोगों को इन चीजों से ऊपर उठना होगा। खासकर महिलाओं और किशोरियों को परंपरावादी सोच को पीछे छोड़कर इस पर खुलकर बात करनी होगी। आज भी हमारे समाज की बहुत सारी लड़कियां या महिलाएं पैड का इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं। कपड़े या अन्य चीजों का इस्तेमाल करती हैं, जो कि नुकसानदायक साबित होता है। ऐसा करने से कई तरह की बीमारियों का खतरा रहता है। मासिक धर्म के समय साफ कपड़े का इस्तेमाल बहुत ही आवश्यक होता है। इन्ही सब कमियों को दूर करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। और इसके लिए इस दिन जिले के अस्पतालों में कार्यक्रम किए जाते हैं और जागरूकता रैलियां निकाली जाती हैं, ताकि लोग इसके प्रति जागरूक हों। पुरानी परंपरावादी सोच को त्याग कर आधुनिक और स्वस्थ सोच की ओर आगे बढ़ें।

मासिक धर्म स्वच्छता दिवस पर विशेष

झिझक को तोड़ने की जरूरतः

माहवारी 9 से 13 साल की लड़कियों के शरीर में होने वाली एक सामान्य प्रक्रिया है। आज भी बहुत सी किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल नहीं जा पाती हैं। महिलाओं को आज भी इस मुद्दे पर बात करने में झिझक होती है। आधे से ज्यादा लोगों को लगता है कि मासिक धर्म अपराध है। अभी भी हमारे समाज में लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान परिवार से अलग-थलग कर दिया जाता है। मंदिर जाने या पूजा करने से रोक दिया जाता है। परिवार के किसी भी पुरुष सदस्य से इस विषय में बातचीत नहीं करने की हिदायत दी जाती है। इससे ऊपर उठने की जरूरत है।

मासिक धर्म को लेकर जागरूकता जरूरीः

डॉ. चौधरी कहते हैं कि मासिक धर्म के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़नी चाहिए। स्कूलों में इस संबंध में पढ़ाई होनी चाहिए। और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि लोगों को इस बारे में खुलकर बात करनी चाहिए। हमारे समाज के पुरुषों को भी मानसिकता बदलनी होगी। माहवारी के समय किशोरियों या फिर महिलाओं से दूरी बनाकर रहने की प्रवृत्ति को छोड़ना होगा। तभी वह इस पर बात करने के लिए आएंगी। इस विषय पर लोगों को शिक्षित होने की जरूरत है। जितना लोग शिक्षित होंगे, उनमें उतनी ही जागरूकता बढ़ेगी और परंपरागत सोच को वह पीछे छोड़ेंगे।

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