हिमालय के आंगन में

भूगोल के हिसाब से सिक्किम तो है छोटा, लेकिन यहां के नजारे हैं लाजवाब। बर्फ से ढंकी पहाड़ियों, अल्पाइन की मोटी लकड़ी से ढंके रोलिंग स्लोप्स की जगह ले जाएगी आपको खींचकर। तभी तो इसे अक्सर ‘पूर्व का स्विट्जरलैंड‘ भी कहा जाता है।

 

कुमकुम झा (सिक्किम से लौटकर)

आर्किड की विश्व भर में पाई जाने वाली लगभग पांच हजार प्रजातियों में से अकेले सिक्किम में 650 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। चीन, भूटान और नेपाल की सीमा से लगे सिक्किम के देवदार के जंगल पहाड़ों पर चढ़ाई के शौकीन और तीस्ता नदी नौका विहार के शौकीनों को आमंत्रित करती है। सिक्किम में करीब 527 किस्म के पक्षियों का बसेरा है, जो इस क्षेत्र को हिमालय के बीच पक्षियों से भरा सबसे धनी क्षेत्र बनाता है।
सिक्किम उन कुछेक राज्यों में शुमार है, जहां अभी रेल सुविधा नहीं है। सिक्किम की राजधानी गंगटोक देश का एक खूबसूरत हिल स्टेशन भी है। गंगटोक की खूबसूरती का अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि कुछ इतिहासकारों ने गंगटोक को म्यूजियम में रखने लायक शहर भी बताया है। सिक्किम के मूल निवासी लेपचा और भूटिया हैं, लेकिन यहां बड़ी तादाद में नेपाली भी रहते हैं। अधिकांश सिक्किमवासी बौद्ध एवं हिंदू धर्म को मानते हैं। गंगटोक बेहद खूबसूरत और बेहद स्वच्छ शहर है। सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां के बाजार तक में इतनी स्वच्छता और सफाई है कि एक कागज का टुकड़ा कहीं किनारे पर भी पड़ा नहीं दिखता है। शहर के मेन बाजार में घूमते समय नहीं लगता कि आप भारत में हैं। महसूस होता है कि कही विदेश के किसी बाजार में घूम रहे हैं! गंगटोक की मुख्य सड़क का नाम महात्मा गांधी मार्ग है। शहर के अधिकांश होटल और रेस्तरां इसी रोड की दोनों तरफ हैं। सिक्किम का पर्यटन कार्यालय भी इसी रोड पर है, जहां जाते ही आपको सिक्किम का टूरिस्ट गाइड मुफ्त में दिया जाता है। ये पुस्तिका सिक्किम की यात्रा की योजना बनाने के लिए बेहद उपयोगी है।
कोलकाता से मैं सिक्किम गई। पहली पहली रात गंगटोक में ही गुजारीं, लेकिन तड़के कंचनजंघा के दर्शन करने के बाद हम सीधे उत्तरी सिक्किम की ओर बढ़ चले थे। ऊंचाई से दिखते गंगटोक की खूबसूरती और बढ़ गई थी। हरे भरे पहाड़, सीढ़ीनुमा खेत, सपार्कार सड़कें और उन पर चलती चौकोर पीले डिब्बों जैसी दिखती टैक्सियां मन को अभिभूत कर रहे थे।। देवराली से शुरू हुआ हमारा सफर ताशीलिंग में खत्म हो गया। ताशिलिंग स्टेशन से नीचे उतर कर सचिवालय की ओर जाने के लिए थोड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। स्तूप के अंदर अपने पारंपरिक वस्त्रों में बौद्ध लामा घूम रहे थे। एक ओर पूजा के लिए ढेर सारे पीतल के दीये जल रहे थे।
गंगटोक शहर से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित एंची मोनेस्ट्री अपने आप मे निराला बौद्ध मठ है, जिसे ऐसे स्थल पर बनाया गया था, जहां दूसरी किसी इमारत का निर्माण करने की अनुमति नहीं थी। माना जाता है कि इस स्थान को उड़ने के तंत्र में माहिर लामा दु्रप तच्ब कारपो का आशीर्वाद हासिल है। बीते 200 साल पुराने इस बौद्ध मठ के परिसर में ईश प्रतिमाएं और धर्म संबंधी अनेक वस्तुएं हैं। गंगटोक के नजदीक ही व्हाइट मैमोरियल हाल के पास और पैलेस रिज पार्क के नीचे फ्लावर शो हाल है, जहां फूलों के मौसम में फूलों की कोई न कोई प्रदर्शनी लगी ही रहती है। जनवरी में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां के आॅर्किड प्रदर्शनी में हिस्सा लिया। ऐसी ही एक प्रदर्शनी में हमने कई खूबसूरत आर्किड देखे और उनके बारे में जाना। हालांकि, अब तो आर्किड की कुछ प्रजातियां दिल्ली में भी नजर आने लगी हैं, लेकिन सिक्किम में कई ऐसे फूल भी देखने को मिले, जिन्हें पहले कभी नहीं देखा था।
राज्य चार जिलों में बंटा हुआ है और चारों के नाम चार दिशाओं पर रखे गए हैं। राजधानी गंगटोक प्रदेश पूर्वी जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। राजधानी गंगटोक की आबादी 50 हजार के आसपास है। शहर के देवराली इलाके में स्थित रोपवे पर्यटकों के लिए अतिरिक्त आकर्षण है। डायरेक्टरेट आफ हैंडीक्राफ्ट्स एंड हैंडलूम्स के परिसर मे हीं स्थित है इंस्टीटयूट आफ काटेज इंडस्ट्रीज। सिक्किम के राजा के समय में शुरू हुए इस संस्थान में स्थानीय कलाकारों के हाथ का बना पारंपरिक सामान मिलता है। इस सामान में हैंडीक्राफ्ट, फर्नीचर, कारपेट और और भी बहुत सा सामान होता है। हालांकि, हम वहां जिस दिन पहुंचे, जब वह बंद था। पता लगा कि सरकारी और साप्ताहिक अवकाश के दिन यह संस्थान बंद रहता है।
एक और दर्शनीय स्थल है – रूमटेक धर्मचक्र केंद्र। गंगटोक से करीब 45 किलोमीटर दूर स्थित यह केंद्र तिब्बती बौद्ध धर्म के चार प्रमुख पंथों में से एक पंथ का प्रमुख केंद्र है। 1960 के बाद 16वें कर्मापा के आने के बाद के कुछ अनूठे ग्रंथ और धार्मिक वस्तुएं यहां देखी जा सकती है। रूमटेक मठ तिब्बत की मच्च्लिक काग्युर्पा मोनेस्ट्री का प्रतिरूप है। सिक्किम के बौद्ध मठों में एक बात समान रूप से दिखाई दी कि सभी स्थान खूब रंगबिरंगे चटख रंगों से पेंट किए गए हैं, जिसकी वजह से सफेद और शांत पहाड़ों के बीच कुछ अलग ही खूबसूरती लिए नजर आते हैं।
इसके पीछे ही स्थित है दुनिया भर में अनोखा और अपनी तरह का एकमात्र संस्थान नामग्याल इंस्टीट्यूट आफ तिबेतोलाजी। इस संस्थान को बौद्ध धर्म, तिब्बत की भाषा और परंपराओं की शिक्षा के लिए सिक्किम के पूर्व शासकों ने शुरू कराया था। तिब्बती साहित्य की भरमार के लिए जाने जाने वाले इस संस्थान में दुर्लभ प्रतिमाएं, पांडुलिपियाँ, थंका, पेंटिंग और कला और इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण कृतियाँ मौजूद हैं। बौद्ध धर्म की पढ़ाई के लिए इस संस्थान का नाम पूरी दुनिया में रोशन है। हमें वहाँ चार-पाँच साल का तिब्बती लामा भी दिखाई दिया। शायद तिब्बती लोग अपने बच्चों को बचपन से ही यहाँ पढ़ने के लिए भेज देते होंगे और वह बच्चा लामा नही बल्कि स्कूल की पोशाक में छात्र रहा होगा।
रूमटेक के बिलकुल पास ही सिक्किम सरकार का जवाहरलाल नेहरू बोटेनिकल गार्डन है, जहां एक से बढ़कर एक खूबसूरत दुर्लभ पौधे देखने को मिले। गंगटोक से से करीब 14 किलोमीटर दूर स्थित और वन विभाग द्वारा संरक्षित सरम्सा गार्डन में भी हमने सिक्किम के अनूठे आर्किड और अनेक दुर्लभ पेड़ पौधे देखे। गंगटोक से 16 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक वाटर गार्डन भी है, जहां बच्चों की मौज मस्ती के लिए बहुत बढ़िया पिकनिक स्पाट है।
51.76 वर्ग किलोमीटर में फैला फंबोंग लो वाइल्ड लाइफ सेंचुरी गंगटोक से पच्चीस किलोमीटर दूर है। यहां रोडोडेंड्रोन, ओक, किंबू, फर्न, बांस आदि का घना जंगल तो है ही, साथ ही यह दर्जनों पशुओं का आवास भी है। सेंक्चुअरी में पक्षियों एवं तितलियों की अनेकानेक प्रजातियां मौजूद हैं।
रोमांच के शौकीन लोगों के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। तीस्ता का प्रवाह मानो एक आमंत्रण-सा देता है। नदी की तेज धार में उफनते पानी के बीच लाइफ जैकट पहनकर छोटी-सी डोंगी को खेने का अनुभव बिना महसूस किए समझा नहीं जा सकता। तीस्ता व रांगित, दोनों ही नदियां राफ्टिंग के लिए उपयुक्त हैं। तीस्ता में शुुरुआत माखा से की जा सकती है और यहां से नदी की धार में आप सिरवानी व मामरिंग होते हुए रांगपो तक जा सकते हैं। वहीं रागिंत नदी में सिकिप से शुरूआत करके जोरथांग व माजितार के रास्ते मेल्लि तक जाया जा सकता है।
मार्च से मई और फिर अक्टूबर से दिसंबर के बीच पेमायांग्शे से रालंग तक मोनेस्टिक ट्रैक होता है। इसी तरह मार्च-मई में नया बाजार से पेमायांग्शे तक रोडोडेंड्रोन ट्रैक होता है। कंचनजंघा ट्रैक मध्य मार्च से मध्य जून तक और फिर अक्टूबर से दिसंबर तक युकसोम से शुरू होता है और राठोंग ग्लेशियर तक जाता है। बौद्ध धर्म में रुचि रखने वालों के लिए अक्टूबर से दिसंबर तक रूमटेक से युकसोम तक कोरोनेशन ट्रैक होता है। गंगटोक सड़क मार्ग द्वारा सिलिगुड़ी, न्यू जलपाईगुड़ी, बागडोगरा, दार्जिलिंग, कलिंगपोंग आदि शहरों से जुड़ा हुआ है। सिलिगुड़ी?114 किलोमीटर, न्यू जलपाईगुड़ी?125 किलोमीटर गंगटोक के दो निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। बागडोगरा?124 किलोमीटर गंगटोक का निकटतम हवाई अड्डा है। बागडोगरा से पर्यटक हेलीकाप्टर द्वारा भी गंगटोक पहुंच सकते हैं। सिलिगुड़ी से गंगटोक जाने के लिए टैक्सियां एवं बसें आसानी से मिल जाती हैं। विदेशी पर्यटकों को सिक्किम में प्रवेश के लिए परमिट बनवाना आवश्यक है। विदेशियों के लिए अधिकतम पंद्रह दिन का परमिट बनता है। सिक्किम में पालीथीन नहीं मिलती। अगर आपको इनकी जरूरत हो तो अपने साथ ले कर जाएं।
सिक्किम का अपना कोई एयरपोर्ट नहीं है। सबसे पास का एयरपोर्ट पश्चिम बंगाल में बागडोगरा (सिलिगुड़ी के पास) है। जो सिक्किम की राजधानी गंगटोक से करीब 125 किलोमीटर दूर स्थित है। बागडोगरा दिल्ली और कोलकाता की नियमित उड़ानों से जुड़ा हुआ है।

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