भाई में लीवर रोग की हिस्ट्री के चलते बहन में जल्दी हुआ रोग का निदान

नई दिल्ली।एक बेहद असामान्य मामले में सात साल के कम्बोडियन बच्चे के पूर्व निदान और उपचार ने उसकी बहन की जिंदगी बचा ली। किम सोराॅय (अभी उसकी उम्र 7 साल है) लीवर सिरहोसिस से पीड़ित था और 18 महीने की उम्र में उसका लीवर ट्रांसप्लान्ट किया गया था। इसी इलाज के चलते अनजाने में उसने अपनी बहन की मदद की। उसकी बहन के पैदा होने के कुछ ही सप्ताह में पता चला कि वह जाॅन्डिस यानि पीलिया से पीड़ित है।  लीवर ट्रांसप्लान्ट के बाद तीसरे सप्ताह मंे किम को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी लेकिन दो साल बाद उसके पूरे शरीर में सूजन आ गई, उसे फिर से अस्पताल लाया गया। ट्रांसप्लान्ट संबंधी थ्रोम्बोटिक माइक्रोएंजियोपैथी के चलते किम क्रोनिक रीनल रोग से पीड़ित हो गया था, जो एक दुर्लभ रोग है। इसमें भीतरी अस्तर के क्षतिग्रस्त होने के कारण एक छोटी रक्त वाहिका में बाधा आ जाती है। यह ट्रांसप्लान्टेशन की गंभीर और दुर्लभ जटिलता है जिसमें मरीज़ की मृत्यु तक हो सकती है।
निदान के बाद डाॅक्टरांे ने पाया कि किम को तुरंत रीनल ट्रांसप्लान्ट की ज़रूरत है और उसे हीमोडायलिसिस पर रखा गया। उसका किडनी ट्रांसप्लान्ट किया गया। अब उसे पांच साल हो चुके हैं और उसके किडनी एवं लीवर दोनों अंग ठीक से काम कर रहे हैं।
2017 में किम की मां ने पाया कि उसकी बेटी एंजल की आंखे पीली पड़ रही हैं, उसे दिल्ली के अपोलो हाॅस्पिटल लाया गया। ‘‘किम के मामले को ध्यान में रखते हुए हमने तुरंत एंजल की जांच की। उसमें भी बाईल डक्ट में रूकावट पाई गई। एंजल का लीवर रोग तेज़ी से बढ़ रहा था और कुछ ही महीनों में रोग अपनी अंतिम अवस्था में पहुंच गया। परिवार सैकण्ड ओपिनियन के लिए बच्ची को लेकर फ्रांस गया, वहां पर भी डाॅक्टरों ने वही राय दी जो अपोलो हाॅस्पिटल में दी गई थी। 11 महीने की उम्र में उसका लीवर ट्रांसप्लान्ट किया गया। लीवर ट्रांसप्लान्ट के बारे में जागरुकता तेज़ी से बढ़ रही है और अपोलो प्रोग्राम के तहत अब तक हम 20 देशों से आए 280 से ज़्यादा बच्चों में लीवर ट्रांसप्लान्ट कर चुके हैं।’’ प्रोफेसर अनुपम सिब्बल, ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर एवं सीनियर पीडिएट्रिक गैस्ट्रोएन्ट्रोलोजिस्ट एण्ड हेपेटोलोजिस्ट, अपोलो हास्पिटल्स ग्रुप ने कहा।
‘‘एंजल बहुत छोटी थी और गंभीर पीलिया की शिकार हो चुकी थी। ऐसे मामलों में ट्रांसप्लान्ट बहुत मुश्किल होता है क्योंकि डोनर के लीवर का आकार बच्चे के हिसाब से छोटा करना पड़ता है, ताकि वह बच्चे के पेट में फिट हो जाए। बड़े आकार का ग्राफ्ट आॅपरेशन के बाद मुश्किलों का कारण बन सकता है। लेकिन इस मामले में छोटे किए गए लीवर का आकार एंजल के शरीर में बिल्कुल फिट बैठ गया। साथ ही छोटे बच्चों में छोटी रक्त वाहिका को जोड़ना भी बहुत मुश्किल होता है।’’ डाॅ नीरव गोयल, सीनियर कन्सलटेन्ट, लीवर ट्रांसप्लान्ट एण्ड हेपेटोबाइलरी, पेनक्रियाटिक सर्जरी, इन्द्रप्रस्थ अपोलो हाॅस्पिटल्स ने कहा। ‘‘पिछले 3 महीनों में हम मात्र 3.5 किलोग्राम तक वज़न वाले 10 बच्चों में सफल ट्रांसप्लान्ट कर चुके हैं।’’ डाॅ. गोयल ने कहा।
सर्जिकल टीम में शामिल थे डाॅ पुनीत डरगन, डाॅ अरुण वेणुथुरीमिल्ली, डाॅ कुमार वैभव तथा मेडिकल टीम में शामिल थे डाॅ नमीत जेरथ, डाॅ विद्युत भाटिया, डाॅ अक्षय कपूर और डाॅ स्मिता मल्होत्रा।

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