सुप्रीम कोर्ट ने आठ फरवरी तक सुनवाई टाली

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई मंगलवार को शुरू होते ही इसे अगले साल आठ फरवरी तक के लिए टाल दिया है. अदालत ने सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम पक्षकारों के वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन और दुष्यंत दवे की मांग पर यह निर्णय लिया है. इन वकीलों ने मंगलवार को शीर्ष अदालत से कहा कि इस जटिल मुकदमे के लिए सारे दस्तावेज तैयार नहीं हैं और उन्हें बहस के लिए और वक्त की जरूरत है. इस पर अदालत ने सभी पक्षों के वकीलों को निर्देश दिया कि वे आठ फरवरी से शुरू होने वाली सुनवाई तक सभी जरूरी दस्तावेज तैयार कर लें ताकि मामले को अब और न टालना पड़े.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने हालांकि मुस्लिम पक्षकारों के वकीलों की वह मांग ठुकरा दी जिसमें कहा गया था कि इस मामले की सुनवाई अगले लोकसभा चुनाव तक टाल दी जाए. अदालत ने इस मांग पर हैरानी जताते हुए कहा कि इस साल जनवरी में सभी पक्ष मामले की जल्द से जल्द सुनवाई करने पर तैयार हो गए थे और अब कह रहे हैं कि इसे जुलाई 2019 तक के लिए टाल दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अदालत के बाहर क्या होता है, इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता.

अदालत ने इस मामले की सुनवाई के लिए सात जजों की खंडपीठ बनाने की मांग भी ठुकरा दी. इस बीच आज अदालत में इस मामले के एक पक्षकार शिया वक्फ बोर्ड ने विवादित भूमि पर राम मंदिर निर्माण का समर्थन किया है. इससे पहले इस साल 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने सात भाषाओं के हजारों पन्नों के दस्तावेजों का अंग्रेजी में अनुवाद न होने के कारण इस मामले की सुनवाई पांच दिसंबर तक के लिए टाल दी थी और कहा था कि अब इस मामले की नियमित सुनवाई होगी.
यह मामला पिछले छह साल से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. उससे पहले ​30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की विवादित जमीन को तीन टुकड़ों में बांटने का आदेश दिया था. इसके तहत एक भाग सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को जबकि दो भाग रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़े को मिलने थे. लेकिन मामले के सभी 13 पक्षों ने इस फैसले को मानने से इनकार करते हुए इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. इसके बाद नौ मई, 2011 को शीर्ष अदालत ने इनकी अपील स्वीकार करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी और अंतिम फैसला आने तक यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया था.

 

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