तो मिथिला विरोधी हैं नीतीश कुमार ?


सुभाष चन्द्र

नीतीश कुमार ने 15 साल में क्या किया है ? विपक्षी दल यह सवाल कर रहे हैं, तो मिथिला की जनता भी यही सवाल अब करने लगी है। मिथिला में बीते 15 साल में बिहार के मुख्यमंत्री ने नीतीश कुमार ने क्या किया है, इसका ब्यौरा आज तक राज्य सरकार की ओर से किसी ने नहीं दिया है। हां, जब जब चुनावी बयार सिसकने लगती है, तो नीतीश कुमार अपने चंद चहेते मंत्री के साथ मिथिला की धूल फांकने आ जाते हैं। हाल ही में जयनगर आए थे। कमला-बागमती को देखे। ओहार लगा दिया गया था, ताकि झोपडी पर नजर नहीं पडे। घुरते हुए औपचारिकता निभाई और दरभंगा हवाई अड्डे पर फोटो खिंचवा ली। बयान जारी कर दिया गया कि कार्यों की समीक्षा की गई।

असल में, मिथिला के लोगों का दर्द यही है कि नीतीश के शासनकाल में एक भी कल कारखाना नहीं लगा है। जो था, वह भी बदहाली की अवस्था में पहुंच गया। स्वास्थ्य के क्षेत्र में दरभंगा मेडिकल काॅलेज हाॅस्पिटल का बडा नाम था। मगर वह भी खस्ताहाल होता गया। लोगों का कहना तो यहां तक है कि उनके चहेते मंत्री ने अपने एक रिश्तेदार को इस डीएमसीएच का मुखिया बना दिया, उसके बाद तो स्थिति और भी बदत्तर हो गई। चुनावी समय में डीएमसीएच को एम्स बनाने की बात माइक पर पूरे जोर-शोर से की जाती है। हालंाकि, डीएमसीएच को एम्स का दर्जा दिलाने का श्रेय और काम कराने का, हालांकि अभी तक कुछ हुआ नहीं है, श्रेय स्थानीय सांसद गोपालजी ठाकुर अपने सिर बंधवाने को बेताब हैं।

मिथिला के लोगों का सबसे बडा दर्द यही है कि नीतीश कुमार मिथिला संबंधित किसी मुद्दे को समय पर पूरा होने दे ही नहीं सकते। कैसे भी करके काम को लटकाएंगे ही। एम्स को 6 साल तक अटका के रखा है। दरभंगा एयरपोर्ट को अटका कर रखा हुआ है। लोकसभा चुनाव से पहले उनके चहेते मंत्री संजय झा ने आनन फानन में दरभंगा में संवाददाता सम्मेलन का आयोजन किया। विमानन कंपनी स्पाइस जेट के अधिकारियों को भी साथ रखा। कहां कि अब बुकिंग शुरू होने वाली है। लेकिन हुआ क्या ? चुनाव खत्म, चिंता खत्म।

अब फिर विधानसभा चुनाव सिर पर है। नीतीश के वही चहेते मंत्री संजय झा, जिनके पास जल संसाधन का जिम्मा है, वो दिल्ली जाते हैं। केंद्रीय उडडयन मंत्री के साथ तस्वीर खिंचवाते हैं और फिर कहते हैं कि इस साल के अंत तक हवाई यात्रा शुरू हो सकती है। यानी विधानसभा चुनाव, जो अक्टूबर में संभावित है, उसमें लाभ लेने की जुगत।

बीते महीने से मिथिला में नीतीश के मंत्रियों और विधायकों द्वारा शिलान्यास का दौर जारी है। कोई पुराने कल कारखाने चालू नहीं किए गए। जनता का सवाल यह भी है कि यदि वाकई उन्हें मिथिला में काम करना था, तो 15 साल में क्यों नहीं किया ? अभी मधुबनी से सुपौल के बीच 13 किलोमीटर से अधिक लंबा पुल का शिलान्यास करवाया। झंझारपुर में हाइवे के किनारे अस्पताल का शिलान्यास करवाया। जनता अब अच्छी तरह जानती है कि चुनावी मौसम में जो भी शिलान्यास होते हैं, उनको पूरा करने में काफी समय लगता है। यह मुद्दा हर बार चुनाव के समय ही उठता है।

मिथिला के किसी भी गांव का दौरा कर लीजिए, अधिकतर लोग नीतीश कुमार को केवल मगध का नेता ही मानते हैं। बिहार की राजधानी पटना में करोडो की लागत से सभ्यता द्वार बनाया गया। स्वयं को ऐतिहासिक साबित करने की कोशिश हुई, लेकिन करोडों की लागात से एक भी कारखाना मिथिला में नहीं लगाया, जिससे कम से कम हजारों लोगों को रोजगार मिलता। सच तो यह है कि कोरोना काल में भी जो मखाना के लिए विशेष पैकेज की घोषणा हुई, वह केंद्र सरकार ने की। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने हाल में मैथिली में ट्विट किया। क्या किसी को याद है कि नीतीश कुमार ने कभी ऐसा किया हो ? तभी तो लोग और कई कांग्रेसी नेता कहते हैं कि एंटी मैथिल हैं नीतीश कुमार।
जानकार भी मानते हैं कि जब चुनाव निकट आ गया है और हाल ही में केंद्र सरकार ने 2021 तक नई सरकारी योजनाओं पर रोक लगाने के लिए दिशा निर्देश जारी किया है, तब अस्पताल निर्माण की घोषणा छलावा के अलावा और कुछ नहीं है। पुल के शिलान्यास की घोषणा को क्या कहेंगे ? यदि सरकार की मंशा ठीक होती तो पहले ही झंझापुर में अस्पताल बन चुका होता। केंद्र सरकार ने कोशी सेतु पर रेल परिचालन को हरि झंडी दी तो नीतीश कुमार और उनके मंत्रियों की तो बांछें खिल गईं।
असल में, सच्चाई यह है कि 15 वर्षों के शासन में नीतीश कुमार सरकार ने लगातार मिथिलांचल की उपेक्षा की है। क्या नीतीश कुमार जवाब दे सकते हैं कि  इन 15 वर्षों में मैथिली भाषा की पढ़ाई बिहार के स्कूली पाठ्यक्रम से क्यों बाहर रखी गई है। इस अवधि में मैथिली विषय के एक भी शिक्षक की नियुक्ति और मैथिली भाषा की पढ़ाई और पुस्तकों की छपाई क्यों बंद है ? नीतीश के 15 वर्षों में मिथिलांचल के सकरी, लोहट और रैयाम चीनी मिलों को चालू करने के लिए कोई कारगर कदम सरकार ने क्यों नही उठाये तथा पंडौल स्थित सूत मिल क्यों बंद पड़ा है ? नीतीश सरकार ने मिथिला और मैथिली के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार किया है, मिथिला विश्वविद्यालय में बीएड के छात्रों की 35 हजार फीस वृद्धि कर छात्रों पर भी अनावश्यक बोझ बढ़ाने का काम किया है । 

 

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