नई दिल्ली। हम सभी रोजाना बहुत कुछ देखते, सुनते व महसूस करते हैं। लेकिन कुछ ही उसे दिमाग में कैद कर उसका मंथन करते हैं। ऐसे वैचारिक भूख वाले लोग कम ही होते हैं। ऐसे लोग ही साहित्य प्रेमी होते हैं, जिन्हें लिखना, पढ़ना बहुत पसंद होता है। इस अटूट साहित्य प्रेम में राजनीतिक उठापटक पर पैनी नज़र और पत्रकारिकता का जुझारू जज़्बा हो तो रक्तांचल- बंगाल की रक्तचरित्र राजनीति जैसी अद्वितीय, एतिहासिक और सच का आईना दिखाने वाली पुस्तक को सच की मुखर आवाज़ वाला पत्रकार ही लिख सकता है। इस कृति को लिखा है पत्रकार रासबिहारी ने।
रक्तांचल- बंगाल की रक्तचरित्र राजनीति
तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के 2011 में मुख्यमंत्री बनने के बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा बंद होने की संभावना जताई गई थी। ममता बनर्जी के राज में हर चुनाव में विरोधी दलों की राजनीतिक हिंसा की आशंका सच साबित हुईं हैं। पुस्तक में 2014 के लोकसभा और 2016 के विधानसभा चुनाव के साथ उपचुनावों में हिंसा व धांधली की घटनाओं का विस्तार से उल्लेख किया गया है। 2011 से 2018 तक राजनीतिक कारणों से हत्या और संघर्षों की विस्तृत जानकारी दी गई है। पुस्तक बताती है कि तृणमूल कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता कटमनी, सिंडीकेट को लेकर संघर्ष, ठेके कब्जाने के लिए खूनखराबा, रंगदारी वसूलने और अवैध धंधों पर कब्जा करने के लिए किस तरह एक-दूसरे को काटते रहे और बमों से उड़ाते रहे।
राज्यपालों से टकराव पर सटीक विश्लेषण
वर्चस्व बनाए रखने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने आंतक फैलाने के लिए माकपा, कांग्रेस और फिर भाजपा के कार्यकर्ताओं का किस तरह कत्ल किया। विरोधियों को सबक सिखाने के लिए महिलाओं के साथ बलात्कार, बच्चों की पिटाई और घरों को आग लगाने की घटनाओं के उदाहरण के साथ बंगाल की रक्तचरित्र राजनीति का पुस्तक में पूरी बेबाकी और निष्पक्षता से खुलासा किया गया है। राजनीतिक हिंसा पर मुख्यमंत्री का राज्यपालों से टकराव पर सटीक विश्लेषण के साथ ममता बनर्जी के जीवन और राजनीति पर गहराई से आकलन किया गया है।
रक्तरंजित बंगाल- लोकसभा चुनाव 2019
पुस्तक में 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान से पहले, मतदान के दौरान और मतदान के बाद राजनीतिक हिंसा का विस्तार से वर्णन किया गया है। 2019 में राजनीतिक हिंसा में मारे गए लोगों और घायलों के उदाहरण रक्तरंजित बंगाल के प्रमाण दे रहे हैं। राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में आतंक फैलाने के लिए कैसे जगह-जगह घरों को फूंका गया। राजनीतिक संघर्ष को लेकर हुई बमबाजी और गोलीबारी से शहर और गांवों के लोग कैसे पूरे साल दहलते रहे।
तुष्टीकरण नीति का गहराई से आकलन
बढ़ती राजनीतिक हिंसा के साथ ही पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी का बढ़ता जनाधार, वामदलों के साथ कांग्रेस का सिमटता आधार और तृणमूल कांग्रेस की वोटों के लिए तुष्टीकरण नीति का गहराई से आकलन किया गया है। राजनीति में अवैध हथियारों और काला धन के बढ़ते प्रभाव को उजागर किया गया है। राजनीति चमकाने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार, राज्यपालों, चुनाव आयोग और सुरक्षा बलों पर हमलों का सटीक विश्लेषण।
बंगाल- वोटों का खूनी लूटतंत्र
पश्चिम बंगाल में नक्सलवाद पनपने के बाद पिछले 50 वर्षों की राजनीतिक हिंसा से पूरी तरह परिचित कराती पहली पुस्तक। 1967 में किसानों के आंदोलन, उद्योगों में बंद और हड़ताल, विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कूलों में बमों के धमाके तथा रिवाल्वरों से निकलती गोलियों के साथ अराजकता भरे आंदोलनों की जानकारी। 1972 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के दमनचक्र के बाद 1977 में वाम मोर्चे की सरकार के गठन के बाद राजनीतिक हिंसा का विस्तृत विवरण। माकपा ने त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू करने के बाद किस तरह राजनीतिक हिंसा के सहारे सत्ता पर पकड़ बनाए रखी। 1978 से 2018 तक हुए नौ पंचायत चुनावों के दौरान हत्याओं और हिंसा का पूरी जानकारी के साथ 2013 और 2018 में सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस द्वारा पंचायत चुनाव में वोटों की खूनी लूट का पुस्तक में खुलासा किया गया है।
लेखक के बारे में
जाने-माने पत्रकार और एनयूजे-इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रास बिहारी पिछले काफी समय से बंगाल की राजनीति का करीब से विश्लेषण करने में जुटे हुए थे। अब उनकी तीन पुस्तकें बंगाल पर एक साथ आई हैं। बंगाल पर कब्जा बरकरार रखने के लिए ममता बनर्जी ऐड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। भाजपा हर हाल में अगला विधानसभा चुनाव जीतना चाहती है। वामपंथी भी हताशा के बीच हाथ-पैर मार रहे हैं। कांग्रेस तीन में न तेरह में लग रही है। बंगाल सिर्फ विचारधारा ही नहीं उग्र स्वभाव का भी प्रदेश है। यहां की सियासत बिना खून बहे सत्ता का मुकुट सिर पर धरने की आदी नहीं है। पत्रकार रास बिहारीने खूनी संघर्ष से नहाती रही बंगाल की राजनीति पर कलम चलाते हुए उन तमाम दूसरे मुद्दों पर भी बेहतरीन लिखा है जो आम लोगों की जिंदगी का हिस्सा हैं और चुनाव के वक़्त उन पर जमकर जुबानी जंग होती है। यह पुस्तक ऑनलाइन शॉपिंग साइट अमेज़न पर भी उपलब्ध है।
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पत्रकार और एनयूजे-इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रास बिहारी