नई दिल्ली। विदेश में पढ़ाई करना भारतीयों का सपना होता है। हर साल, मेट्रो शहरों और टियर-2 ध् 3 शहरों के सैकड़ों हजारों छात्र विदेशी विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने की कोशिश करते हैं। जैसे-जैसे समय बदल रहा है और मानसिकता विकसित हो रही है, देश ने छात्राओं की बढ़ती संख्या को विदेशी विश्वविद्यालय में प्रवेश लेकर अपने अकादमिक लक्ष्यों को पूरा करने के साथ-साथ अपनी स्वायत्तता और स्वतंत्रता का आनंद लेते देखा है। इस वजह से अधिक से अधिक छात्राएं अब पढ़ाई के लिए विदेश जाने और अकेले रहने का विकल्प चुन रही हैं।
अकेले यात्रा करने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या के साथ, प्रतिष्ठित शैक्षणिक और पेशेवर डिग्री हासिल करना अब सामान्य हो चला है। जब तक महामारी नहीं गुजर जाती, वह जीवन बदलने के नए दृष्टिकोण के साथ सीखने के प्रति उत्साह को कायम रखते हुए छात्राओं का समर्थन कर रहा है। इसका मतलब है कि कोविड-19 प्रतिबंधों के कारण उन्हें एक वर्ष भी नहीं छोड़ना होगा या उन्हें एक साल बर्बाद नहीं करना होगा। स्टडी ग्रुप की सहायता से कई भारतीय छात्राएं अपने चुने हुए विश्वविद्यालय में प्रवेश पा सकती है और अपने जीवन को समायोजित कर सकती हैं।
देश में पले-बढ़े होने के अपने अनुभव पर भारत की डरहम विश्वविद्यालय से बीए इंग्लिश लिटरेचर की पढ़ाई कर रही नेहा वशिष्ट कहती हैं, “मुझे जो माहौल और परवरिश मिली, उसके लिए मैं बहुत आभारी हूं। बिना संदेह के यह अब भी कहा जा सकता है कि भारतीय समाज को अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। उसकी जड़ों में समाई लैंगिक धारणाओं से आगे बढ़ने और, विशेष महिलाओं को आगे बढ़ते देखने में स्वीकार करने और सुरक्षा में सुधार की आवश्यकता है। आज मैं जो कुछ भी हूं उसमें मेरे माता-पिता की बहुत बड़ी भूमिका रही है। मेरी शिक्षा, सामान्य कल्याण और मूल्यों के प्रति उनका योगदान निरंतर रहा है।
कार्डिफ यूनिवर्सिटी से बीए मीडिया और कम्युनिकेशन कर रही आयुषी सभरवाल कहती हैं, “यह अनुभव बेहद आश्रय भरा रहा है। इस अर्थ में नियंत्रित था कि मेरे माता-पिता ने हमेशा सुनिश्चित किया कि मैं सुरक्षित वातावरण में हूं। मेरे माता-पिता हमेशा मेरी शिक्षा के दौरान मेरे लिए बेहद सहायक और उत्साहवर्धक रहे हैं। ”