कहानी : एक सूरजमुखी की अधूरी परिक्रमा


नई दिल्ली। वह दिन और दिनों जैसा ही था । अब दुर्घटना की याद हो आने पर वही दिन एक उदास दिन के रूप में याद आता है । मैं अपने काम में मगन था कि एकाएक छोटे भाई ने आकर सूचना क्या दी कि जैसे कोई वजनी पत्थर सिर पर दे मारा हो -विक्की की मम्मी ने मिट्टी का तेल छिड़क कर आत्महत्या कर ली ।  आंखें शून्य में घूरती रह गयीं , जैसे कोई तस्वीर धुंधली होते होते गायब हो गयी । छोटे भाई ने ही जगाया -आज शाम दाह संस्कार होगा । चलना हो तो चलिए । मैं भारी कदमों से विक्की की कोठी पहुंचा ।

सबके मुंह पर एक ही बात थी कि आखिर वही होकर रहा जिस बात का डर था । सबका अनुमान था कि विक्की के वियोग में उसकी मम्मी बहुत थोड़े दिन जी पायेगी । किसी ने यह नहीं सोचा था कि वह थोड़े बचे हुए दिन जीने से भी इंकार कर देगी । विक्की उसका इकलौता सपूत था विक्की ही उसकी दुनिया थी । बाइस बरस का बांका नौजवान । मम्मी की ममता का विराट रूप । देखती तो देखती ही रह जाती । कहीं नज़र न खा जाए किसी की । विक्की ने जहरीली दवा खाकर जान दे दी थी और अब उसकी मम्मी ने भी ।

तब भी छोटा भाई लपकते हुआ आया था और उसने बिना भूमिका के, एक ही सांस में सब कुछ कह डाला था-भैया , जल्दी अस्पताल चलो । विक्की ने जहर पी लिया है । डाॅक्टर शर्मा उसे देख रहे हैं । वे उस पर आत्महत्या का केस डाल रहे हैं । पहले तो आप उसे रहा दफा करवाइए । फिर उसकी खबर लीजिए । जल्दी चलिए । प्लीज ।

 

सबके छंट जाने पर डाॅक्टर शर्मा से मिला था और वे उस समय भी मज़ाक करने से बाज नहीं आए थे -आ गये
पत्रकार महोदय । तुम लोग भी उस चंडाल से कम थोड़े हो जो शमशान में रोज़ मुर्दा लोगों की राह देखता है
ताकि उसे अच्छी कमाई हो । और तुम भी…

-डाॅक्टर, यह मज़ाक का नहीं , दुख का समय है । मेरा मतलब उस केस से है जिसे अभी अभी लुधियाना रेफर किया है आपने ।
-दैट विक्की ? वह तो रास्ते में ही दम तोड़ देगा ।
-और उसकी आत्महत्या का केस?।
-वह तो बनाना ही पड़ेगा ।
-थैंक्स ।
इतना कहकर मैंने उनकी चाय की ऑफर भी अनसुनी कर दी और दुख के बोझ तले पीली रोशनी वाले बरामदे को पार कर बाहर निकल
आया ।  विक्की की मां बौरा गयी थी और राह में ही अपने मायके में विक्की की लाश के संग उतर गयी थी ।

दूसरे दिन मैंने समाचार को एक बार , दो बार , कई बार लिखा और हर बार फाडा । क्या यह मात्र इतना ही समाचार था कि एक नौजवान ने जहर पीकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली ? निश्चय ही समाचार के आसपास एक रहस्य था जिस पर से पर्दा उठाना आवश्यक था ।
एक दिन विक्की के मामा हमारे घर आए और आग्रह किया कि विक्की की मम्मी शहर आ गयी है । हम सब चलें और विक्की की यादों के सहारे ज़िंदगी के कुछ पल उसे लौटा दें । यह कोई ऐसी इच्छा नहीं थी जिसे हम पूरा न कर पाते । उस शाम उदास रोशनियों में डूबी कोठी में हम उसकी मम्मी के पास पहुंच गये । विक्की की मम्मी कुछ ही दिनों में कई बरस आगे निकल गयी लगती थी । आखों के नीचे काले काले धब्बे दिखाई देने लगे थे और कनपटी के करीब सफेद बाल ।

सबके बीच वह मुझसे मुखातिब हुई -आप क्या समझते हैं कि मेरे विक्की ने शौक से आत्महत्या की ? नहीं । बिल्कुल नहीं । उसे जीने का शौक था । अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से जीने का शौक ।
-बाप को अपने इकलौते बेटे से क्या फिर हो सकता है ?
-मगर कोई बाप अपने बेटे को सलाम की औलाद मानता हो तब ?
-ऐसा मानने का कोई कारण ?
-मेरी न ढलने वाली खूबसूरती । मेरी गोरी चिट्टी देह ।
-क्या कह रही हैं आप ? मेरे लिए तो यह घर एक सुखी परिवार का आदर्श रहा है । एक बेटा । कमा कर झोली में डाल देने वाला पति और वही घर ,,,,?
-हां । मुझे कहने दो । यह चिप्सों वाली कोठी मेरी और मेरे बेटे की आकांक्षाओं की खूबसूरत कब्र से बढ़कर कुछ भी नहीं । एक नारी की उम्र भर की कमाई को राख कर देने वाले राक्षस पति की कैद में मैंने बरसों गुजार दिए । मैं बहुत साल इस पहाड़ को अपनी छाती पर रखे जीती रही ।अब इसे हटा कर आराम से मरना चाहती हूं ।
-यह मरने का चक्कर छोड़िए । आप अपनी ज़िंदगी को सामाजिक कामों में लगाइए । अपनी रुचियां बदलिए । समाज के उपेक्षित ,,,,
-मेरे बेटे । अगर मुझे इतनी ही आज़ादी होती तो विक्की आत्महत्या न करता । आज मेरी यह हालत न होती । विक्की आत्महत्या के लिए मजबूर न होता और मेरी ज़िंदगी का सूरज न डूबता । मैं समाज की इकाई नहीं , आदमी की गुलाम हूं ।
उस शाम अंधेरे में डूबती सूरजमुखी को पहले बार देखा । सूरज के कत्ल के बाद कितनी उदास , अर्थहीन और लक्ष्यहीन हो जाती है ,,,उसी शाम जाना ।

विक्की के मामा के एक अंतरंग मित्र ने ऐसी ही एक मनहूस शाम के उतरते अंधेरे में बातों बातों में बताया था कि विक्की के पापा की शक्ल देखते ही उसे चिढ़ सी आ जाती है ,,,पता नहीं विक्की के नाना ने ऐसे फटीचर आदमी को कहां से ढूंढ निकाला । ऐसे आदमी को गोली से उड़ा देना चाहिए । सोने जैसी हमारी बहन को इस आदमी के पल्ले बांध दिया जिसे यही समझ नहीं कि औरत के लिए भी वक्त निकालना जरूरी है । सारी उम्र इस आदमी को मुर्गियां मारते रहने से फुरसत नहीं मिली । सबसे खूबसूरत लड़की इस चंडाल की झोली में डाल दी । अब विश्वास आया कि फौजी आदमी खब्ती होते हैं । ज़माना लडके लड़की को दिखाये बिना या आपस में बात करने का मौका दिए बिना शादी का था । फौज से रिटायर पिता की बात कौन टाल सकता था ? उसने किसी की नहीं सुनी और हाथी जैसे दिमाग के आदमी के पांव तले मासूम कली मसली गयी ।


कमलेश भारतीय, वरिष्ठ पत्रकार

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